वैज्ञानिक, शोधकर्ता और दवा बनाने वाले आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग एक्सपर्ट के साथ मिल कर इस चुनौती को कम से कम समय में पूरी करने की कोशिश में लगे हैं.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के पहले के दौर में कोई नई वैक्सीन या दवा बनने में सालों का वक्त लगता था. योगेश शर्मा न्यूयॉर्क में हेल्थकेयर इंडस्ट्री में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग में बतौर सीनियर प्रोडक्ट मैनेजर काम करते हैं.
वो कहते हैं कि जानवरों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने से पहले रसायनों के अलग-अलग कॉम्बिनेशन बनाने और उनके मॉलिक्यूलर डिज़ाइन बनाने में ही सालों का वक्त लग जाता था.
लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग के इस्तेमाल से इस काम को सालों की बजाय अब कुछ दिनों में ही पूरा कर लिया जाता है.
वो कहते हैं, "मशीन लर्निंग के साथ रसायनों के सिन्थेसिस का काम करने पर वैज्ञानिक अब एक साल का काम एक सप्ताह में हासिल कर लेते हैं."
ब्रिटेन में मौजूद आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस स्टार्टअप कंपनी पोस्टऐरा कोरोना वायरस से निपटने के लिए दवा के खोज के काम में जुटी है.
पत्रिका केमिस्ट्रीवर्ल्ड के अनुसार के अनुसार, "आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से कंपनी दवा बनाने के लिए नए रास्ते तलाश रही है. नोवल कोरोना वायरस को हराने के लिए ये कंपनी अपने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिद्म के ज़रिए दुनिया भर के दवाई बनाने वालों की जानकारी एक साथ लेकर आ रही है."
वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.
ड्रामा क्वीन
समाप्त
कोरोना महामारी में काम में आया एआई
महामारी के दौर में ये बात सूकून देने वाली है कि जल्द से जल्द कोरोना की दवा बनाने के लिए अब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को भी काम में लाया जा रहा है.
वायरस को फैलने के लिए रोकने के लिए शुरूआती महीनों में भारत में स्वैब टेस्ट को अधिक प्राथमिकता दी गई. इस टेस्ट के नतीजे आने में दो से पांच दिन का वक्त लग सकता है.
नतीजे आने में होने वाली देरी के कारण भारत में कोरोना वायरस अधिक तेज़ी से फैला.
हालांकि ईएसडीएस सॉफ्टवेयर सोल्यूशन्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पीयूष सोमानी कहते हैं कि एक्सरे और सीटी स्कैन के ज़रिए पांच मिनट में इसका पता लगाया जा सकता है.
वो कहते हैं, "एए प्लस कोविड-19 टेस्टिंग आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग पर आधारित है. ये टेस्टिंग आपको पांच मिनट के भीतर बता सकता है कि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित है या नहीं. लक्षण वाले और बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमितों की टेस्टिंग में सरकारी अस्पतालों में इस अलग और सस्ते रेपिड डिटेक्शन टेस्टिंग सोल्यूशन की सफलता की दर क़रीब 98 फीसदी है. जिन मामलों में व्यक्ति को फेफ़ड़ों से जुड़ी अन्य समस्याएं है उनमें इस तरीके से कोविड-19 संक्रमण टेस्टिंग की सफलता दर करीब 87 फीसदी है."
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ये बात सच है कि पहले कुछ महीनों में भारत सरकार कोविड-19 टेस्ट के तौर पर स्वैब टेस्ट पर ही निर्भर कर रही थी.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च (आईसीएमआर) ने ये कहते हुए एक्सरे टेस्ट पर रोक लगा दी थी कि कोविड-19 मरीज़ों के लिए ये घातक साबित हो सकता है.
पीयूष सोमानी कहते है कि केवल स्वैब टेस्ट पर निर्भर करने से वायरस को फैलने से रोकने की कोशिश में देरी होती है.
वो कहते हैं कि अब देश में एक्सरे और सीटीस्कैन टेस्ट किए जा रहे हैं और इस कारण संक्रमितों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है.
सोमानी कहते हैं कि उनकी कंपनी एक दिन में कम से कम दस हज़ार लोगों के कोरोना टेस्ट कर रही है.
