चीन और भारत क्यों कई मुद्दों पर आपस में उलझे हुए हैं
गुरप्रीत सैनी
बीबीसी संवाददाता
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मोदी और जिनपिंग
कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण के बीच अमरीका और चीन के रिश्ते में जहाँ कड़वाहट आई है, वहीं भारत और चीन के बीच भी इस दौरान कई विवादित मुद्दे उठे हैं.
अप्रैल में भारत ने चीन को उस समय बड़ा झटका दिया, जब उसने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के नियमों में बदलाव कर दिया.
दरअसल कोविड-19 की वजह से खस्ता हाल हुई भारतीय कंपनियों को लेकर एक डर था कि चीन सस्ते में इन्हें टेकओवर कर सकता है. महामारी के बीच जब चीन के एक बैंक ने एक भारतीय कंपनी में 1.01 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदी, तो इससे चिंता और बढ़ी.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी चिंता ज़ाहिर करते हुए 12 अप्रैल को ट्वीट किया था. इसके कुछ दिन बाद ही, भारत सरकार ने फैसला किया कि जो भी एफडीआई आएगी वो ऑटोमेटिक रूट से नहीं आएगी, वो भारत सरकार की मंज़ूरी के बाद ही आएगी.
भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जो नए नियम बनाए हैं, उनके मुताबिक़, जिन देशों की ज़मीनी सरहदें भारत से मिलती हैं, अगर वो भारत के किसी कारोबार या कंपनी में निवेश करते हैं, तो इसके लिए भारत सरकार की मंज़ूरी लेनी अनिवार्य होगी. पहले ये पाबंदी केवल भारत में निवेश करने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश के निवेशकों पर लागू होती थी.
इस बदलाव पर चीन ने आपत्ति जताई थी और इसे निवेश के सामान्य नियम के ख़िलाफ़ बताया था.
कोरोना की उत्पत्ति की जांच का भारत ने किया समर्थन
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भारत और चीन
पिछले कई महीनों से कोरोना वायरस की उत्पति को लेकर अमरीका और चीन में ठनी हुई थी.
जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में ये मामला उठा, तो भारत ने जाँच का समर्थन किया.
जाँच की मांग को लेकर 18 मई को वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक ड्राफ्ट प्रस्ताव पेश किया गया था. जिसका भारत ने भी समर्थन किया.
इस प्रस्ताव में डब्ल्यूएचओ से अपील की गई थी कि वो ज़ूनॉटिक कोरोना वायरस के स्रोत की निष्पक्ष जांच करे और पता लगाए कि इंसानों तक ये वायरस कैसे पहुंचा और कहीं इससे कोई छोड़छाड़ तो नहीं की गई?
हालाँकि इस ड्राफ्ट में किसी देश या जगह का नाम नहीं था. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस जाँच का ज़्यादातर फोकस चीन पर रहेगा. चीन ने भी जाँच कराने पर सहमति दे दी और कहा कि कोरोना पर क़ाबू पा लेने के बाद वो किसी भी जाँच का समर्थन करता है.
ताइवान: शपथ ग्रहण समारोह में दो भारतीय सांसद शामिल
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इन सबके बीच ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए जब बीते बुधवार को शपथ ली, दो भारतीय सांसदों ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की.
बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी और राहुल कासवान वीडियो कॉल के ज़रिए शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और मोदी सरकार की ओर से ताइवान की राष्ट्रपति को शुभकामनाएं दीं.
जानकार मानते हैं कि भारत की मोदी सरकार ने ऐसा करके चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है. क्योंकि चीन ताइवान को संप्रभु देश नहीं मानता है.
जबकि साई इंग-वेन ताइवान को एक संप्रभु देश के तौर पर देखती हैं और उनका मानना है कि ताइवान 'वन चाइना' का हिस्सा नहीं है. चीन उनके इस रवैए को लेकर नाराज़ रहता है.
