कितनी ख़तरनाक हैं गर्भ निरोधक गोलियां?

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में 10 करोड़ से ज़्यादा महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती हैं.
हालांकि 1960 के दशक में गर्भनिरोधक गोलियों की शुरुआत के बाद से ही इसके इस्तेमाल से अलग-अलग तरह के साइड इफेक्ट्स देखने को मिले हैं.
हाल के एक अध्ययन के मुताबिक गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल से अवसाद का ख़तरा बढ़ता है. ये अध्ययन हुआ है डेनमार्क में.
डेनमार्क के अनुसंधानकर्ताओं ने करीब दस लाख महिलाओं के मेडिकल रिकॉर्ड्स को अध्ययन में शामिल किया. 15 से 34 साल की इन महिलाओं में किसी में पहले से डिप्रेसन के लक्षण मौजूद नहीं थे.
अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें बाद में अवसाद की गोलियां लेनी पड़ी या फिर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.
इस अध्ययन को मीडिया में काफ़ी सनसनीखेज़ बनाकर पेश किया गया. मीडिया में इस ख़बर को लेकर बनी सुर्खियां इस तरह से थीं- 'आप गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं, तो अवसाद की चपेट में आने के लिए तैयार रहें' या फिर 'गर्भनिरोधक गोलियां लेने वाली 70 फ़ीसदी महिलाएं अवसाद की चपेट में'.
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एक अख़बार की हेडलाइन थी- गर्भनिरोधक गोलियां का अवसाद से नाता, ये स्कैंडल से भी ज़्यादा है.
हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ़ एबरडीन में प्राइमरी केयर के प्रोफेसर फ़िल हैनाफ़ोर्ड के मुताबिक, गर्भनिरोधक गोलियों का अवसाद से नाता, उतना गंभीर नहीं है, जितना मीडिया में बताया जा रहा है.
वे कहते हैं, "बहुत कम असर होता है." वे विस्तार से बताते हैं कि प्रत्येक 100 महिलाएं जो गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल नहीं करती हैं, उनमें हर साल 1.7 महिलाएं अवसाद से पीड़ित हो जाती हैं, वहीं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करने वाली प्रति सौ महिलाओं में 2.2 महिलाएं अवसाद की चपेट में आती हैं.
यह कोई बड़ा अंतर नहीं है, हैनफोर्ड के मुताबिक ये अंतर 0.5 का है, यानी प्रत्येक साल 200 महिलाओं में एक महिला ज़्यादा.
हैनफ़ोर्ड ये भी मानते हैं कि गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के अवसाद ग्रस्त होने की दूसरी भी वजहें हो सकती हैं.
वे कहते हैं, "उदाहरण के लिए ये भी हो सकता है, जो महिला गर्भनिरोधक गोली ले रही हों, उनका अपने पार्टनर से रिश्ता टूट गया हो. इस वजह से भी वो अवसाद से घिर सकती हैं."
हैनफ़ोर्ड के मुताबिक ऐसे अध्ययन के नतीजों को हल्के या सनसनीखेज ढंग से पेश नहीं किया जाना चाहिए.
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गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल से केवल अवसाद होने का ख़तरा नहीं होता. इसके इस्तेमाल से ख़ून का थक्का जमने का ख़तरा भी होता है, जो घातक भी हो सकता है.
ये भी सच है कि अगर इन साइड इफेक्ट्स को हल्के में लिया जाए, तो वह ख़तरनाक हो सकता है.
बर्लिन के हार्डिंग सेंटर फॉर रिस्क लिटरेसी के निदेशक प्रोफेसर जर्ड गिगेरेंजर बताते हैं, "ब्रिटेन में कई परंपराएं रही हैं और उनमें एक है गर्भनिरोधक गोलियों को लेकर मौजूद डर. 1960 के दशक से ही गर्भनिरोधक गोलियां लेने वाली महिलाएं इसको लेकर चिंतित रही हैं कि इससे ख़ून का थक्का जमना या थ्रोम्बोसिस हो सकता है."
एक अध्ययन के मुताबिक तीसरी पीढ़ी की गर्भनिरोधक गोलियों के चलते थ्रोम्बोसिस होने का ख़तरा दो गुना बढ़ जाता है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि गर्भनिरोधक गोलियों का ख़तरा कितना ज़्यादा है और महिलाओं को इसको लेकर कितना आशंकित होना चाहिए?
हाल ही में, गार्डियन वेबसाइट की एक शॉर्ट फ़िल्म, उन युवा महिलाओं पर है, जिनकी मौत ख़ून का थक्का जमने से हुई और वे सब के सब हार्मोनल या गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर रही थीं.
इस वीडियो में दावा किया गया है कि महिलाएं अगर गर्भनिरोधक गोलियों से होने वाली मौतों की दर को समझ जाएं तो वे इन गोलियों का इस्तेमाल नहीं करेंगी.
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फैकल्टी ऑफ़ सेक्सुअल एंड रिप्रॉडक्टिव हेल्थकेयर के उप निदेशक डॉ. सारा हार्डमैन कहती हैं, "गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल से प्रति दस हज़ार में कुछ महिलाओं की मौत हो जाती है, ये कहना पूरी तरह से सही नहीं है."
सारा कहती हैं, "10 हज़ार महिलाओं में पांच से 12 महिलाओं में ख़ून का थक्का जमने की शिकायत होती हैं और सबकी मौत नहीं होती है, वास्तव थक्का जमने वाली महिलाओं में एक फ़ीसदी महिलाओं की मौत होती है."
सारा के मुताबिक प्रति दस लाख महिलाओं में गर्भनिरोधक गोलियों के चलते थक्का जमने से मौत के मामले महज तीन से 10 होती हैं.
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वैसे ये जानना दिलचस्प है कि गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल नहीं करने से गर्भवती होने की संभावना बढ़ जाती है और गर्भावस्था में ख़ून का थक्का जमने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है.
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