वो कहते हैं, "हमने देखा कि स्वैब टेस्ट से नतीजे आने में कम से कम दो दिन का वक्त लग जाता है. हम डॉक्टरों की मदद करना चाहते थे ताकि उनके लिए न केवल संक्रमित की जांच करने का जोखिम कम हो बल्कि कोविड-19 मरीज़ों का पता लगाने में भी तेज़ी आए."
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मेडिकल सेक्टर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस
भारत में मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग कोई नई तकनीक नहीं है. इससे पहले भी हाल के दिनों में जटिल सर्जरी जैसे कामों में इसी तकनीक को काम में लाया गया है.
बीते साल दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के लिए उज़्बेकिस्तान के एक नागरिक आए थे. उनकी किडनियां फेल हो रही थीं. उनके साथ उनके भतीजे थे जो अपनी किडनी दान करना चाहते थे.
उनकी पत्नी ममूरा अख़्मदहोजीवा इंटरनेट के ज़रिए इस सर्जरी की गवाह बनी. इस सर्जरी में एक रोबोट को काम में लाया गया जिसने एक व्यक्ति के शरीर से किडनी निकाल कर दूसरे व्यक्ति के शरीर में फिट कर दिया.
वो कहती हैं कि ये मामूली सर्जरी नहीं थी लेकिन डॉक्टर तनाव में नहीं थे. सर्जरी की तस्वीर याद कर के वो आज भी कांप जाती हैं.
वो कहती हैं, "मैं देख सकती थी कि एक रोबोट ने मेरे भतीजे के शरीर से किडनी निकाला. किडनी रोबोट के हाथ में था और मुझे चिंता थी कि अगर उसके हाथ से किडनी गिरा तो हम दूसरा डोनर कहां से लाएंगे. अल्लाह का शुक्र है कि रोबोट मे ठीक से काम किया."
ताशकंद वापिस लौट चुके इस परिवार के लिए आधुनिक तकनीक जीवनदान ले कर आई थी. फिलहाल मरीज़ और उनके भतीजे दोनों ही स्वस्थ हैं.
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साल 2004 की इस तस्वीर में डा विन्ची रोबोट सर्जन एक ऑपरेशन करते हुए.
रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी
इस तरह की सर्जरी को रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी यानी आरएएस कहा जाता है और इसके मूल में होता है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस.
अगर हम पारंपरिक तौर पर की जाने वाली सर्जरी की बात करें तो न केवल ऑपरेशन की प्रक्रिया में अधिक वक्त लगता है बल्कि मरीज़ के दोबारा पूरी तरह स्वस्थ होने में भी अधिक वक्त लगता है.
उन्हें अधिक दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है और सबसे अहम बात सर्जरी कितनी सटीक हुई इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती. आरएएस की मदद से न केवल समय बचता है बल्कि मरीज़ों का पैसा भी बचता है.
पूरे भारत में पांच सौ से अधिक अस्पतालों और क्लीनिक में आज रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी की जाती है.
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2016 की इस तस्वीर में चीनी कंपनी बाइडू के चेयरमैन रॉबिन ली आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एसिसंटेंस लॉन्च के दौरान
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का दौर
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में रोबोटिक्स असिस्टेड सर्जरी की तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है लेकिन ये तकनीक भारत में नहीं बन रही है.
देश में हेल्थकेयर क्षेत्र में काम करने वाले कुछ स्टार्टअप हैं जो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग तकनीक पर काम कर रहे हैं लेकिन मोटे तौर पर इसके डिज़ाइन, इस पर हो रहा इनोवोशन और रीसर्च का काम अमरीका और चीन में हो रहा है.
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अलीबाबा और बाइडू ऐसी कंपनियां हैं जो तकनीक के इस क्षेत्र में अधिक दिलचस्पी दिखा रही हैं और निवेश भी कर रही हैं.
चीन में इसका बाज़ार 16 अरब डॉलर का है और इसमें हर साल 40 फीसदी का इज़ाफा भी दर्ज किया जा रहा है.
अमरीका और चीन में तकनीकी रीसर्च का गढ़ माने जाने वाले कैलिफोर्निया और चीनी सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले शेन्ज़ेन में आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस पर काम करने वाली ढेरों कंपनियां हैं. इनमें से कई कंपनियां हेल्थकेयर के क्षेत्र को और आधुनिक बनाने के लिए काम कर रही हैं.
