कोलंबिया: कैमरे में क़ैद संघर्ष की दास्तान

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लातिन अमरीकी देश कोलंबिया में कम्युनिस्ट विद्रोही गुट रिवोल्यूशनरी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ऑफ़ कोलंबिया या एफ़एआरसी - जिसे आमतौर पर फ़ार्क बुलाया जाता है; और सरकार के बीच शांति समझौते पर दस्तख़त हुए हैं.
फ़ोटोग्राफ़र जीसस एबेड कोलोरैडो लोपेज़ 50 साल तक चलने वाले इस संघर्ष के अहम 25 सालों के साक्षी रहे है. उन्होंने कई महत्वपूर्ण क्षणों को अपने कैमरे में क़ैद किया है.
लोपेज़ के दादा-दादी कोलंबिया के शहर सैन कार्लोस एंटीकिया में रहते थे. इस इलाक़े को ला वायोलेंशिया कहा जाता है. यहां दो राजनीतिक दलों लिबरल और कंज़रवेटिव में ख़ूनी लड़ाइयां चलती रहती थीं. उनके दादा-दादी एक कंजर्वेटिव शहर में रहने वाले लिबरल थे.
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एक रात भीड़ ने आकर उनके दादा की हत्या कर दी और सबसे छोटे बच्चे का गला रेत उसे मार डाला. इस घटना से दुखी उनकी दादी ने खाना खाना छोड़ दिया और चार महीने बाद उनकी मौत हो गई.
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सामूहिक अंत्येष्टि. नेशनल लिबरेशन आर्मी के गुरिल्लाओं ने 1998 में एक ही दिन 78 लोगों को मार दिया था.
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कोलंबियाई सेना ने 1999 में जुराद चोको में गुरिल्लों पर पलटवार किया.
कोलंबिया की हिंसा और संघर्ष को कवर करने वाले लोपेज़ अकेले पत्रकार थे.
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साल 1995 में गुरिल्ला हमले के शिकार लोगों के रिश्तेदार
लोपेज़ ने लोगों के साथ व्यक्तिगत रिश्ते बनाए. इस वजह से लोगों ने उन्हें हर तरह की फ़ोटो लेने दी. एनिसीटो उन्हीं में से एक हैं, उनकी आंखों के सामने ही उनकी बीवी को गोली मार दी गई. सेना और गुरिल्लाओं ने उन्हें पत्नी को इलाज़ के लिए अस्पताल नहीं ले जाने दिया. इस वजह से उनकी मौत हो गई.
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अल चोको में एनिसीटो अपनी पत्नी उबर्टीना की ताबूत के साथ.
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साल 2002 में चोको के बोजाया में चर्च पर गुरिल्लों ने हमला कर दिया.
कोलोरैडो लोपेज़ गोरिल्ला नेताओं या सेना के जनरलों की तस्वीरें नहीं लेते थे. वे निचले स्तर के लड़ाकों और सैनिकों को तरजीह देते थे.
जैसे की यह सैनिक, जिनके काफिले पर गुरिल्लाओं ने सितंबर 1993 में हमला किया था. इसमें उनके कई साथी मारे गए लेकिन वो बच गए थे.
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गोरिल्ला हमले में बचे सैनिक अपने मृत साथियों के साथ
या फिर यह रोता हुआ सैनिक जिनकी 13 साल की बहन की विद्रोहियों ने हत्या कर दी. गुरिल्लाओं ने उन्हें धमकी दी थी कि अगर उन्होंने सेना में काम करना नहीं छोड़ा तो वो उनके परिवार की हत्या कर देंगे.
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अनुमान के मुताबिक पिछले कुछ दशकों में इस संघर्ष में दो लाख 20 हज़ार लोग मारे गए. इसमें आम लोगों की संख्या सबसे अधिक थी.
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ऑटोडिफ़ेंस यूनिडास डी कोलंबिया (एयूसी) के विद्रोहियों ने नवंबर 2002 में 18 साल की इस लड़की का अपहरण करने के बाद बलात्कार किया और उसकी बांह पर चाकू से अपने संगठन की छाप उकेर दी थी.
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सैन जोस डी अपार्ताडो में सेना के सहयोग से अर्द्ध सैनिक बलों की ओर से किए गए नरसंहार के बाद गांव छोड़ कर जाते हुए लोग.
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एंटीओकिया के एल अरो में अर्द्धसैनिक बल पांच दिन तक रहे और लोगों को यातानाएं दीं. उन्होंने कस्बे के मुख्य चौराहे पर 15 लोगों की हत्या कर दी. उन्होंने लोगों को यह सब देखने के लिए मज़बूर किया. कस्बे में लूटपाट के बाद उन्होंने आग लगा दी.
अर्द्धसैनिक बलों के जाने के बाद वहां रहने वाले लोगों ने भी कस्बे को छोड़ दिया.
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चोको प्रांत के रिओ सूचिओ में गुरिल्लाओं के ख़िलाफ़ कारवाई के दौरान सेना की ओर से गिराए गए बम से यह गडढ़ा बना. इस कार्रवाई के बाद क़रीब आठ हज़ार लोग बेघर हो गए थे.
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विद्रोहियों और सैनिकों की लड़ाई में फंसे इस स्कूल की दीवारों पर गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं.
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एंटिओकिया प्रांत के मेडेलिन शहर पर एक पहाड़ी से नज़र रखे हुए अर्द्धसैनिक बलों जवान.
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इस दौरान जीसस एबेड कोलोरैडो लोपेज़ के परिवार को भी काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा. उनके एक कज़िन को सेना ने ग़ायब कर दिया जबकि एक को फ़ार्क ने अगवा कर लिया था, जिसकी मौत हो गई.
दुख के बीच उम्मीद की किरण लोपोज़ के काम का एक विषय रहा है. एक गुरिल्ला कार्रवाई के बाद ग्रनाडा कस्बा खडंहर में तब्दिल हो गया. इसके बाद भी वहां के लोगों ने जुलूस निकाला और शांति बहाली की मांग की.
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कारतूस के बीच तितली. सैनिक को ऐसा लगा मानो वह उसकी बहादुरी को चुनौती दे रही हो.
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अपनी दुधमुंही बच्ची के साथ अपने घर लौटा विस्थापित बाशिंदा. इस व्यक्ति को गुरिल्लाओं और अर्धसैनिक बलों की कार्रवाई के बाद मज़बूरन अपना घर छोड़कर कुछ महीने के लिए विस्थापित होना पड़ा था.
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इस फ़ोटो के ज़रिए मानो लोपेज़ कहना चाहते हैं, "भूलो मत, याद रखो, शोक मनाओ और न्याय हासिल करो".
लेकिन....उम्मीद अभी बाकी है!
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एना फ़ेलीशिया वेलाक्वेज़ बहुत दिनों बाद अपने घर लौटीं तो वहां फूल लगा दिया.
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फ़ोटोग्राफ़र जीसस एबेड कोलोरैडो लोपेज़ का जन्म कोलंबिया के मेडेलिन में हुआ था. उन्होंने एल कोलंबियानो अख़बार के लिए 1992-2001 तक काम किया. उन्होंने 'मिरर डे ला विडा प्रोफंडा' यानी 'भरपूर जीवन पर एक नज़र' नाम की किताब लिखी. उनकी यह तस्वीर एक बच्चे ने ली.