मोहम्मद शमीः जो कब्रिस्तान की ज़मीन पर प्रैक्टिस करते थे

मोहम्मद शमी अपनी पत्नी हसीन के साथ

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मोहम्मद शमी ने अपनी पारिवारिक तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की तो कुछ लोगों ने विवादित टिप्पणियां की.

भारत के तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद शमी ने अपनी पत्नी के साथ पोस्ट की पारिवारिक तस्वीर पर आई टिप्पणियों पर करारा जवाब दिया है.

जब सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने उनकी पत्नी की ड्रेस को लेकर उन्हें ट्रोल करना शुरू किया तो पूरा मामला सुर्ख़ियों में गया.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाने वाले मोहम्मद शमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा के गांव सहसपुर अलीनगर से हैं.

एक किसान परिवार में पैदा हुए शमी ने अपने दम पर टीम इंडिया में जगह बनाई. वो तीन सालों से भारतीय टीम में हैं और चोटिल होने के कारण कई बार टीम से बाहर भी हो चुके हैं.

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क्रिकेटर मोहम्मद कैफ़ ने शमी की तस्वीर पर आई टिप्पणियों को शर्मनाक कहा है.

बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने नवंबर 2013 में उनके गांव सहसपुर अलीनगर पहुंचकर उनके परिवार से मुलाक़ात की थी.

पढ़िए तब की ये रिपोर्ट-

दिल्ली से यूपी को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर क़रीब 130 किलोमीटर चलने के बाद बुढ़नपुर क़स्बा आता है. यहीं से घुमावदार सड़क सहसपुर अलगीनगर गाँव जाती है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले के इसी गाँव में किसान परिवार में पैदा हुए मोहम्मद शमी ने टीम इंडिया के तेज़ गेंदबाज़ के रूप में पहचान बनाई है.

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मोहम्मद शमी के पिता बताते हैं कि शमी के जहां जगह मिलती थी वो वहीं गेंदबाज़ी करने लगते थे.

शमी के अब्बा तौसीफ़ अहमद जब उन्हें विकेट लेकर उछलते हुए टीवी स्क्रीन पर देखते हैं, तो उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं. शमी को प्यार से वो लोग सिम्मी कहते है.

सिम्मी बचपन से ही क्रिकेट के शौकीन रहे हैं. उनके अब्बा बताते हैं, "उसे जहाँ जगह मिलती, वहीं गेंदबाज़ी करने लगता. घर के आँगन में, छत पर, बाहर खाली पड़ी जगह में. 22 गज़ से लंबी हर जगह उसके लिए पिच होती."

शमी की रफ़्तार ने बहुत कम उम्र में ही उन्हें आसपास के गाँवों में लोकप्रिय बना दिया. वह स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंटों का आकर्षण होते. शमी खेलने जाते और उनके अब्बा देखने.

गाँव में उनके घर के पीछे क़ब्रिस्तान है और इसी क़ब्रिस्तान की खाली ज़मीन शमी के लिए पहला मैदान बनी. शमी ने यहीं पिच बनाई और गेंदबाज़ी का अभ्यास करने लगे.

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शमी के गांव का क़ब्रिस्तान जहां वो बचपन में क्रिकेट खेला करते थे.

बचपन में शमी टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलते थे. टेनिस की गेंद से भी उनकी रफ़्तार बल्लेबाज़ों में ख़ौफ़ पैदा कर देती.

  • मोहम्मद शमी टीम इंडिया के लिए चयनित होने से पहले पश्चिम बंगाल की ओर से रणजी क्रिकेट खेलते थे.
  • मात्र 15 फ़र्स्ट क्लास मैच खेलने के बाद ही जनवरी 2013 में उनका चयन टीम इंडिया में हो गया.
  • छह जनवरी 2013 को दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर शमी ने अपना पहला वनडे मैच खेला.
  • शमी ने पहले ही मैच में चार मेडिन ओवर फेंककर अपनी प्रतिभा की झलक दिखला दी थी. डेब्यू मैच में ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय गेंदबाज़ भी बने.
  • सचिन की ऐतिहासिक विदाई सिरीज़ से शमी ने टेस्ट में आग़ाज़ किया. कोलकाता के ईडन गार्डन पर अपने पहले टेस्ट में नौ विकेट लेकर उन्होंने अपनी रफ़्तार का लोहा मनवाया.

