रूस और यूक्रेन में युद्ध की आशंका के कारण को समझिए

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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की स्थिति बनी हुई है और इस तनाव से पश्चिमी देशों में भारी चिंताएं हैं.
पश्चिमी देशों की चिंताएं हैं कि अगर यह तनाव बढ़कर युद्ध की दहलीज़ तक पहुँचा तो इसकी आग पूरे यूरोप में फैल सकती है और दूसरे विश्व युद्ध के बाद इतने ख़राब हालात देखे नहीं गए होंगे.
पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया संस्थाओं का अनुमान है कि यूक्रेन की सीमा पर टैंकों और तोपों के साथ रूस के अभी एक लाख सैनिक तैनात हैं. अमेरिका का मानना है कि जनवरी के अंत तक इसकी संख्या 1.75 लाख तक बढ़ सकती है.
अमेरिका और उसके नेटो सहयोगी पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि यूक्रेन पर रूस के किसी भी हमले के 'गंभीर आर्थिक परिणाम' होंगे लेकिन फिर भी रूस 'एक खेल खेलने' में लगा हुआ है.
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कई विश्लेषकों का मानना है कि रूस यह दबाव की रणनीति के तहत कर रहा है ताकि यूक्रेन को पश्चिमी देशों के सुरक्षा संगठन नेटो में जगह न मिल सके.
रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नेटो का सदस्य बना तो नेटो के ठिकाने उसकी सीमा के नज़दीक खड़े कर दिए जाएंगे. हालांकि नेटो ने रूस को भरोसा दिलाया है कि उससे उसको कोई ख़तरा नहीं है.
रूस और यूक्रेन के बीच विवाद को अभी नेटो से जोड़कर देखा जा रहा है लेकिन दोनों के बीच कई मौक़ों पर संघर्ष हो चुका है. इनमें 2014 की जंग भी शामिल है, जब रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया छीनकर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया था.
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा.
रूसी साम्राज्य में कभी था यूक्रेन
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यूक्रेन कभी रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था और 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिली और तभी से यूक्रेन रूस की छत्रछाया से निकलने की कोशिशें करने लगा.
इसके लिए यूक्रेन ने पश्चिमी देशों से नज़दीकियां बढ़ाईं. उसने ऐसा फ़ैसला तब लिया, जब उसके उत्तर और पूर्वी हिस्से की एक लंबी सीमा रूस से लगती है.
साल 2010 में विक्टर यानूकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने और उन्होंने रूस से बेहद क़रीबी संबंध बनाए. इन संबंधों की बुनियाद पर उन्होंने यूरोपीय संघ में शामिल होने के समझौते को ख़ारिज कर दिया. इसकी प्रतिक्रिया ये हुई कि भारी विरोध प्रदर्शन के कारण साल 2014 में उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.
इसके बाद रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ आक्रामकता दिखाई और कथित तौर पर वहाँ के अलगाववादियों की मदद की जिसके परिणामस्वरूप उसने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर क़ब्ज़ा कर लिया.
रूस पर आरोप लगते हैं कि वो यूक्रेन के अलगाववादियों को पैसे और हथियारों से मदद कर रहा है. रूस इन आरोपों को ख़ारिज करता है. हालांकि वो खुलकर अलगाववादियों का समर्थन करता है.
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यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में मौजूद डोनबास को औद्योगिक शहर माना जाता है. वहां पर 2014 में हुई लड़ाई के दौरान 14,000 से अधिक लोग मारे गए थे.
यूक्रेन और पश्चिमी देशों के आरोप हैं कि रूस अपने सैनिकों से भी विद्रोहियों की मदद कर रहा है. हालांकि रूस कहता है कि विद्रोहियों का साथ देने वाले रूसी स्वयंसेवक हैं.
2015 में फ्रांस और जर्मनी ने एक शांति समझौते की मध्यस्थता की, जिससे जंग रुक सकी लेकिन इससे कोई राजनीतिक समाधान नहीं निकला.
इस साल संघर्ष विराम उल्लंघन में तब तेज़ी दिखी जब यूक्रेनी सीमा के नज़दीक रूसी सैनिकों ने युद्धाभ्यास शुरू किया लेकिन अप्रैल में रूस के इसे रोकने के बाद तनाव थोड़ा कम हुआ.
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अभी यूक्रेनी सीमा पर क्या हो रहा है?
अमेरिकी ख़ुफ़िया अधिकारियों ने बीते सप्ताह आशंका जताई थी कि रूस यूक्रेनी सीमा पर 1.75 लाख जवानों की तैनाती करने जा रहा है और उनमें से आधे विभिन्न जगहों पर तैनात कर दिए गए हैं और 2022 की शुरुआत में रूस हमला कर सकता है.
यूक्रेन ने शिकायत की थी कि रूस ने उसकी सीमा से कुछ ही दूरी पर 90,000 सैनिकों की तैनाती कर दी है.
यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि रूस की 41वीं आर्मी की यूनिट रूस में येलनया शहर के नज़दीक है. यूक्रेन की उत्तरी सीमा से यह शहर सिर्फ़ 260 किलोमीटर दूर है.
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रूस के ये टैंक यूक्रेन की सीमा से क़रीब तीन सौ किलोमीटर दूर खड़े हैं
यूक्रेन के रक्षा मंत्री ओलेक्सी रेज़निकोफ़ ने सांसदों को शुक्रवार को बताया कि यूक्रेन के नज़दीक और रूस के क़ब्ज़े में मौजूद क्रीमिया में 94,300 रूसी सैनिक मौजूद हैं और जनवरी में 'बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी' संभव है.