चीन का मानना है कि ताइवान उसका क्षेत्र है. चीन का कहना है कि ज़रूरत पड़ने पर ताक़त के ज़ोर उस पर कब्ज़ा किया जा सकता है.
भारत क्या संदेश देना चाहता है
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प्रधानमंत्री मोदी
भारत इन क़दमों से क्या संदेश देना चाहता है?
इस बारे में सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में रिसर्च फेलो और चीन मामलों के जानकार अतुल भारद्वाज कहते हैं कि भारत ये संदेश देना चाहता है कि वो चीन से ख़ुश नहीं है.
उन्होंने कहा, "भारत चहता है कि चीन नेपाल जैसे देशों पर उसके मामले में अपना प्रभाव कम इस्तेमाल करे. ये संदेश देने के लिए भारत ताइवान समेत जिन जगहों पर पहुंच बढ़ा सकता है, वहां बढ़ा रहा है."
अब भड़का सीमा विवाद
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हाल में दोनों देशों के बीच सालों पुराने सीमा विवाद का जिन्न भी एक बार फिर निकल आया. ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देश अपने सैनिकों की मौजूदगी बढ़ा रहे हैं.
चीन का आरोप है कि भारत गालवन घाटी के पास रक्षा संबंधी ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कर रहा है. लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के नज़दीक दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनाव की भी ख़बरें आईं.
हालांकि बीते गुरुवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने एलएसी पर ताज़ा तनाव को लेकर चीन को जवाब दिया और कहा कि भारत नॉर्मल पेट्रोलिंग कर रहा था, जिसमें चीन ने बाधा डाली और "हम भारत की संप्रभुता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं."
इस बयान के एक दिन बाद यानी शुक्रवार को सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे पूर्वी लद्दाख की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए लेह स्थित XIV कोर मुख्यालय भी पहुंचे.
भारत का कहना है कि वो हर क़दम का जवाब देने को तैयार है.
दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.
बात सरहद पार
समाप्त
जिस वक़्त दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है, ऐसे में दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की वजह क्या हो सकती है?
अतुल भारद्वाज कहते हैं कि चीन इस वक़्त पहले से अंतरराष्ट्रीय दबाव झेल रहा है. "अमरीका ख़ास तौर पर दबाव डाल रहा है. अमरीका जब दबाव डालता है, तो उसके सहयोगी देश भी अपनी तरफ से कुछ ना कुछ दबाव डालने की तो कोशिश करते हैं. जब सब मिलकर दबाव डालते हैं तभी फर्क पड़ता है. भारत अमरीका का अहम रणनीतिक साझेदार है, ऐसे में एक वजह ये भी हो सकती है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता के तौर पर ये दबाव बना रहा हो."
"इससे चीन हर तरफ से दबाव महसूस करेगा, चाहे ताइवान का मामला हो या डब्ल्यूएचओ का. हॉन्गकॉन्ग के हालिया घटनाक्रम को लेकर भी चीन पर दबाव बनेगा."
अतुल भारद्वाज कहते हैं कि दो तरीक़े हो सकते हैं, एक अंतरराष्ट्रीय एकजुटता. दूसरा द्विपक्षीय यानी भारत और चीन के बीच का आपसी मामला.
अगर द्विपक्षीय वजह है तो भारत चाहेगा कि सीमा विवाद सुलझे और वो उसके पक्ष में हो.
लेकिन क्या इस सबसे चीन पर कोई दबाव आएगा, इसपर अतुल भारद्वाज कहते हैं कि अगर भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता के तहत चीन पर दबाव बना रहा है तो अलग असर होगा, लेकिन ये द्विपक्षीय तौर पर चीन के साथ डील करेगा तो एक अलग ढाँचा तैयार होगा.
वो मानते हैं कि देखना होगा कि भारत चीन को किस तरह से अप्रोच कर रहा है, उस तरीक़े से तनाव आगे बढ़ेगा या घटेगा.
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बीबीसी न्यूज़स्वास्थ्य टीम
कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं?कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.