ख़ुद को बदसूरत समझने की 'बीमारी'
- लूसी वालिस
- बीबीसी न्यूज़

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अलइना को वहम है कि वह बदसूरत हैं
अलीना को लगता है वह बदसूरत हैं. हालांकि इसमें ज़रा भी सच्चाई नहीं है. दरअसल, अलीना बॉडी डिसमॉर्फ़िक डिसऑर्डर (बीडीडी) से पीड़ित हैं. इस बीमारी से पीड़ित शख्स को लगता है कि वह ठीक नहीं दिखता और उसमें कोई दोष हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ 50 में से एक व्यक्ति बीडीडी से पीड़ित है लेकिन हम में से ज़्यादातर लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं. यहां तक कि कुछ डॉक्टरों को भी इस बीमारी के बारे में पता नहीं है.
20 साल की अलीना ने कहा, ''मुझे लगता है कि दूसरे लोगों को मेरा चेहरा देखने में ठीक नहीं लगता है. सच में यह कितनी ख़राब स्थिति है. मैं अपने पूरे चेहरे पर दाग़ देखती हूं जबकि मेरी मां ने कहा कि उसे कोई निशान नहीं दिखता है. मुझे अपनी स्किन ऊबड़-खाबड़ और दाग़दार लगती है. मुझे लगता है कि मेरी नाक चिपकी हुई, काफ़ी बड़ी और टेढ़ी है. मुझे अपनी आंखें भी काफ़ी धंसी हुईं दिखती हैं.''
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अलइना
अलीना काफ़ी ख़ूबसूरत हैं लेकिन वह जब ख़ुद को आईने में देखती हैं तो उन्हें इसका अहसास नहीं होता. जब वह बीडीडी से बुरी तरह पीड़ित थीं तब ख़ुद को बार-बार आईने में देखती थीं. इसे लेकर अलीना काफ़ी परेशान रहती थीं. कुरूप दिखने के वहम में वह क्या-क्या नहीं करती थीं. वह मेकअप में चार घंटे लगाती थीं फिर भी उनकी परेशानी ख़त्म नहीं होती.
अलीना ने कहा, ''चेहरे पर चार-पांच लेयर तक कॉस्मेटिक इस्तेमाल करती थी. आंखों के लिए भी मेकअप उसी तरह करती थी. यह मेकअप काफ़ी गहरा होता था और अब भी जारी है. थोड़ी सी कमी से मैं परेशान हो जाती हूं.''
घुंघराले बालों वाली यह लड़की तस्वीरों में बेहद ख़ुश दिखती थी लेकिन 14 साल की उम्र के बाद चीज़ें बदलने लगीं.
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अलइना
अलीना का कहना है, "उस वक्त मैंने ध्यान नहीं दिया था. अब मैं जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो बीडीडी के लक्षण साफ़ दिखते हैं. उदाहरण के लिए जब मैं स्कूल में थी तो सभी चीज़ों को लेकर काफ़ी जागरूक रहती थी. मैं देखती थी कि मुझे कौन देख रहा है. मुझे देखकर कौन हंस रहा है. मैं यह भी देखती थी कि मुझे देखकर कौन बात कर रहा है. मैं अक्सर बाथरूम जाती थी ताकि ख़ुद को देख सकूं कि कैसी दिख रही हूं. बाथरूम में मैं आईने के सामने खड़ी हो जाती थी.''
15 साल की उम्र में अलीना ने स्कूल जाना बंद कर दिया. अलीना को उनकी मां स्कार्लेट गाड़ी से स्कूल छोड़ देती थीं लेकिन यह भी नाकाफ़ी साबित हुआ. स्कार्लेट कार में बेटी को वापस घर लाती थीं और फिर स्कूल भेजने की कोशिश करती थीं लेकिन हर बार उन्हें नाकामी हाथ लगती थी. इसी तरह अलीना लगातार अलग-थलग होती गईं. यह उनकी मां के लिए किसी सदमा से कम नहीं था. स्कार्लेट ने महसूस किया कि उनकी बेटी के व्यवहार में बदलाव हो रहा है.
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स्कार्लेट ने कहा, ''पहले दो और तीन सालों में हमलोग को पता नहीं चला कि हो क्या रहा है. आख़िर एक तेज़-तर्रार लड़की बुरी तरह से बिखर रही थी. हमें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. वह लगातार बिस्तर पर लेटी रहती थी. यह मेरे लिए बेहद दुखद था क्योंकि मैं जानती हूं कि हर मां यही सोचती है कि उसके बच्चे ख़ूबसूरत हैं. अलीना के साथ बिल्कुल ऐसा ही था. उसकी ख़ूबसूरती पर किसी को शक नहीं हो सकता. उसे हर कोई देख कर अंदाज़ा लगा सकता है. यह बेहद परेशान करने वाला है और मैं जानती हूं कि वह अब भी ख़ुद को कुरूप समझती है तो मैं कुछ कर नहीं पाऊंगी. मैंने काफ़ी कोशिश की कि उसका ध्यान कहीं और फोकस हो. एक मां हर हाल में अपनी संतान की रक्षा करना चाहती है लेकिन मैं इस मामले में ख़ुद को असहाय महसूस करती हूं.''
स्कार्लेट ने कहा कि उनकी बेटी फोटो देखकर परेशान हो जाती है. अलीना ने लंबे समय से अपने दोस्तों को नहीं देखा है. स्कार्लेट ने कहा कि लोग उनसे पूछते हैं कि उनकी बेटी अब कैसी दिखती है. उन्होंने कहा कि उनकी बेटी की कोई नई तस्वीर नहीं हैं कि वह दिखा सकें. अलीना और स्कार्लेट को यह पता करने में काफ़ी समय लग गया है कि यह मामला बीडीडी का है. अलीना को बीडीडी का पता लगाने में काफ़ी पापड़ बेलना पड़ा. कई बार यह बीमारी पकड़ में नहीं आई. आख़िर में दक्षिणी लंदन के मॉजली क्लिनिक में यही बीमारी पकड़ में आई. पांच महीने के इलाज के बाद अलीना बीडीडी की चपेट से बाहरे निकल रही हैं.
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