पेड़ पर उगने वाला रसगुल्ला
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़़िले की लीचियाँ काफ़ी प्रसिद्ध हैं. यहाँ लीची को पेड़ पर उगने वाला रसगुल्ला भी कहा जाता है. आइए, करें लीची के बाग़ की सैर.
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बिहार का मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला लीची के बाग़ों के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ की लीची पूरे देश में मशहूर है.
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लीची तोड़ने के लिए कई बार बच्चों से मदद ली जाती है. लीची की नाजुक टहनियां बच्चों का कम वजन ज़्यादा आसानी से सह लेती हैं.
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पेड़ से तोड़ी गई लीचियों को बोरे की झोलियों में बांध कर कुछ इस तरह नीचे उतारा जाता है.
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इस साल देर से हुई बारिश के कारण लीची कम रसीली ही रह गई और इसका आकार भी छोटा ही रहा गया.
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मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में लीची को पेड़ पर उगने वाला रसगुल्ला भी कहा जाता है.
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लीचियों को तोड़ने के बाद छांटकर गत्ते के डिब्बों में पैक किया जाता है और फिर इसे देश की विभिन्न फल मंडियों के लिए भेजा जाता है.
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लीची के बगीचों में दूर-दूर से फल के व्यापारी आते हैं. तस्वीर में कोलकाता के व्यापारी अजय सोनकर लीची के डिब्बों के साथ दिखाई दे रहे हैं. अजय बंगलौर, चेन्नई, जयपुर, अहमदाबाद जैसे शहरों में लीची भेजा करते हैं. लीची भेजने के लिए सड़क, रेल और हवाई यातायात का भी प्रयोग किया जाता है.
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लीची की मौसम में लगभग एक महीने तक बगीचों की रखवाली की जाती है. और इस दौरान बगीचा ही रखवाली करने वालों का घर-आंगन बन जाता है.
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