स्वभाव से ही 'क़ातिल' है चिंपैंजी

एक अध्ययन में पता चला है कि चिंपैंजी में क़त्ल का स्वभाव आपसी प्रतिस्पर्धा से आता है न कि मनुष्यों की दखलंदाज़ी से.
मनुष्यों को छोड़कर केवल चिंपैंजी ही ऐसा वनमानुष है जो अपने साथी पड़ोसियों के ख़िलाफ़ एकजुट होता है और जब इनका आमना-सामना होता है तो इसके नतीजे घातक होते हैं.
हालाँकि वनमानुष विज्ञानी लंबे समय से चिंपैंजी के क़त्ल वाले स्वभाव के लिए इस वजह को मानने से इनकार करते रहे हैं.
अब तक माना जा रहा था कि चिंपैंजियों के प्राकृतिक वास ख़त्म करना और उन्हें भोजन देना जैसी मानवीय गतिविधियां उनमें आक्रामकता बढ़ा रही हैं.
लेकिन 'नेचर' पत्रिका में प्रकाशित नए शोध से पता चला है कि ऐसा नहीं है.
चिंपैंजियों के विभिन्न समुदायों के बीच हत्या की दर से वहां उनकी संख्या का पता चलता है.
नर चिंपैंजी आक्रामक
इस अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में 30 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और 18 विभिन्न चिंपैंजी समुदायों के 426 वर्षों के एकत्रित आंकड़ों को शोध में शामिल किया गया.
कुल 142 चिंपैंजियों की हत्याओं का पता चला. इसमें 58 कत्ल तो शोधकर्ताओं ने ख़ुद देखे थे.
चिंपैंजियों की एक और प्रजाति बोनोबो को भी इसमें शामिल किया गया था.
दिलचस्प ये रहा कि इसके नतीजे बिल्कुल अलग रहे. चार अलग-अलग समुदायों पर 92 वर्षों की शोध में सिर्फ़ एक बोनोबो के कत्ल का पता चला.
चिंपैंजी अपने इलाक़े में रहते हैं और इस इलाके की सीमा की निगरानी करने की ज़िम्मेदारी नर चिंपैंजियों पर होती है.
बस, यहीं पर हिंसक मुठभेड़ की संभावना सबसे अधिक होती है. गश्त कर रहा चिंपैंजी दल जब अपने पड़ोसी समुदाय के अकेले चिंपैंजी को देखते ही उस पर हमला कर सकते हैं.
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