यूएन महासभा में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का वार और चीन की अहम घोषणा

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी

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ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले संबोधन में अमेरिका को जमकर निशाने पर लिया है.

रईसी ने कहा कि ईरान पर प्रतिबंध को अमेरिका जंग की तरह इस्तेमाल कर रहा है. रईसी ने यूएन में अपने पूर्ववर्ती हसन रूहानी से भी ज़्यादा सख़्त रुख़ अपनाया.

रईसी ने पिछले महीने ही राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. इब्राहिम रईसी ईरान की सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस हैं और उन्हें रूढ़िवादी माना जाता है.

रईसी ने यूएन महासभा को तेहरान से वर्चुअली संबोधित किया. उन्होंने कहा, ''दुनिया के कई देशों के साथ अमेरिका प्रतिबंध को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. कोविड महामारी के वक़्त में इस तरह की आर्थिक सज़ा मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है.''

रईसी ने कहा, ''हमारे क्षेत्र अमेरिका न केवल अधिनायकवादी व्यवहार कर रहा है बल्कि पश्चिमी पहचान थोपने में लगा हुआ है. लेकिन उसे इसमें नाकामी ही हाथ लगी है. इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका ख़ुद गया नहीं बल्कि उसे वहाँ से निकाला गया है. अमेरिकी सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान से निकलना पड़ा और इराक़ से भी ऐसा ही करना पड़ रहा है.''

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अमेरिका को निशाने पर लेते हुए रईसी ने इसी साल छह जनवरी को अमेरिका के कैपिटल हिल ट्रंप समर्थकों की हिंसा का भी हवाला दिया है. रईसी ने कहा, ''कैपिटल से काबुल तक स्पष्ट संदेश है कि अमेरिकी अधिनायकवादी सिस्टम की कोई साख है. वो चाहे अमेरिका के भीतर हो या बाहर.''

ईरान के राष्ट्रपति ने कहा, ''पश्चिमी तौर-तरीक़ों को थोपने की कोशिश नाकाम हो गई है. इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान से ये साबित हो गया है. दुनिया को अमेरिकी नारों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है. वो चाहे ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट हो या बाइडन का अमेरिका बैक.''

रईसी ने ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति की तारीफ़ की और इसे धार्मिक लोकतंत्र से भी जोड़ा. उन्होंने पश्चिम में आतंकवाद में हुई बढ़ोतरी को अध्यात्म में आई गिरावट से भी जोड़ा. रईसी ने अपने संबोधन में कहा कि अमेरिका से बातचीत तभी शुरू हो सकती है जब कोई ठोस नतीजे की उम्मीद होगी और प्रतिबंध हटाए जाएंगे. उन्होंने कहा कि ईरान अमेरिकी सरकार के वादों पर भरोसा नहीं कर सकती है.

अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा है कि उन्होंने रईसी के भाषण को सुना है लेकिन वे चाहते हैं कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर कुछ ठोस करे.

रईसी ने कहा कि ईरान के रक्षा सिद्धांत में परमाणु हथियार और प्रतिरोधक नीति (डेटरेंस पॉलिसी) की कोई जगह नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूएन महासभा को संबोधित करते मंगलवार को कहा था कि अमेरिका अपने रुख़ पर कायम है कि वो ईरान को परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देगा.

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ईरान-अमेरिका की दुश्मनी

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ईरान और अमेरिका की दुश्मनी का लंबा इतिहास है. अमेरिका के साथ ईरान की दुश्मनी का पहला बीज 1953 में पड़ा, जब अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख़्तापलट करवा दिया. निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक़ को गद्दी से हटाकर अमेरिका ने सत्ता ईरान के शाह रज़ा पहलवी के हाथ में सौंप दी थी.

