दुनिया में पहली बार- बचपन में अंडाशय फ़्रीज़, सालों बाद हुआ बच्चा

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इनके लिए यह किसी चमत्कार की तरह है
लदंन में एक महिला के फ्रीज़ किए हुए अण्डाशय उत्तकों को फिर से स्थापित करने के बाद बच्चे को जन्म दिया है. कहा जा रहा है कि यह दुनिया की पहली ऐसी घटना है.
जब यह महिला बच्ची थी, तभी उसके अण्डाशय उत्तकों को सुरक्षित रख लिया गया था.
बचपन में ही अण्डाशय उत्तकों को निकालने के बाद फिर से स्थापित कर मां बनने वाली यह दुनिया की पहली महिला हैं.
मोअज़ा अल मातरूषी की उम्र 24 साल है.
मातरूषी ने मां बनने के बाद बीबीसी से कहा, ''यह किसी चमत्कार की तरह है. हम लोग लंबे समय से इस नतीजे का इंतजार कर रहे थे. मेरा बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है.''
इस महिला की डॉक्टर सारा मैथ्यू ने कहा कि इस परिवार के लिए यह काफी खुशी की बात है. सारा ने कहा कि इस नतीजे से भविष्य के लिए कई की उम्मीदें बनी हैं.

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कहा जा रहा है कि यह दुनिया का पहला ऐसा वाकया है
उन्होंने कहा, ''यह एक बड़ी कामयाबी है. हम लोग जानते थे कि अण्डाशय उत्तकों का ट्रांस्प्लांटेशन अधेड़ महिलाओं में होता है लेकिन हम ने ऐसा नहीं सोचा था कि यदि यह उत्तक बच्चियों से लिया जाए तब क्या नतीजा होगा. यह अब तक रहस्य था कि इसे फ्रीज़ करने के बाद क्या ये फिर से काम करेगा.
डॉक्टरों का कहना है कि इस नतीजे से कई लोगों की उम्मीदें को नए पंख मिले हैं. यह उन लड़कियों के लिए बहुत अच्छी ख़बर है जिनमें कैंसर, ब्लड और इम्यून डिसऑर्डर के इलाज के दौरान मां बनने की गुंजाइश कम हो जाती है.
भविष्य के लिए बनी राह
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मोअज़ा अल मातरूषी दुबई की हैं. जब उनका जन्म हुआ तब वह थैलेसेमिया से पीड़ित थीं.
इसका इलाज नहीं किया जाता तो यह बीमारी जानलेवा होती. उन्हें कीमोथिरेपी की ज़रूरत थी और इससे उनके अण्डाशय को नुकसान पहुंचता.
ऐसे में इलाज से पहले जब वह नौ साल की थीं तभी ऑपरेशन के ज़रिए अण्डाशय को निकाल दिया गया था. निकालने के बाद अण्डाशय के टिशू को सुरक्षित फ्रीज़ कर दिया गया था.
मातरूषी के अण्डाशय टिशू के टुकड़े के क्रयो-प्रोटेक्टिव एजेंट्स के साथ रखा गया था. इससे धीरे-धीरे शून्य से 16 डिग्री तापमान तक कम होता है. इसे स्टोर करने से पहले लिक्विड नाइट्रोजन में रखा जाता है. पिछले साल डेनमार्क के डॉक्टरों ने अण्डाशय टिशू के पांच टुकड़ों को फिर से बॉडी में ट्रांस्प्लांट किया था.
ट्रांसप्लांट किए जाने के बाद उनका हार्मोन्स लेवल सामान्य होने लगा था. फिर अण्डों का प्रजनन शुरू हुआ और ट्रासंप्लाटेंशन पूरी तरह से कामयाब रहा.
यदि चीजें इस दिशा में संपन्न होती हैं तो मां बनने की संभावना बढ़ जाती है. मोअज़ा और उनके पति अहमद को आईवीएफ ट्रीटमेंट से गुजरना पड़ा था. इस प्रक्रिया में आठ अंडे एकत्रित किए गए थे. इनसे तीन भ्रूण बने थे और दो को इस साल की शुरुआत में ट्रांसप्लांट किया गया था जो कि पूरी तरह से कामयाब रहा.
मोअज़ा ने कहा, ''मुझे हमेशा लगता था कि मैं एक दिन मां बनूंगी. मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी थी और आज मैं एक बेटे की मां हूं. मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है."
उन्होंने कहा- "मैं अपनी मां की शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने मुझे यह आइडिया दिया.''
इस प्रयोग को अंजाम तक पहुंचाने वाली डॉक्टर सारा ने कहा कि अण्डाशय इम्प्लांट करने के तीन महीने बाद मोअज़ा के पीरियड्स शुरू हुए थे.
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