कोरोना वायरसः संक्रमण के बाद ठीक होने में कितना वक़्त लगता है?
- जेम्स गैलाघर
- स्वास्थ्य एवं विज्ञान संवाददाता

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कोविड-19 की महामारी भले ही साल 2019 के आख़िर में शुरू हुई हो लेकन अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि कुछ मरीज़ों को पूरी तरह से ठीक होने में लंबा वक़्त लग सकता है.
संक्रमण के बाद ठीक होने में लगने वाला समय इस बात पर निर्भर करेगा कि सबसे पहले आप किस हद तक बीमार हुए थे.
मुमकिन है कि कुछ लोग बीमारी से जल्द निजात पा लें और कुछ लोगों को इससे उबरने के लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़े.
उम्र, लिंग और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं, ये सभी बातें किसी व्यक्ति के कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार पड़ने के ख़तरे को बढ़ा देती हैं.
इसके इलाज में आपके शरीर के साथ जितने प्रयोग किए जाएंगे और ये जितने ज़्यादा दिनों तक चलेगा, आपके ठीक होने में उतना ज़्यादा वक़्त लगेगा.
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क्या होगा अगर मुझमें हल्के लक्षण हों?
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले ज़्यादातर लोगों में खांसी और बुखार जैसे प्रमुख लक्षण ही दिखाई देते हैं.
लेकिन उन्हें बदन दर्द, थकान, गले में ख़राबी और सिर दर्द की शिकायत हो सकती है.
शुरू में सूखी खांसी होती है लेकिन कुछ लोगों को आख़िर में खांसी के साथ बलगम भी आने लगता है जिसमें कोरोना वायरस की वजह से मारे गए फेफड़े के 'डेड सेल्स' (मृत कोशिकाएं) होते हैं.
इन लक्षणों के इलाज के तौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, दर्द नाशक के रूप में पारासिटामोल और पर्याप्त मात्रा में पानी पीने के लिए कहा जाता है.
हल्के लक्षण वाले लोगों के जल्दी ठीक होने की उम्मीद की जाती है. बुखार उतरने में हफ़्ते भर से कम समय लगना चाहिए हालांकि खांसी सामान्य से ज़्यादा वक़्त ले सकती है.
चीन से मिले आंकड़ों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विश्लेषण के मुताबिक़ संक्रमण के बाद किसी व्यक्ति को ठीक होने में औसतन दो हफ़्ते का समय लगता है.
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क्या होगा अगर मुझमें गंभीर लक्षण हो?
ये बीमारी कुछ लोगों के बहुत गंभीर स्थिति पैदा कर सकती है. संक्रमण के सात से दस दिनों के भीतर ही इसका अंदाज़ा लग जाता है.
स्वास्थ्य की स्थिति तेज़ी से बिगड़ सकती है. फेफड़े में जलन की शिकायत के साथ सांस लेना मुश्किल लगने लगता है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर की प्रतिरोध प्रणाली संक्रमण के ख़िलाफ़ लड़ने की कोशिश कर रहा होता है.
दरअसल, इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ तगड़ी प्रतिक्रिया करता है और इसका कुछ नुक़सान हमारे शरीर को भी होता है.
कुछ लोगों को ऑक्सिजन थेरेपी के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत पड़ती है.
ब्रितानी डॉक्टर सारा जार्विस कहती हैं, "सांसों की तकलीफ़ में सुधार आने में थोड़ा ज़्यादा समय लग सकता है... शरीर जलन और बेचैनी से उबरने लगता है."
सारा बताती हैं कि ऐसे मरीज़ों को ठीक होने में दो से आठ हफ़्तों का वक़्त लग सकता है. हालांकि उनकी कमज़ोरी थोड़े ज़्यादा समय तक बनी रह सकती है.
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क्या होगा अगर मुझमें इसके गंभीर लक्षण हों या मुझे आईसीयू जाने की ज़रूरत हो तो?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, 20 लोगों में से किसी एक शख़्स को ही आईसीयू जाने की ज़रूरत पड़ती है. इसमें वेंटिलेटर पर रखा जाना भी शामिल किया जा सकता है.
अगर कोई शख़्स आईसीयू में भर्ती हुआ है तो निश्चित तौर पर उसे बीमारी से उबरने में समय लगता है, बीमारी चाहे जो भी हो. आईसीयू के बाद उस शख़्स को पहले जनरल वॉर्ड में शिफ़्ट किया जाता है और उसके बाद ही कहीं जाकर उसे घर जाने की अनुमति मिलती है.
फ़ैकल्टी ऑफ इंटेंसिव केयर मेडिसिन के डीन डॉ. एलिसन पिटार्ड का कहना है कि क्रिटिकल केयर के बाद किसी भी शख़्स को नॉर्मल लाइफ़ में लौटने में 12 से 18 महीने लग सकते हैं.
अस्पताल के बिस्तर पर लंबे समय तक पड़े रहने से मांसपेशियों को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है. रोगी कमजोर हो जाता है और ऐसे में मांसपेशियों में दोबारा ताक़त आने में समय लगता है. कुछ मामलों में तो लोगों को दोबारा से नॉर्मल तरीके से चलना-फिरना करने के लिए फ़िज़ियोथेरेपी तक लेनी पड़ जाती है.
आईसीयू में रहने के दौरान शरीर कई तरह के इलाज और माध्यमों से गुज़रता है और ऐसे में कई बार साइकोलॉजिकल परेशानी की भी आशंका हो जाती है.
कार्डिफ़ एंड वेले यूनिवर्सिटी हेल्थ बोर्ड के क्रिटिकल केयर फ़िज़ियोथेरेपिस्ट पॉल ट्वोज़ कहते हैं, "इस बीमारी के साथ- वायरल थकान निश्चित रूप से एक बहुत बड़ा कारक है."
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चीन और इटली से कई ऐसी रिपोर्ट्स आयी हैं जिनमें कहा गया है कि मरीज़ों में पूरे शरीर में थकान, सांस लेने में तक़लीफ़, लगातार खांसी और सांस का उतरना-चढ़ना लक्षण दिखे. साथ ही नींद भी.
"कई बार रोगियों को ठीक होने में बहुत समय लगा...महीने भी."
लेकिन यह बात सभी पर लागू हो ऐसा नहीं है. कुछ लोग आईसीयू में कम वक़्त तक रहते हैं जबकि कइयों को लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखना होता है.
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