तालिबान के क़रीब रूस क्यों आ रहा?

अमरीका और तालिबान के बीच शांति वार्ता रद्द होने के बाद अब रूस तालिबान के क़रीब जा रहा है.
तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल इस मुलाक़ात के लिए रूस की राजधानी मॉस्को पहुंचा, जहां उन्होंने रूस के अधिकारियों के साथ बातचीत की.
क़तर में मौजूद तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने इस बैठक की पुष्टी की है. उन्होंने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में रूस के विशेष दूत ज़ामिर कबुलोव के साथ तालिबान के प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात हुई है. यह बैठक रूस की राजधानी में आयोजित हुई.
इससे पहले अमरीका और तालिबान के बीच बीते कई महीनों से शांति समझौते की चर्चा गर्म थी, इसका एक प्रारूप भी तैयार कर दिया गया था.
इस प्रारूप को अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद अमरीकी दूत ज़लमय ख़लीलज़ाद ने अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के सामने भी रखा था. लेकिन अचानक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस शांति समझौते को रद्द कर दिया.
इन हालात में अब रूस और तालिबान के बीच नज़दीकियां बढ़ रही हैं. इसका क्या मतलब है और रूस अब तालिबान के साथ बातचीत क्यों करना चाहता है?
यह जानने के लिए बीबीसी संवाददाता अपूर्व कृष्ण ने बात की तालिबान मामलों के जानकार रहिमुल्लाह युसूफ़ज़ई से. पढ़िए उनका आकलन
रूस की तरफ़ से तालिबान से मुलाक़ात की पेशकश करना एक दिलचस्प क़दम है.
रूस की हुकूमत ने तालिबान को मुलाक़ात की दावत दी है. इसके बाद ही तालिबान ने अपना प्रतिनिधिमंडल मॉस्को भेजा है. वैसे तालिबान इससे पहले भी कई बार रूस गया है. इस तरह से देखें तो तालिबान और रूस के बीच अच्छे ताल्लुकात बन गए हैं.
रूस ने इस मुलाक़ात के लिए जो वक़्त चुना है वह बहुत महत्वपूर्ण है. उनका कहना है कि जब अमरीका ने तालिबान के साथ बातचीत की पेशकश ठुकरा दी, उस मौक़े पर रूस सामने आया और उन्होंने तालिबान के साथ बातचीत करने की पहल की है.
रूस तालिबान को इज़्जत बख़्श कर उन्हें अपने क़रीब बुलाकर, उन्हें दावत देकर यह दिखाना चाहता है कि वो अमरीका के बरक्स शांति और अमन के लिए काम कर रहा है जबकि अमरीकी अब भी अफ़ग़ानिस्तान में जंग करने के लिए तैयार बैठे हैं.
रूस इससे पहले दो बार और तालिबान के साथ बातचीत कर चुका है. उनके अनुसार पहली बार तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल रूस गया था बातचीत करने, उस समय 12 देशों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. इसके बाद रूस ने एक इंट्रा-अफ़ग़ान डायलॉग भी करवाया था.
अपने इन कोशिशों से रूस यह साबित करना चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान में जारी समस्या को हल करने में रूस भी एक अहम किरदार निभा सकता है, अकेला अमरीका ही सब कुछ नहीं है.
अपनी ताक़त दिखाने का मौक़ा?
वहीं रूस की समाचार एजेंसी तास ने बताया है कि रूस के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता के अनुसार रूस ने अमरीका और तालिबान के बीच बातचीत दोबारा शुरू होने पर भी ज़ोर दिया है.
हालांकि तालिबान के प्रतिनिधिमंडल ने अमरीका के साथ फ़िलहाल दोबारा बातचीत की संभावनाओं से इनकार किया है.
जब अमरीका और तालिबान के बीच बातचीच मुश्किल है, वहीं तालिबान अफ़ग़ान सरकार के साथ बातचीत नहीं करना चाहता.
ऐसे में यह रूस का तालिबान के साथ बातचीत करने से क्या फ़र्क़ आएगा और इससे किसे फ़ायदा मिलेगा.
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में यह कहीं ना कहीं अपनी धाक जमाने और ताक़त दिखाने जैसा मामला है.
एक बात तो यह है कि अफ़ग़ानिस्तान का मसला हल करवाना है, वहीं दूसरी तरफ़ दुनिया की जो बड़ी ताक़तें हैं, जैसे अमरीका, रूस या चीन इनके बीच जो मुक़ाबला है, वह भी इस मामले में झलकता है.''
''रूस का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में उसकी भी भूमिका होनी चाहिए. 1979 के आसपास रूस ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला भी किया था और उनकी फ़ौज अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब 9 साल तक रही थी, उसके बाद उन्हे शिकस्त मिल गई थी. अब जब अफ़ग़ानिस्तान की समस्या हल करने में एक ट्रैक ख़राब हो गया है तो ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान दूसरा ट्रैक लेकर तैयार है.''
लादेन के बेटे की मौत कितनी अहम?
पिछले महीने अमरीका ने बताया था कि ओसामा बिन लादेन के बेटे हमज़ा बिन लादेन की मौत हो गई है. हमज़ा की मौत अफ़ग़ानिस्तान, अमरीका और रूस के सिलसिले में कितनी अहमियत रखती है.
हमज़ा बिन लादेन की अहमियत यही थी कि वो ओसामा बिन लादेन के बेटे थे. उनके कुछ वीडियो आए थे जिसमें वो अमरीका पर हमला करने की बातें कहते थे लेकिन कभी ऐसी ख़बर नहीं मिली कि उन्होंने कोई हमला किया है या नहीं.
जब ओसामा बिन लादेन की मौत हुई थी तब उनके पास से कुछ काग़ज़ात मिले थे जिसमें यह पाया गया था कि हमज़ा को तालिबान के नेता के तौर पर ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन इसके अलावा उनसे जुड़े अधिक ख़बरें या बातें सामने नहीं आई थीं.''
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