वेश्यावृत्ति कराने के लिए बेटियों के जन्म पर जश्न

  • चिरंतना भट्ट
  • अहमदाबाद से बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम के लिए
सोनल

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वाडिया गांव में वेश्यावृत्ति से भागी सोनल.

बदलते सामाजिक माहौल में बेटियों के पैदा होने पर जश्न की नई परंपरा शुरू हो चुकी है, लेकिन गुजरात स्थित वाडिया गांव में यह काफ़ी पुरानी परंपरा है.

इसलिए नहीं कि वहां महिलाओं को सम्मान दिया जाता है, बल्कि इसलिए कि उन्हें बड़ी होकर वेश्यावृत्ति की प्रथा को आगे बढ़ाना है.

इसी गांव में जन्मी और वेश्यावृत्ति के दलदल से ख़ुद को बचाने में सफल रही सोनल को बारह साल की उम्र में पहली बार एक ग्राहक के पास भेजा गया.

बीबीसी से बात करते हुए अब बीस साल की सोनल बताती हैं, "जब मुझे पहली बार किसी ग्राहक के पास भेजा गया तो उस वक़्त मेरी उम्र महज़ बारह साल की थी. उस दौरान मुझे कुछ पता नहीं था क्या करना है? बस इतना जानती थी मां ने कहा है तो करना है. क्योंकि बचपन से मां को भी यही करते देखती आई थी."

सोनल ने यह भी बताया कि वह तीसरी कक्षा के बाद कभी स्कूल नहीं गई. सोनल के अलावा गांव में उनके उम्र की सभी लड़कियां अलग-अलग ग्राहकों को ख़ुश करने का काम करती थी.

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सोनल बताती हैं, "मेरा भी जन्म एक ऐसे घर में हुआ जहां मां को नहीं पता मेरे पिता कौन है? क्योंकि मां का कई लोगों से संबंध था".

सोनल के दो छोटे भाई भी हैं और सोनल ने सबका भरण-पोषण करने के लिए वही किया जो उनकी मां किया करती थी. सोनल की ज़िंदगी भी शायद अपनी मां की ज़िंदगी की तरह कट जाती, लेकिन उस दौरान उनकी मुल़ाकात अनिल नाम के ग्राहक से हुई.

सोनल के मुताबिक़, "अनिल हर हफ़्ते मेरे पास आया करता था. हमारे बीच बातें होने लगी और हमें प्यार हो गया. घर के लोग हमारे बारे में जानते थे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा क्योंकि वो हमें ख़ूब पैसे देता था".

सोनल ने बताया कि इस दौरान एक बड़ी उम्र का पैसेवाला ग्राहक आया जो उन्हें अपने लिए रखना चाहता था. इसलिए घरवाले सोनल पर अनिल से रिश्ता तोड़ने के लिए दबाव बनाने लगे.

सोलन कहती हैं, "मैं अनिल के साथ वहां से भागकर अहमदाबाद आ गई. उसके बाद हमने कोर्ट में शादी कर ली. मेरे इस क़दम से गांव में बड़ा हंगामा हुआ. घरवाले चाहते थे कि मैं वापस आ जाऊं, क्योंकि मेरे धंधे से ही घर चलता था".

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वाडिया के इतिहास में पहली बार किसी लड़की ने लव मैरेज की थी. दलालों को डर था कि कहीं सोनल की तरह अगर दूसरी लड़कियां भी भागने लगीं तो गांव में धंधा करना मुश्किल हो जाएगा.

दलालों ने सोनल को किसी भी तरह (ज़िंदा या मुर्दा) गांव में वापस लाने की ठान ली. सोनल की ज़िंदगी ने एक बार फिर मोड़ लिए जब उसे पता चला कि अनिल पहले से ही शादीशुदा है.

सोनल के मुताबिक, "अनिल मुझसे प्यार करता था और इस धंधे से बाहर निकालने के लिए उसने मुझसे शादी की. उसकी पत्नी उससे अलग तो रहती है, लेकिन अनिल को तलाक़ देने के लिए तैयार नहीं थी".

