तबलीग़ी जमात पर सऊदी अरब ने किस डर से लगाया है प्रतिबंध?
- मोहम्मद ज़ुबैर ख़ान
- पत्रकार

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फ़रवरी 2007 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में तबलीग़ी जमात के एक आयोजन की समाप्ति का दृश्य
"सऊदी अरब का मुल्क एक ही जमात (दल) और रास्ते पर चल रहा था तभी बाहर से कुछ जमातें आईं, इस एक जमात और एक मज़हब पर चलने वाले लोगों को बांटने की कोशिश की गई ताकि उनकी (सऊदी नागरिकों) एकता टुकड़े-टुकड़े की जा सके. इन प्रसिद्ध जमातों में से एक तबलीग़ी जमात भी है जो अपने आप को इस मुल्क (सऊदी अरब) में अहबाब (मित्र) के नाम से पुकारते हैं."
"यह जमात मूल रूप से हिंद (भारतीय उपमहाद्वीप) से है. तबलीग़ जमात इस्लाम के पैग़ंबर के कई तरीक़ों के ख़िलाफ़ चलती है. ये जमात बिना ज्ञान के दावत के लिए निकलती है. ये अल्लाह और इस्लाम के पैग़ंबर के तरीक़ों के ख़िलाफ़ है. ये वो जमात है जिससे आतंकवादी समूह भी पैदा हुए. उनके साथ चलने वाले लोग ज्ञान की कमी का शिकार होकर तकफ़ीरी (किसी मुसलमान को धर्म भ्रष्ट कहने वाला) जमातों का भी शिकार हो जाते हैं."
"इसी वजह से आतंकी सगंठनों के लोग जो कि यहां (सऊदी अरब) की जेलों में बंद हैं, उनके बारे में जांच की गई तो पता चला कि ये पहले तबलीग़ी जमात में शामिल थे. इस मुल्क (सऊदी अरब) की फ़तवा देने वाली कमिटी ने फ़ैसला किया है कि इस जमात (तबलीग़ी जमात या अहबाब) के साथ शामिल होना वैध नहीं है."
"हम पर अनिवार्य है कि हम उनके निमंत्रण को क़बूल न करें. ये जमात और इस जैसी जमातें हमारी एकता को टुकड़े-टुकड़े कर देंगी. ये किसी भी सूरत में वैध नहीं है."
ये ख़ुतबा (उपदेश) सऊदी अरब की एक बड़ी जामा मस्जिद में शुक्रवार के रोज़ दिया गया था. इससे मिलते-जुलते ख़ुतबे तक़रीबन तमाम ही जामा मस्जिदों में सऊदी अरब के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के निर्देश पर दिए गए हैं.
सऊदी अरब के धार्मिक मामलों के मंत्री डॉक्टर शेख़ अब्दुल लतीफ़ बिन अब्दुल अज़ीज़ अल शेख़ ने अपने एक ट्वीट में भी सऊदी अरब में शुक्रवार के ख़ुतबे में तबलीग़ी जमात के बारे में जनता को आगाह करने की अपील की थी.
इस पर पाकिस्तान में तबलीग़ी जमात के शीर्ष नेताओं की प्रतिक्रिया जानने की कोशिशें की गईं, लेकिन उन्होंने इस पर कोई भी बात करने से इनकार कर दिया है.
हालांकि, भारत में दारुल उलूम देवबंद मदरसे ने इस पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए बयान जारी किया है जिसमें तबलीग़ी जमात पर लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताया गया है.
सऊदी अरब के धार्मिक मामलों के मंत्रालय में काम करने वाले एक सूत्र ने बताया है कि तबलीग़ी जमात पर पाबंदी कोई नई नहीं है बल्कि हालिया ट्वीट और ख़ुतबे के ज़रिए पुराने प्रतिबंधों को ही दोहराया गया है.
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सऊदी अरब में पाबंदी का पूरा मामला क्या है?
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सऊदी अरब के धार्मिक मामलों के मंत्रालय में लंबे समय तक सेवाएं देने वाले एक अधिकारी ने बताया कि तबलीग़ी जमात पर पाबंदी के मामले को समझने से पहले सऊदी अरब में जारी शासन को समझना होगा जिसके तहत सऊदी अरब में राजनीतिक और धार्मिक जमातों को क़ानून के तहत काम करने की कोई अनुमति नहीं है.
इसी तरह अब अगर सऊदी अरब में आने और काम की अनुमति यानी वीज़ा और वहां रहने की शर्तों को देखें तो पता चलता है कि सऊदी अरब में धार्मिक प्रचार या उपदेश के लिए दाख़िले की अनुमति नहीं है यानी इस तरह का कोई वीज़ा या वर्किंग वीज़ा मौजूद ही नहीं है.
