मंगलेश डबराल की कविता, नसीरुद्दीन शाह की आवाज़ में

मंगलेश डबराल की कविता, नसीरुद्दीन शाह की आवाज़ में

नसीरुद्दीन शाह ने हिंदी दिवस के मौके पर मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविता 'एक भाषा में अ लिखना चाहता हूं...' पढ़ी है. आप भी सुनिए.

मंगलेश डबराल की कविता

एक भाषा में अ लिखना चाहता हूं

अ से अनार अ से अमरूद

लेकिन लिखने लगता हूं अ से अनर्थ और अ से अत्याचार

कोशिश करता हूं कि क से क़लम या करुणा लिखूं

लेकिन मैं लिखने लगता हूं क से क्रूरता क से कुटिलता

अभी तक ख से खरग़ोश लिखता आया हूं

लेकिन ख से अब किसी ख़तरे की आहट आती है

मै सोचता था फ से फूल ही लिखा जाता होगा

बहुत सारे फूल

घरों के बाहर घरों के भीतर मनुष्यों के भीतर

उनकी आत्मा में

लेकिन मैंने देखा तमाम फूल जा रहे थे

हत्यारों के गले में माना बन कर डाले जाने के लिए

कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है

भ से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है

द दमन का और प पतन का प्रतीक है

आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला

वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं

एक समाज की हिंसा

ह को हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है

हम कितना ही हल और हिरण लिखते रहें

वे ह से हत्या लिखते रहते हैं हर समय

वीडियो प्रोडक्शन: काशिफ़ सिद्दीक़ी

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