सोनल कहती हैं, "अनिल की पहली पत्नी को मेरे और उसके रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी, पर मुझे किसी की दूसरी बीवी कहलाना अच्छा नहीं लग रहा था".

इसी हालात में एक सहायता संस्था 'विचरता समुदाय समर्थन मंच' की मित्तल पटेल ने सोनल से संपर्क किया.

मित्तल ने बीबीसी को बताया, "वाडिया में इस व्यवसाय को रोक नहीं सकते. क्योंकि वहां दलालों का ख़तरा रहता है. मैंने वहां स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे स्तरों पर लंबे वक़्त तक काम कर के लोगों का भरोसा जीता है."

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मित्तल के मुताबिक़ गांव के क़रीब 90 परिवार अपनी बच्चियों को इस धंधे से बचाकर उन्हें पढ़ा रहे हैं. गांव में पहली बार 2012 में शादियां करवाई गईं और वहां शादीशुदा महिलाओं से उनके पति धंधा नहीं करवाते.

फ़िलहाल सोनल, मित्तल की मदद से ब्यूटी पार्लर का काम सिख रही है. वो अनिल से प्यार तो करती हैं, लेकिन उसकी दूसरी बीवी नहीं बनना चाहती.

सोनल की मां और मौसी उसे वापस बुला रही हैं. लेकिन अब सोनल फ़िर से वेश्यवृत्ति के धंधे में क़दम नहीं रखना चाहती.

मित्तल बताती हैं, "सोनल को दलालों से ख़तरा था. इसलिए यहां के एक पत्रकार की सहायता से सोनल की ओर से प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखा गया. दिल्ली से इस पत्र का जवाब आया और उसके बाद राज्य के गृह मंत्रालय ने सोनल की सुरक्षा का ज़िम्मा लिया है".

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सोनल का कहना है, "गांव में बारह साल की उम्र की लड़की को कई बार एक ही दिन में 30-35 ग्राहकों के पास जाना पड़ता है और गर्भपात जैसी समस्याएं तो जैसे आम बात है. कोई पसंद आ गई तो उसे अपने पास रख लेते हैं और उसके परिवार को हर महीने पैसे देते हैं.''

सोनल के मुताबिक़, "कई लड़कियां तो गांव में ही शादी करने के बाद दोबारा धंधा नहीं करतीं. मेरा और मेरी मौसी का घर चलाने के लिए मैं भी महीने के 30,000 तक कमा लेती थी".

सोनल चाहती हैं कि गांव में छोटी उम्र की लड़कीयां यह काम न करें. उन्हें तो पता भी नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है. सोनल के मुताबिक़, "मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाउंगी तब उनकी भी मदद करूंगी".

गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा ने बीबीसी को बताया, "सोनल का क़िस्सा अख़बारों में तो आया ही था, लेकिन उसके खुले ख़त में लिखे कड़वे सच ने समाज और व्यवस्था के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं".

पुलिस कमिशनर और बाक़ी अधिकारियों के मुताबिक़ सोनल को कड़ी सुरक्षा दी गई है. प्रदीप आगे कहते हैं, "गृहमंत्री और इस समाज का हिस्सा होने के नाते मेरी ज़िम्मेदारी है कि उस गांव में वेश्या व्यवसाय में फंसी हर बेटी को अपनी ज़िंदगी जीने का मौक़ा मिलना चाहिए".

उनका कहना है, "पुलिस विभाग की समाज सुरक्षा समिति के ज़रिए हम वाडिया में रोज़गार के नए विकल्प, लोगों की मानसिकता में बदलाव और पुनर्वास पर काम करना चाहते हैं".

सदियों से सामाजिक अभिशाप झेल चुकी बेटियों के जन्म पर भले जश्न का नया अध्याय शुरू हुआ हो, लेकिन सोनल जैसी और भी ना जाने कितनी बेटियां हैं जिन्हें यह नहीं पता कि वह अपनी बेटी होने का जश्न मनाए या नहीं?

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