अब अगर कोई व्यक्ति डॉक्टर के वीज़ा या रहने के लिए सऊदी अरब में दाख़िल होता है तो सिर्फ़ अपना काम यानी जिस अस्पताल आदि जगहों पर है तो वहां पर उसे वो काम करने की इजाज़त दी गई है. वहां पर सिर्फ़ वह स्वास्थ्य से जुड़े क्षेत्र में ही काम करेगा, उसको तबलीग़ (धार्मिक प्रचार एवं उपदेश) या निमंत्रण का काम करने की अनुमति नहीं होगी. धर्म के निमंत्रण और तबलीग़ के लिए सरकार की ओर से संगठन और अन्य लोग तय किए गए हैं.
इसी तरह अगर बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, अफ़्रीका, भारत, पाकिस्तान या अन्य देशों के किसी शिक्षक या अनुवादक को वर्किंग वीज़ा दिया जाता है तो वो शिक्षक या अनुवादक ही रहेगा. अगर वो अपने वर्किंग वीज़ा या वीज़ा में दिए गए किसी भी काम से अलग होकर कुछ करता है तो ये क़ानूनी तौर पर जुर्म है.
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तबलीग़ी जमात की शुरुआत भारत से हुई थी. सारी दुनिया में इसको तबलीग़ी जमात ही के नाम से पुकारा जाता है. मगर इसको सऊदी अरब में अहबाब के नाम से पुकारा जाता है क्योंकि सऊदी अरब में तबलीग़ी जमात के नाम से काम करने की कोई अनुमति नहीं है.
अहबाब का नाम भी शायद शासन की नज़र से बचने के लिए इस्तेमाल किया गया क्योंकि ये आम बोलचाल में बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है.
दुनियाभर से तबलीग़ी जमात के लोग सऊदी अरब में दाख़िले के लिए विभिन्न तरीक़े अपनाते हैं. अकसर उनकी वो जमातें जो कि एक-एक साल के लिए विभिन्न देशों के दौरों पर होती हैं वो उमरा, हज या पर्यटन का वीज़ा हासिल करते हैं.
इस वीज़ा के आधार पर वो दो या तीन महीने या चंद दिन सऊदी अरब के विभिन्न लोगों के बीच जाते हैं और तबलीग़ का काम करते हैं और उन लोगों को खाड़ी देशों के कुछ लोगों का भी सहयोग हासिल होता है.
इन सूचनाओं पर चंद साल पहले सऊदी अरब के विदेश और धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने सख़्त कार्रवाई की थी और इस तरह का काम करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने वाले संगठनों को सक्रिय किया गया था.
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इसके कारण कई लोगों को तबलीग़ का काम करते हुए पकड़ा गया और उनको सऊदी अरब के क़ानून के मुताबिक़ सज़ाएं दी गई थीं. इसी तरह जब चरमपंथियों के ख़िलाफ़ वैश्विक स्तर पर जंग छिड़ी तो देखा गया कि कई सऊदी नागरिक जिनकी ज़्यादा संख्या पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान गई थी वो तबलीग़ी जमात की आड़ लेकर गए थे.
इसके बाद सऊदी नागरिकों पर भी ये पाबंदी लागू कर दी गई और पाकिस्तान के राजनयिकों से कहा गया कि वो तबलीग़ के लिए सऊदी नागरिकों को वीज़ा न दें जिस पर अब भी अमल जारी है.
इन तमाम मुद्दों पर बात करने के लिए तबलीग़ी जमात के लोगों के साथ संपर्क किया गया मगर उन्होंने इन सभी मुद्दों पर बात करने से इनकार कर दिया.
धार्मिक संगठनों पर कई सालों से रिपोर्टिंग करने वाले कराची के पत्रकार अज़मत ख़ान का कहना था कि तबलीग़ी जमात के चाहे अपने सदस्यों की हत्याएं कर दी जाएं या उनके लोगों पर किसी घटना में शामिल होने का आरोप लगे, जमात इस पर बात नहीं करती है और सिर्फ़ अपना काम जारी रखती है.
तबलीग़ी जमात करती क्या है?
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अज़मत ख़ान के मुताबिक़ स्पष्ट तौर पर तबलीग़ी जमात का कोई भी काम गुप्त या छिपा हुआ नहीं है. ये लोग राजनीति में शामिल नहीं होते हैं, इनके शीर्ष लोग किसी भी धार्मिक या राजनीतिक दल के कार्यकर्ता या नेता नहीं होते हैं, इनका कोई राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक एजेंडा नहीं होता है और यह सभी को अपने साथ स्वीकार करते हैं.