रूस ने अपने जवानों की तैनाती पर कोई प्रतिक्रिया नहीं ज़ाहिर की है, उसका कहना है कि उसके क्षेत्र में जवानों की तैनाती से किसी को चिंता नहीं होनी चाहिए.
ताज़ा तनाव की वजह?
रूस का आरोप है कि यूक्रेन ने 2015 के शांति सौदे का सम्मान नहीं किया है और पश्चिमी देश यूक्रेन को इसका पालन कराने में नाकाम रहे हैं.
इस सौदे के तहत रूस को एक कूटनीतिक जीत मिली थी और उसने यूक्रेन को विद्रोहियों के गढ़ों को स्वायत्तता देने और उन्हें आम माफ़ी देने के लिए बाध्य किया था. हालांकि, इस सौदे पर अमल नहीं हो पाया.
इस पर अमल न होने के लिए यूक्रेन रूस को ज़िम्मेदार ठहराता है. उसका कहना है कि रूसी समर्थित अलगाववादियों ने संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और पूर्व में विद्रोहियों के गढ़ में रूसी सैनिकों की मौजूदगी है. हालांकि, रूस इन दावों को ख़ारिज करता रहा है.
इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच रूस ने यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ बैठक करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि 2015 के शांति समझौते को यूक्रेन द्वारा न मानना व्यर्थ है.
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वहीं रूस लगातार अमेरिका और उसके नेटो सहयोगी देशों पर यूक्रेन की हथियारों से मदद करने और संयुक्त सैन्य अभ्यास करने की आलोचना करता रहा है. उसका कहना है कि ये यूक्रेन के सैनिकों को बलपूर्वक विद्रोहियों के इलाक़े को दोबारा क़ब्ज़ा करने के लिए प्रेरित करता है.
इस साल की शुरुआत में पुतिन ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यूक्रेन के पूर्वी हिस्से पर क़ब्ज़े की सैन्य कोशिशों के 'यूक्रेनी राष्ट्र के दर्जे के लिए गंभीर परिणाम' होंगे.
रूसी राष्ट्रपति लगातार रूसियों और यूक्रेनियों को 'एक ही लोग' कहते आए हैं और वो दावा करते हैं कि सोवियत समय में यूक्रेन को ग़लत तरीक़े से ऐतिहासिक रूसी ज़मीन मिल गई थी.
वहीं पुतिन की चिंता यूक्रेन के नेटो में शामिल होने को लेकर भी है. वो चेता चुके हैं कि नेटो उनके लिए एक 'सीमा रेखा' की तरह है. उन्होंने कहा है कि नेटो सदस्यों की यूक्रेन में सैन्य ट्रेनिंग सेंटर बनाने की योजना है जो यूक्रेन को नेटो में बिना शामिल हुए उसके ख़िलाफ़ सैन्य मज़बूती देगी.
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बीते सप्ताह पुतिन ने ज़ोर देते हुए कहा था कि रूस को अमेरिका और उसके सहयोगियों से 'विश्वसनीय और दीर्घकालिक सुरक्षा गारंटी' चाहिए कि वे 'पूर्व की ओर नेटो के किसी भी क़दम से वो ख़ुद को दूर रखेंगे और रूसी क्षेत्र के नज़दीक उसके लिए ख़तरा पैदा करने वाले हथियारों की तैनाती' से भी दूर रहेंगे.
पुतिन ने यहाँ तक भी कह दिया है कि उसे इस पर कोई ज़ुबानी भरोसा नहीं बल्कि 'क़ानूनी गारंटी' चाहिए.
बीते सप्ताह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच इसी मुद्दे पर एक वर्चुअल बैठक हुई थी.
पुतिन के विदेश मामलों के सलाहकार यूरी उशाकोफ़ ने बताया है कि अपनी मांगों के बारे में पुतिन ने बाइडन को इसी बैठक में सूचित कर दिया था. हालांकि कई विश्लेषकों का मानना है कि रूस की मांग को बाइडन ने कोई तवज्जो नहीं दी है.
बाइडन ने शुक्रवार को कह दिया था वो 'किसी की भी सीमा रेखा को स्वीकार नहीं करने वाले हैं.'
पुतिन की दबाव की रणनीति?
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अप्रैल में रूस को ये लगा था कि सैन्य ताक़त दिखाने की रणनीति काम कर रही है और अब वो इसे ही दोहरा रहा है.
राष्ट्रपति पुतिन ने बीते सप्ताह रूसी राजनयिकों से कहा था, "हमारी हालिया चेतावनियों को सुना गया है और प्रभाव देखने लायक रहा है. तनाव बढ़ गया है."
पुतिन ने तर्क दिया कि तनाव बढ़ने से पश्चिमी देश रूस को नज़र में लाते हैं और उसे नज़रअंदाज़ नहीं करते हैं.
मॉस्को स्थित थिंक टैंक आरआईएसी से जुड़े आंद्रेई कोर्तुनोफ़ कहते हैं, "यदि यूक्रेन के नज़दीक सैन्य गतविधियां आक्रामकता से दिख रही हैं, तो इसका मतलब ये नहीं है कि सीधी सैन्य कार्रवाई होने जा रही है, असल में ये संदेश है जो पुतिन देना चाहते हैं."
यूक्रेन के लिए ये संदेश है कि कुछ ऊंटपटांग न करे, जैसे की डोनबास पर फिर से नियंत्रण करने की कोशिश करना.
कोर्तुनोफ़ मानते हैं कि पश्चिमी देशों के लिए रूस का संदेश ये है कि यूक्रेन में नेटो की ताक़त न पहुंचाई जाए, जैसे की नए तरह के उन्नत हथियार.
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