शमी के साथ स्थानीय टूर्नामेंटों में खेलने वाले खिलाड़ी मोहसिन कहते हैं, "रफ़्तार ही उसका सबसे बड़ा हथियार थी. वह गेंदबाज़ी में पूरी ताक़त लगा देता था. यही वजह थी कि ज़्यादातर बल्लेबाज़ उसके ख़िलाफ़ आक्रामक नहीं खेलते थे."

शमी अब औसतन 140 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से गेंदबाज़ी करते हैं.

बेटे की रफ़्तार देखकर तौसीफ़ अहमद ने शमी को अभ्यास के लिए मुरादाबाद के सोनकपुर स्टेडियम भेजा, जहां पहली बार शमी को हरी घास का मैदान मिला.

कोच बदर अहमद भी उनकी रफ़्तार से प्रभावित हुए. उनके कहने पर शमी ने उत्तर प्रदेश में ट्रायल दिए, लेकिन चुने नहीं गए.

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शमी ने अभ्यास करने के लिए सीमेंट की पिच बनाई थी.

यूपी में मौक़े कम थे. कोच की सलाह पर उन्हें कोलकाता में क्लब क्रिकेट खेलने के लिए भेज दिया गया. यहाँ शमी ने क्रिकेट का सही प्रशिक्षण लिया. शमी कोलकाता से जब गाँव आते, तो उन्हें प्रैक्टिस के लिए पिच नहीं मिलती थी.

अभ्यास के लिए उन्होंने गाँव में खाली पड़ी अपनी ज़मीन पर सीमेंट से पिच बनाई. गोबर के उपलों और घूड़ी के बीच शमी प्रैक्टिस करते. सीमेंट की पिच पर उनकी रफ़्तार और भी बढ़ गई. अब समस्या यह पैदा हुई कि किसके साथ खेलकर अभ्यास किया जाए?

उन्होंने अपने छोटे भाई मोहम्मद कैफ़ को गेंदबाज़ी की. उनकी रफ़्तार के मुक़ाबले का नतीजा यह हुआ कि कैफ़ ने एक क्रिकेटर के बतौर स्थानीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना ली.

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शमी के अब्बा तौसीफ़ अहमद कहते हैं, "शमी ने अकेले इस पिच पर पसीना बहाया है. कभी-कभी तो कोई भी नहीं होता था और वह अकेला ही गेंदबाज़ी करता रहता. पीछे काँटों में गेंद चली जाती, तो निकालने के लिए जद्दोजहद करता. उसने पिच के पास पथर गोबर को नहीं देखा, घूड़ के ढेर भी नहीं देखे. बस अभ्यास करता रहा. उसी मेहनत का नतीजा है कि वह आज टीम इंडिया के लिए खेल रहा है."

बच्चों को खेलता देखकर तौसीफ़ अहमद कहते हैं, "शमी अपने जुनून के बल पर टीम इंडिया में पहुँचा है. हो सकता है इनमें से कोई बच्चा कल अपने जुनून के दम पर दुनिया में नाम करे. ज़रूरत बस एक मौक़े की है. शमी को वह मौक़ा बंगाल ने दिया. हो सकता है इन्हें यूपी में ही मौक़ा मिल जाए."

हालाँकि शमी के अब्बा चाहते हैं कि अमरोहा में कम से कम एक छोटा स्टेडियम बने, जिससे इलाक़े के अन्य बच्चों को अभ्यास करने के लिए समझौता न करने पड़े.

राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम की अगली पीढ़ी के खिलाड़ी छोटे शहरों और कस्बों से आएंगे. गाँव के क़ब्रिस्तान की खाली ज़मीन पर बनी पिच से लेकर टीम इंडिया तक के मोहम्मद शमी के सफर ने द्रविड़ के इस बयान को सही साबित कर दिया है.

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