उन्होंने कहा कि वह अपने साथ शामिल होने वालों में से किसी से भी नहीं पूछते कि वह उनके साथ क्यों शामिल हुए हैं, मक़सद क्या है, वो उनके साथ आने वाले हर व्यक्ति का स्वागत करते हैं. स्पष्ट तौर पर वो इस्लाम के मामलों पर बात करते हैं जिसमें लोगों को कलमा, नमाज़, अरबी में दुआएं और क़ुरान सिखाना शामिल है.
अज़मत ख़ान ने कहा कि तबलीग़ी जमात पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, भारत, अफ्रीक़ा और यहां तक कि ब्रिटेन और अमेरिका में भी पिछले कुछ वर्षों में बहुत लोकप्रिय हुई है. स्पष्ट रूप से इसकी वजह उनका ढीला-ढाला अनुशासन और अपने से जुड़े लोगों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी क़ुबूल न करना है.
यही वजह है कि आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध के दौरान कई ऐसी घटनाएं सामने आईं जिनमें कहा गया कि कुछ चरमपंथियों ने उनके यहां शरण ली थी, लेकिन तबलीग़ी जमात ने कभी भी इसकी ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की और न पाकिस्तान ने और न कभी भी किसी देश ने और न ही क़ानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियों ने तबलीग़ी जमात को इसका दोषी ठहराया.
सऊदी अरब की कड़ी प्रतिक्रिया क्यों?
लंबे समय से धार्मिक जमातों पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार सबूख़ सैयद के मुताबिक़, ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि सऊदी अरब में आतंकवादी घोषित किये गए संगठनों अलक़ायदा और इख़्वान-उल-मुस्लिमिन के सदस्यों के अलावा, साम्प्रदायिक संगठनों में शामिल लोगों ने भी तबलीग़ी जमात में शामिल होकर अपनी गतिविधियों को जारी रखा.
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सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में सऊदी अरब धीरे-धीरे रूढ़िवादी नीतियों को छोड़ रहा है
उन्होंने कहा कि हमेशा से यह राय रही है कि सऊदी अरब में पाकिस्तान और अन्य देशों की तबलीग़ी जमात की तुलना में भारत की तबलीग़ी जमात की ज़्यादा भागीदारी रही है. पिछले दिनों भारत में भी तबलीग़ी जमात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों ने तबलीग़ी जमात में शामिल लोगों को गिरफ्तार किया था जिनमें कुछ सऊदी नागरिक और अन्य लोग भी शामिल थे, जिसके बाद कुछ समय से सऊदी नागरिकों को तबलीग़ के नाम पर वीज़ा जारी नहीं किया जा रहा है और इसकी वजह सऊदी सरकार भी हो सकती है.
सबूख़ सैयद के अनुसार, ऐसा लगता है कि सऊदी सरकार को संदेह है कि अहबाब के नाम से मशहूर तबलीग़ी जमात में बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल हैं, जो वर्तमान सऊदी शासन के ख़िलाफ़ हैं.
उन्होंने कहा कि इसी तरह शायद उन्हें यह भी संदेह है कि ऐसे संगठन जिन पर सऊदी अरब ने प्रतिबंध लगाया हुआ है, वो तबलीग़ी जमात या अहबाब के नाम से अपनी गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं, जिससे सऊदी अरब को ख़तरा हो सकता है.
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सबूख़ सैयद ने कहा कि इसके अलावा सऊदी अरब शासन के तहत, किसी भी पार्टी को इस्लाम की व्याख्या, इस्लामी क़ानून, तबलीग़ और उपदेश देने और इस्लामी मामलों में फ़तवा जारी करने जैसे काम करने की अनुमति नहीं है बल्कि ये सारे काम सरकार अपने विभिन्न मंत्रालयों के ज़रिये ख़ुद करती है. इस स्थिति में भी वहां तबलीग़ी जमात या अहबाब के काम करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं है.
उन्होंने कहा कि सऊदी अधिकारियों के हालिया ट्वीट और शुक्रवार के धर्मोपदेश में तबलीग़ी जमात के बारे में एक बार फिर से बात करने का मतलब तबलीग़ी जमात या अहबाब के सदस्यों को चेतावनी जारी करना हो सकता है. संभवतः अगर कोई गतिविधि सऊदी सरकार के संज्ञान में आती है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई भी हो सकती है.
सबूख़ सैयद के अनुसार, तबलीग़ी जमात की गतिविधियां सरकार की नज़र में एक रूढ़िवादी माहौल पैदा कर सकती हैं और दोबारा चेतावनी करने का उद्देश्य रूढ़िवादी परंपराओं को छोड़ने की नीति भी हो सकती है.
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