सोशल- '377 पर ऐतिहासिक फ़ैसला, देश को मिली ऑक्सीजन'

इमेज स्रोत, Getty Images
सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को सुनाए ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद अब भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. यानी अब दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं माना जाएगा.
24 साल चली कानूनी लड़ाई और कई अपीलों के बाद कोर्ट ने ये फ़ैसला सुनाया.
चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपने फ़ैसले में कहा, ''जो भी जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. समलैंगिक लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. इसे लेकर लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी.''
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था.
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फ़ैसले की सोशल मीडिया पर भी चर्चा हो रही है.
इमेज स्रोत, AFP
सोशल मीडिया पर क्या लिख रहे हैं लोग?
फ़िल्मकार करण जौहर ने ट्वीट किया, ''ऐतिहासिक फ़ैसला. फ़ख़्र महसूस कर रहा हूं. समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना समान अधिकारों के लिए बड़ी उपलब्धि. देश को उसकी ऑक्सीजन वापस मिली.''
अभिनेत्री प्रीति ज़िंटा ने ट्विटर पर लिखा, ''अगर आपके पास दिल है तो आप आज़ाद हैं कि आप चाहें जिसको प्यार करें. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से बेहद खुश हूं.''
अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा ने ट्वीट किया, ''हम जीत गए. शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट, ऐसा फ़ैसला सुनाने के लिए.''
पत्रकार बरखा दत्त ने लिखा, ''दो दशक पहले का वो दिन मुझे आज भी याद है, जब धारा 377 को ख़त्म करने को लेकर मैंने याचिका साइन की थी. इतिहास आज बन रहा है. शुभकामनाएं और सभी को प्यार.''
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट किया, ''ये जानकर खुशी हुई कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. ये फ़ैसला मेरे विचारों को सही साबित करता है. ये उन बीजेपी सांसदों को जवाब है जो इस मुद्दे को लेकर लोकसभा में मेरा विरोध करते थे.''
कवि कुमार विश्वास और जिग्नेश मेवाणी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया.
कांग्रेस के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से भी सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले का स्वागत करते हुए लिखा, ''उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला समाज में और बराबरी लाएगा.''
हमने इसी विषय पर बीबीसी हिंदी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहासुनी के ज़रिए लोगों की प्रतिक्रियाएं जानी.
मूल सिंह नाम के यूज़र ने लिखा, ''ये भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचाने वाला फ़ैसला है. हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं, हमें इस पर सोचना चाहिए.''
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने नाखुश रवींद्र यादव ने लिखा- कुदरत के ख़िलाफ़ यौन आचरण व्यक्ति और समाज के लिए घातक और सभ्य संस्कृति के लिए विध्वंसक है.
प्रीति गुप्ता लिखती हैं- बराबरी के अधिकार का सम्मान करना चाहिए.
आसान भाषा में समझिए- क्या है LGBTIQ
क्या है LGBTIQ?
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, इंस्टाग्रामऔर ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)