आज आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस की मदद से ऐसे रोबोट तैयार किए गए हैं जो इंसान की तरह इमोशन रखते हैं,
जापान के प्रोफ़ेसर हिरोशी इशिगुरो जिन्होंने अपना ही एक क्लोन रोबोट तैयार किया है
आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस, डेटा माइनिंग और मशीन लर्निंग के सेक्टर में हो रहे नए शोध पर गूगल ने बीते साल डॉक्यूमेन्टरी की एक सिरीज़ प्रसारित की थी.
इस सिरीज़ की शुरुआत में जो कहा गया है वो कुछ इस प्रकार है, "ऐसा लगता है कि हम एक नए युग की शुरुआत के दौर में हैं, ये है एआई का यानी आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस का युग."
लेकिन हमेशा से एक सवाल आर्टिफ़िशिय़ल इंटेलिजेंस में हो रहे रीसर्च का पीछा करता आया है. ये सवाल है - किस लक्ष्य को पाने को हम अंतिम लक्ष्य कहेंगे यानी इसका अंत कहां पर होगा.
रोबोट बनाने में सफल हो चुके वैज्ञानिक अब इसमें इंसान की तरह सोचने समझने की क्षमता और उसी की तरह इमोशन भी डालना चाहते हैं. लेकिन जानकार सवाल करते हैं कि क्या अब इस दिशा में हम जाना चाहते हैं.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स के ख़तरों को लेकर कर चेतावनी दे चुके जाने माने वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिंग्स ने कहा था "आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स ने अब तक हमारे जीवन को आसान बनाया है और हमारी मददगार रही है, लेकिन अगर हम रोबोट को इंसान की तरह की सबकुछ सिखा देंगे तो वो इंसानों से स्मार्ट बन जाएंगे और फिर हम इंसानों के लिए मुश्किल पैदा करेंगे. "
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जाने माने वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिंग्स आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स के ख़तरों को लेकर चेतावनी दे चुके हैं.
जनवरी 2015 में दुनिया भर के कई तकनीकी विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों ने एक ओपन लेटर लिख आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स के ख़तरों के बारे में आगाह किया था.
इस लेटर को स्टीफ़न हॉकिंग्स, इलोन मस्क, निक बोस्ट्रम और एरिक हॉर्विट्ज़ जैसे 8000 से अधिक लोगों का समर्थन मिल चुका है. अपनी ही क्लोन बनाने वाले वैज्ञानिक का कहना है कि जब वो दुनिया में नहीं रहेंगे तब भी उनका प्रतिरूप दुनिया में होगा, वो इसके खिलाफ़ हैं.
डर और चेतावनी के बावजूद ऐआई के काम में तेज़ी
लेकिन जानकारों की चेतावनी के बावजूद भी इस क्षेत्र में लगातार नए अनुसंधान किए जा रहे हैं. शायद जल्द ही ये भी संभव हो जाए कि इंसान का स्मार्टफ़ोन ही उसका डॉक्टर बन जाए और डॉक्टर की तुलना में स्मार्टफ़ोन ही उसे उसके स्वास्थ्य के बारे में सटीक जानकारी दे सके.
माना जा रहा है कि साल 2022 तक भारत में 44 करोड़ स्मार्टफ़ोन यूज़र होंगे और हेल्थकेयर एक बड़ा बाज़ार होगा.
अगर सही तरीके से इसका विकास और नियमन किया जाए और देश में व्यक्ति की औसत लाइफ़ एक्सपेक्टेन्सी को 66 साल से बेहतर किया जा सकता है.
स्मार्टफ़ोन के ज़रिए हेल्थकेयर पहुंचाने का कुछ काम पहले ही हो रहा है. मोबाइल ऐप्स के ज़रिए हार्ट रेट और ब्लड ग्लूकोज़ के बारे में जानकारी पता लगाई जा सकती है. ऐप के ज़रिए ब्लडप्रेशर का पता लगाने की भी कोशिश की जा रही है.
ऐपल और फिटबिट जैसी कंपनियां ऐसे रिस्टवॉच बना रहे हैं जो हार्ट रेट नोट कर सकते हैं इसके मद्देनज़र व्यक्ति को खानपान सुझा सकते है और उन्हें कितनी देर चलना है और कितना सोना है इस बारे में राय दे सकते हैं.
