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असली दाँत गिरकर फिर मिल सकते हैं | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विज्ञान के चमत्कार हमें अक्सर देखने और सुनने को मिलते रहते हैं और समय बीतने के साथ ये चमत्कार हमारे जीवन का न सिर्फ़ एक हिस्सा बन जाते हैं बल्कि ये सामान्य से भी नज़र आने लगते हैं. उम्र ढलने के साथ ही जिस तरह बाल सफ़ेद होने लगते हैं उसी तरह से दाँत खोने की फ़िक्र भी बढ़ती जाती है और एक वक़्त ऐसा आता है कि हल्की-फुल्की चीज़ें भी खाने के लिए नक़ली दाँतों का सहारा लेना पड़ता है. लेकिन ज़रा सोचें कि नक़ली दाँतों के सहारा लेने वाले किसी व्यक्ति के अगर असली दाँत आ जाएं तो होगा ना यह एक नया चमत्कार. विज्ञान ने यह उम्मीद जगाई है और यह संभव हो सकता है हमारे शरीर की स्टेम सेल्स कोशिकाओं के ज़रिए. स्टेम सेल्स हमारे शरीर की उन बुनियादी कोशिकाओं को कहा जाता है, जिनसे वैज्ञानिक तकनीक के ज़रिए शरीर के किसी भी अंग को विकसित किया जा सकता है. अब स्टेम सेल्स से मनुष्य के असली दाँत विकसित करने के लिए इसी वैज्ञानिक तकनीक की आज़माइश की जा रही है. लंदन के किंग्स कॉलिज के वैज्ञानिकों को इस स्टेम सेल्स परियोजना पर काम करने के लिए लगभग दस लाख डॉलर की धनराशि दी गई है. तकनीक होगा ये कि इस वैज्ञानिक पद्धति के ज़रिए स्टेम सेल्स को शरीर में विभिन्न हिस्सों की ज़रूरत के अनुरूप ढाला जाएगा.
जब एक बार इन स्टेम सेल्स को दाँतों के लिए विकसित कर लिया जाएगा तब इन्हें व्यक्ति के जबड़े में मसूड़े के नीचे उस स्थान पर प्रतिरोपित कर दिया जाएगा जहाँ से दाँत ग़ायब हो चुका हो. समझा जाता है कि इन स्टेम सेल्स को जबड़े में प्रतिरोपित करने के बाद पूरा दाँत विकसित होने में क़रीब दो महीने का समय लगेगा. इसके लिए वैज्ञानिकों ने चूहों पर पहले ही परीक्षण शुरू कर दिए हैं और किंग्स कॉलिज, लंदन के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि मानव पर भी ऐसे परीक्षण दो साल में शुरू हो जाएँगे. ब्रिटेन में औसतन पचास वर्ष की उम्र के लोगों के बारह दाँत गिर जाते हैं. भारत में भी कुछ ऐसा ही हाल है बल्कि ग्रामीण इलाक़ों में तो यह समस्या बहुत गंभीर है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कृत्रिम दाँतों की बजाय स्टेम सेल्स तकनीक से विकसित किए गए असली दाँत मसूड़ों और अन्य दाँतों को कहीं अधिक स्वस्थ बनाए रखने में भी सहायक होंगे. |
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