जल्दी आओ, टाइटैनिक डूब रहा है..

15 अप्रैल 1912 को आधी रात से ज़्यादा वक़्त बीत चुका था. 21 साल के हैरल्ड कॉटैम सोने की तैयारी कर रहे थे.
उस दिन के लिए आरएमएस कारपैथिया जहाज़ पर उनका काम ख़त्म हो चुका था और वो ट्रांसमीटर पर अमरीका के केप कॉड से प्रसारित होने वाले समाचार सुन रहे थे.
इस बीच, उन्होंने कुछ संदेश उठाए जो टाइटैनिक के लिए रखे गए थे और टाइटैनिक से संपर्क साधा.
उनका ये फ़ैसला बहुत अहम था. मोर्स कोड में जवाब आया: "हम बर्फ़ से टकरा गए हैं, जल्दी आओ."
साल 1956 में कॉटैम ने बीबीसी से कहा था कि शुरुआत में उन्होंने टाइटैनिक के वायरलैस ऑपरेटर जैक फ़िलिप्स से सवाल पूछा.
"मैंने कहा 'क्या मामला गंभीर है?' और फ़िलिप्स ने कहा 'हां ये सीओडी (रेडियो पर मदद का संदेश) है. जितनी जल्दी हो सके यहां आओ."
उन्होंने जहाज़ की स्थिति जानी और जहाज़ के ब्रिज (जहां से जहाज़ का नियंत्रण होता है) पर पहुंचे, जहां उन्होंने एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की.
लेकिन कारपैथिया के कर्मचारियों को यकीन नहीं हुआ, शायद इसलिए क्योंकि वायरलैस एक नई तकनीक थी और माना जाता था कि टाइटैनिक डूब नहीं सकता.
'बचाव की तैयारी'
कॉटैम ने कहा, "इस जानकारी से ऐसा नहीं लगा कि टाइटैनिक वाकई उतनी तेज़ी से डूबा है, जितनी तेज़ी से डूबने का डर मुझे था. इसलिए मैंने जाकर कैप्टन के केबिन पर दस्तक दी और अंदर घुस गया."
कॉटैम ने बताया, "कैप्टन ने शायद कहा 'कौन है?' मैंने कहा 'सर, टाइटैनिक बर्फ़ से टकरा गया है और मुसीबत में है. मेरे पास टाइटैनिक की स्थिति है.' तो उन्होंने कहा 'अच्छा मुझे दो' और ड्रेसिंग गाउन पहन कर वो चले गए."
कॉटैम ने कहा कि कारपैथिया टाइटैनिक से करीब चार घंटे की दूरी पर था, कारपैथिया के कैप्टन आर्थर रॉस्ट्रॉन ने जहाज़ की गति बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए.
इस बीच, जहाज़ के कर्मचारियों को खाना और कंबल तैयार करने और हादसे में बचे लोगों के इलाज का इंतज़ाम करने के लिए कहा गया.
कॉटैम ने जो ब्यौरा दिया था वो 19 अप्रैल 1912 को न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा.
उन्होंने बताया, "जितनी तेज़ हो सकता था हम टाइटैनिक की दिशा में बढ़े और वहां सुबह होने के ठीक पहले पहुंचे. पूरे वक़्त हम टाइटैनिक के मदद के संदेश सुनते रहे. हमने आरएमएस ओलंपिक को भेजा गया संदेश सुना 'हम तेज़ी से डूब रहे हैं'."
कॉटैम को जैक फ़िलिप्स से जो आखिरी संदेश मिला वो था: "जल्दी आओ हमारा इंजन रूम बॉइलर तक भर चुका है."
डूब गया टाइटैनिक
इसके बाद कॉटैम ने कोई संदेश नहीं सुना और ये पक्का हो गया कि टाइटैनिक डूब चुका था.
टाइटैनिक के डूबने के साथ ही 1,500 अन्य यात्रियों के साथ फ़िलिप्स की भी मौत हो गई.
कॉटैम ने बताया कि जब वो टाइटैनिक के डूबने की जगह पहुंचे तो उन्होंने लकड़ी और मलबे को देखा लेकिन कोई शव नहीं दिखाई दिया.
लेकिन बाद में उन्होंने देखा कि 705 यात्रियों को, जिनमें से ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे, आरएमएस कारपैथिया पर चढ़ाया गया.
कारपैथिया उस जगह पर करीब तीन घंटे तक बना रहा और उसके बाद बाकी बचे लोगों के साथ न्यूयॉर्क के लिए रवाना हो गया.
दूसरे जहाज़, जिन्हें मदद के लिए संदेश मिला था वो कई घंटे बाद तक उस जगह पर नहीं पहुंच सके.
बाद में कारपैथिया के कर्मचारियों को, जिनमें कॉटैम भी शामिल थे, बचाव अभियान में हिस्सा लेने के लिए मेडल दिए गए. कारपैथिया के कैप्टन रॉस्ट्रॉन को नाइट की उपाधि मिली और उन्हें कांग्रेशनल गोल्ड मेडल भी मिला.
'भुला दिए गए कॉटैम'
लेकिन कॉटैम ने जो अहम भूमिका निभाई थी उसे भुला दिया गया, टाइटैनिक के बारे में जानकारी जुटाने को लेकर उत्साह रखने वाले लोग ही इसे जानते हैं.
कॉटैम के परिवार ने कहा कि इसके पीछे शायद उनकी विनम्रता और निजता की इच्छा ही वजह थी.
बाद में उन्होंने टाइटैनिक के डूबने पर साल 1958 में बनी फ़िल्म 'ए नाइट टू रिमेंबर' में अपनी ही भूमिका का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया.
हालांकि उनका परिवार ये कहता है कि उन्होंने जो काम किया उसकी अहमियत को समझा नहीं गया.
अगर उन्होंने टाइटैनिक से संपर्क नहीं साधा होता तो हादसे में बचे लोगों को समुद्र के पानी में कई घंटे और बिताने पड़ते.
हैरल्ड कॉटैम का साल 1984 में 93 साल की उम्र में निधन हो गया.
उनके कुछ बुज़ुर्ग पड़ोसी उनकी उपलब्धि जानते थे, लेकिन जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया दूसरे लोग उन्हें एक खामोश और निजता को तरजीह देने वाले व्यक्ति के तौर पर देखते रहे.
कॉटैम के सम्मान में लगे नीले फलक का शनिवार को कॉटैम की नाती ने अनावरण किया.
उनकी पड़नाती निकोला गेल ने कहा, "उन्होंने इस घटना के बारे में कभी बात नहीं की. वो न सम्मान चाहते थे और न पैसा. वो ऐसे ही व्यक्ति थे. लेकिन उन्होंने अगर वो काम नहीं किया होता तो कई और लोगों की मौत होती."
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)