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आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स है क्या?
जानकार कहते हैं कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स एक तरह की तकनीक है जो कंप्यूटर को इंसान की तरह सोचना सिखाती है. इस तकनीक में मशीनें अपने आसपास के परिवेश को देख कर जानकारी इकट्ठा करती हैं और उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया देती हैं.
इसके लिए सटीक डेटा की ज़रूरत होती है, हालांकि मशीन लर्निंग और एल्गोरिद्म के ज़रिए ग़लतियां दुरुस्त की जा सकती हैं. इससे समझा जा सकता है कि आज के दौर में डेटा क्यों बेहद महत्वपूर्ण बन गया है.
भारत जैसे देश जहां प्रति एक हज़ार से अधिक की जनसंख्या पर केवल एक डॉक्टर हैं, वहां हेल्थकेयर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स की प्रचुर संभावनाएं हैं.
लेकिन क्या भारत में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेन्स को लेकर कोई राष्ट्रीय नीति है?
केंद्र सरकार के 'थिंक टैंक' के रूप में काम करने वाले नीति आयोग ने दो साल पहले आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के मुद्दे पर एक 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए राष्ट्रीय नीति' डिस्कशन पेपर बनाया था.
'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर ऑल' नाम के इस पेपर में पांच क्षेत्रों को महत्वपूर्ण माना गया था - हेल्थकेयर, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर और शहरी यातायात.
साल 2015 में स्वास्थ्य सेक्टर में तकनीक के इस्तेमाल का नियमन करने के लिए और इसे सुगम बनाने के लिए राष्ट्रीय ई-हेल्थ अथॉरिटी बनाने की भी प्रस्ताव था.
लेकिन आज आयुष्मान भारत जैसी योजना लागू देश में राष्ट्रीय हेल्थ ऑथोरिटी है. भारत सरकार का दावा है कि ये दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थकेयर योजना है.
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जानकार मानते हैं कि इन सभी दावों के बीच आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नेतृत्न लेने के मामले में अभी भारत कोसों दूर है.
एक मज़बूत राष्ट्रीय नीति और ज़रूरी क़ानूनों के अभाव में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग तो बढ़ रहे हैं लेकिन वो सुनियोजित तरीके से नहीं बढ़ रहे.
नीति अयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत न तो चीन के साथ कंपीटिशन कर सकता है और न ही करेगा. रिपोर्ट कहती है कि ये ग़ैर-चीनी और ग़ैर-पश्चिमी बाज़ारों के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के केंद्र के रूप में खुद को विकसित करेगा. ये पहला और महत्वपूर्ण कदम है लेकिन इस पर अब तक कोई मज़बूत काम नहीं हुआ है.
पीयूष सोमानी कहते हैं कि वो मानते हैं कि हेल्थकेयर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के मामले में भारत अभी अपने शुरुआती दौर में है.
वो कहते हैं, "कुछ ही कंपनियां हैं जो हेल्थकेयर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग कर रही हैं. भारत के मुक़ाबले वैश्विक स्तर पर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को लेकर लोगों की स्वीकार्यती बढ़ी है. ब्लड ट्रांसफ्यूशन से लेकर बड़े से बड़े ऑपरेशन तक अब रोबोट के ज़रिए अंजाम दिए जा रहे हैं."
जानकार मानते हैं कि अब जब दुनिया के 180 से अधिक देशों के सामने कोरोना महामारी से जंग करने की चुनौती है, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग इसमें अहम साबित हो सकते हैं.
भारत में जहां सीज़नल स्वास्थ्य संबंधी इमरजेंसी आम बात है, वहां बड़ी संख्या में लोगों की जांच में ये बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस ने साबित किया है कि इंसानों की अपेक्षा वो अधिक तेज़ी और बेहतर तरीके से काम कर सकता है.
कोरोना वायरस क्या है?लीड्स के कैटलिन सेसबसे ज्यादा पूछे जाने वाले
बीबीसी न्यूज़स्वास्थ्य टीम
कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
एक बार आप कोरोना से उबर गए तो क्या आपको फिर से यह नहीं हो सकता?बाइसेस्टर से डेनिस मिशेलसबसे ज्यादा पूछे गए सवाल
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
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वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
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दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
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हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
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ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
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कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
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शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.