ये पहला मौक़ा था जब अमेरिका ने शांति के दौर में किसी विदेशी नेता को अपदस्थ किया था. इस घटना के बाद इस तरह से तख़्तापलट अमेरिका की विदेश नीति का हिस्सा बन गया. 1953 में ईरान में अमेरिका ने जिस तरह से तख्तापलट किया, उसी का नतीजा थी- 1979 की ईरानी क्रांति.

क्रांति के परिणामों के तत्काल बाद ईरान और अमरीका के राजनयिक संबंध ख़त्म हो गए थे. तेहरान में ईरानी छात्रों के एक समूह ने अमेरिकी दूतावास को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था और 52 अमरीकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा था.

कहा जाता है कि इसमें ख़ुमैनी का भी मौन समर्थन था. अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर से इनकी मांग थी कि शाह को वापस भेजें. शाह न्यूयॉर्क में कैंसर का इलाज कराने गए थे. बंधकों को तब तक रिहा नहीं किया गया जब तक रोनल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन गए.

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इसराइल पर भी भड़के रईसी

रईसी ने इसराइल को भी आड़े हाथों लिया. ईरानी राष्ट्रपति ने कहा, ''कब्ज़ा करने वाला यहूदी शासन राज्य प्रायोजित आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रबंधक है. उसका एजेंडा ही है- महिलाओं और बच्चों का क़त्लेआम करना. ग़ज़ा को दुनिया की सबसे बड़ी जेल बना दिया गया है.''

रईसी के आक्रामक संबोधन के जवाब में इसराइल के विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया है. रईसी को इसराइली विदेश मंत्रालय ने तेहरान का कसाई कहते हुए संबोधित किया है और लिखा है, ''ईरान में अयतोल्लाह का शासन मध्य-पूर्व के लिए ख़तरा है. ईरान में तेहरान के कसाई के नेतृत्व में जो सरकार बनी है, उसके ज़्यादातर मंत्री आतंकवादी गतिविधियों के संदिग्ध हैं. पिछले 40 सालों से ईरान में अतिवादी सरकार है और इससे ईरान के लोगों को काफ़ी नुक़सान हुआ है. यह सरकार पूरे मध्य-पूर्व को अस्थिर करने में लगी है.''

इसराइली विदेश मंत्रालय ने कहा, ''रईसी दुनिया को बेवकूफ़ बनाने में लगे हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि ईरान की इस सरकार की निंदा करे और इस अतिवादी शासन के हाथ परमाणु हथियार ना लग जाए, इसे रोकने की कोशिश करे.''

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चीनी राष्ट्रपति का भी अमेरिका पर निशाना

संयुक्त राष्ट्र की 76वीं आम सभा को संबोधित करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी अमेरिका पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधा है.

चीनी राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा, ''लोकतंत्र पर किसी एक मुल्क का सुरक्षित अधिकार नहीं है. यह सभी देशों के लोगों का अधिकार है. बाहर से सैन्य हस्तक्षेप और कथित लोकतांत्रिक परिवर्तन से कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि इससे नुक़सान ही होगा.''

अपने संबोधन में चीनी राष्ट्रपति ने एक अहम घोषणा भी की. शी जिनपिंग ने कहा कि चीन अब विदेशों में नए कोल पावर प्रोजेक्ट पर काम नहीं करेगा. इसे चीन के ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़िलाफ़ उठाए गए अहम क़दम के तौर पर देखा जा रहा है.

शी जिनपिंग ने कहा, ''चीन दूसरे देशों को कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा के उत्पादन में मदद करेगा. हम अब विदेशों में नए कोल पावर प्रोजेक्ट पर भी काम नहीं करेंगे.''

शी जिनपिंग ने अपने संबोधन में बहुध्रुवीय दुनिया की भी वकालत की और कहा कि दुनिया को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के नियमों के हिसाब के अंतरराष्ट्रीय नियम तय करने चाहिए.

शी जिनपिंग ने यूएन महासभा को बीजिंग से वर्चुअली संबोधित किया. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे संबोधित करने आज यानी बुधवार को अमेरिका रवाना हुए हैं.

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