हुसैन की आख़िरी नौ पेंटिंग
भारत का पिकासो कहलाने वाले मक़बूल फ़िदा हुसैन की आख़िरी नौ पेंटिंग की लंदन में प्रदर्शनी लगी है. साल 2011 में उनका निधन हो गया था.
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भारत के पिकासो के नाम से मशहूर मक़बूल फ़िदा हुसैन की आख़िरी नौ कलाकृतियों की प्रदर्शनी लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूज़ियम में लगी है. 'भारतीय सभ्यता' नामक श्रृंखला की इन पेंटिंग्स में हुसैन साहब ने भगवान गणेश का चित्र बनाया. इससे पहले भारतीय देवी-देवताओं की कथित विवादास्पद पेंटिंग की वजह से हुसैन को देश के बाहर रहने को बाध्य होना पड़ा था.
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इस परियोजना को पूरा करने से पहले ही साल 2011 में हुसैन का इंतकाल हो गया था. उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल की पत्नी उषा मित्तल ने हुसैन को ये पेंटिंग्स कमीशन की थी. नौ में से आठ पेंटिंग ट्रिप्टिक यानी त्रिभंग शैली में है. हुसैन ऐसी 32 पेंटिंग बनाना चाहते थे. 'त्रमूर्ति' नामक इस पेंटिंग में हिंदू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, पालनहार विष्णु और संहारक महेश की छवि नज़र आ रही है. महेश के साथ गंगा को भी यहां देखा जा सकता है.
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हुसैन ने इस पेंटिंग को 'टेल्स ऑफ़ थ्री सिटीज़' का नाम दिया है. यहां दिल्ली, वाराणसी और कोलकाता के जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई है. पहले पैनल में जहां नेहरू का भारत, संसद, इंदिरा और राजीव गांधी के साथ-साथ आज़ादी की लड़ाई का भी चित्र है, वहीं दूसरे पैनल में वाराणसी नगर, विवेकानंद, हनुमान और बिस्मिल्लाह ख़ान नज़र आ रहे हैं. तीसरा पैनल कोलकाता को समर्पित है जहां सुभाष चंद्र बोस, मदर टेरेसा, सत्यजीत रे, रवींद्र नाथ टैगोर और देवी काली के चित्र देखे जा सकते हैं.
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'लैंग्वेज ऑफ़ स्टोन' यानी पत्थरों की भाषा में सभ्यता का बखान. इस त्रिभंग पेंटिंग में अजंता-एलोरा की गुफ़ाएं, कोणार्क, खजुराहो, महाबलीपुरम, क़ुतुब मीनार - इन सभी ऐतिहासिक स्थलों को रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' की पंक्तियों के संदर्भ से जोड़ा गया है जहां टैगोर लिखते हैं कि 'पत्थरों की भाषा ने किस तरह मनुष्यों की भाषा को पीछे छोड़ दिया है.'
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'भारतीय नृत्य शैली' नाम की इस पेंटिंग में पहले पैनल पर हुसैन ने अपनी पसंदीदा अदाकारा माधुरी दीक्षित को कथक की मुद्रा में दर्शाया है, वहीं दूसरे पैनल में मशहूर नर्तक उदय शंकर पहले भारतीय बैले नृत्य 'कल्पना' की एक मुद्रा में नज़र आ रहे हैं. तीसरा चित्र केरल की विख्यात नृत्य शैली कथकली का है और साथ में कथकली पर ही फ़िल्म बनाने वाले फ़िल्मकार शाजी ए करुण नृत्य की भावपूर्ण मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं.
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हुसैन ने 'पारंपरिक भारतीय त्योहार' नाम की इस पेंटिंग में होली का उल्लास दिखाया है तो दूसरे पैनल में तुलसी की पूजा करती महिलाएं नज़र आ रही हैं. तीसरी तस्वीर पूर्णिमा पर अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती महिलाओं को दर्शाया गया है. हुसैन साहब ने इन पेंटिंग्स के बारे में ख़ुद भी लिखा है कि पहली तस्वीर जहां अग्नि को समर्पित है वहीं दूसरी में पौधों और तीसरी में जल की महिमा का चित्रण है.
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इस पेंटिंग का नाम हुसैन ने दिया है 'थ्री डायनेस्टीज़' यानी तीन राजवंश. पहले चित्र में मुग़ल बादशाह अकबर की विजय यात्रा के साथ-साथ जोधा बाई की पालकी दिखाई पड़ रही है तो दूसरे चित्र में सम्राट अशोक के काल की झांकी है. युद्ध के दृश्य, अशोक की लाट और युद्ध के अंत में अशोक का हृदय परिवर्तन - इन दृश्यों के साथ ही अशोक के बौद्ध बनने को भी दर्शाया गया है.
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इस पेंटिंग को हुसैन ने 'परिवहन के साधन' नाम दिया है. पहले पैनल में रॉल्स रॉयस से लेकर रेल और एयर इंडिया के चित्र हैं. दूसरे चित्र में पंठरपुर की यात्रा है तो भक्तों की बैलगाड़ी खींचते हनुमान भी मौजूद हैं. साथ ही एक चित्र अपनी प्रेमिका को साइकिल पर बिठाकर जाते प्रेमी का चित्र भी उकेरा गया है. तीसरी तस्वीर ख़ुद हुसैन के परिवार की है जिसमें तांगे पर हुसैन के दादा अब्दुल लालटेन हाथ में थामे पीछे बैठे हैं और हुसैन तांगा हांक रहे हैं. साथ में बजाज स्कूटर पर अपने परिवार को ले जाते सरदारजी भी नज़र आ रहे हैं.
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भारतीय सभ्यता की इस महागाथा को कैनवस पर उतारते हुए हुसैन देश के आम लोगों को नहीं भूले. 'इंडियन हाउसहोल्ड' नामक इस पेंटिंग के पहले पैनल में हुसैन के दादा अब्दुल, उनकी पोती दिल्बरून्नीसा, बहू शिरीन, और ख़ुद हुसैन मौजूद हैं. दूसरा चित्र मदुरई के नंबूदरी ब्राह्मण परिवार का है. घर के मुखिया, बेटी गीता और पत्नी लक्ष्मी के साथ बेटा भी नज़र आ रहा है. त्रिभंग के आख़िरी पैनल में लुधियाना के ट्रक ड्राइवर सरदार बंटा सिंह अपने बेटे को फौजी ड्रेस में देख कर खुश हैंऔर पत्नी बीरी सिंगर की सिलाई मशीन पर कपड़े सिल रही है. हुसैन की पेंटिंग की ये प्रदर्शनी 27 जुलाई तक चलेगी. (सभी तस्वीरें - अमरेश द्विवेदी)
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