कॉमनवेल्थ डायरी: जब गोल्ड मेडलिस्ट मीराबाई चानू के ट्रांसलेटर बने रेहान फ़ज़ल

  • रेहान फ़ज़ल
  • बीबीसी संवाददाता, गोल्ड कोस्ट (ऑस्ट्रेलिया) से
मीराबाई चानू, गोल्ड कोस्ट, कॉमनवेल्थ गेम

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मीराबाई चानू ने अपने वज़न के दोगुने से भी ज़्यादा वज़न उठा कर भारत को सोना दिलवाया. लाल रंग की ड्रेस पहने हुए चानू ने आते ही पाउडर लगा कर अपने हाथों की नमी दूर की.

वो अकेली प्रतिभागी थीं, जिन्होंने वज़न उठाने से पहले धरती को चूमा. दर्शकों का अभिवादन किया और फिर बार को भी माथे से लगाया.

उन्होंने छह बार 'स्नैच' और 'क्लीन और जर्क' में वज़न उठाया और छहों बार राष्ट्रमंडल खेलों का रिकार्ड ध्वस्त किया. दूसरा स्थान प्राप्त करने वाली मॉरीशस की भारोत्तोलक रनाईवोसोवा ने उनसे 26 किलो कम वज़न उठाया.

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जैसे ही चानू को पता चला कि उनका स्वर्ण पदक पक्का हो गया है, वो नीचे दौड़ कर गईं और उन्होंने अपने कोच को गले लगा लिया.

ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों को सबसे अधिक भाई चानू की सौम्यता और उसके चेहरे पर हमेशा रहने वाली मुस्कान. उन्होंने खड़े हो कर चानू को 'स्टैंडिंग ओवेशन' दिया. मेडल सेरेमनी में जब भारत का झंडा ऊपर जा रहा था तो चानू बहुत मुश्किल से अपने आँसू रोक पा रही थीं.

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जब वो स्वर्ण पदक जीतने के बाद 'मिक्स्ड ज़ोन' में आईं तो ऑस्ट्रेलियन टीवी की संवाददाता उनका इंटरव्यू लेने पहुंच गई. चानू को उसके अंग्रेज़ी में पूछे सवाल समझ में नहीं आ रहे थे. मैंने आगे बढ़ कर उन सवालों और चानू के जवाबों का अनुवाद किया. कुछ ही मिनटों में वो ऑस्ट्रेलियन टीवी पर थीं.

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23 साल की मीराबाई चानू ने महिला 48 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीता

बाद में उन्होंने बताया कि वो रियो ओलंपिक में अच्छा न कर पाने से बहुत व्यथित थीं और सिद्ध करना चाहती थीं कि उनमें भारत के लिए पदक लाने का जज़्बा है.

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उन्होंने इस जीत को अपने परिवारवालों, अपने कोच विजय शर्मा और मणिपुर और भारत के लोगों को 'डेडिकेट' किया. उनका अगला मक़सद है जकार्ता में होने वाले एशियाई खेलों और टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना.

साइना नेहवाल को गुस्सा क्यों आता है ?

साइना नेहवाल इस बात से काफ़ी नाराज़ हुई कि उनके पिता हरवीर सिंह का नाम भारतीय टीम के अधिकारियों की सूची से हटा दिया गया.

हुआ ये कि खेल मंत्रालय ने उनके पिता और पीवी सिंधु की माँ को भारतीय टीम का सदस्य बनाया था और तय ये हुआ था कि गोल्डकोस्ट तक जाने का किराया ये लोग ख़ुद वहन करेंगे. लेकिन जब साइना के पिता गोल्डकोस्ट पहुंचे तो उनका नाम भारतीय टीम से कट चुका था और उन्हें खेल गाँव में नहीं घुसने दिया गया.

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नाराज़ साइना ने ट्वीट किया कि उनके पिता के साथ रहने से उनका मनोबल ऊँचा रहता है. अब वो न तो मेरे मैच देख सकते है और न ही खेल गाँव के अंदर जा सकते हैं. यहाँ तक कि वो मुझसे मिल भी नहीं सकते. अगर उन्हें भारतीय दल से हटा दिया गया था तो मुझे इसके बारे में ख़बर की जानी चाहिए थी.

भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन का कहना है कि हरवीर सिंह को अधिकारियों के वर्ग में भारतीय दल के सदस्य ज़रूर बनाया गया है, लेकिन इसका अर्थ ये नहीं हुआ कि उन्हें खेल गाँव में भारतीय टीम के साथ रहने का अधिकार मिल जाएगा.

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साइना को ये बात इसलिए भी बुरी लगी कि सिंधु की माँ विजया पुसारिया को बहुत आसानी से खेलगाँव में प्रवेश मिल गया.

साइना इतनी नाराज़ हुईं कि उन्होंने भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन को पत्र लिखा कि अगर उनके पिता को खेल गाँव में रहने की अनुमति नहीं मिलती तो वो इन राष्ट्रमंडल खेलों में भाग नहीं लेंगी.

उनकी धमकी काम आई और उनके पिता को आखिरकार खेल गाँव में रहने की इजाज़त मिल गई. इसे कहते हैं हाथ मरोड़कर काम निकालना!

बिना खेले मिला पदक

कभी आपने सुना है कि राष्ट्रमंडल खेलों जैसी बड़ी प्रतियोगिता में किसी को बिना खेले ही पदक मिल जाए? जी हाँ, ऑस्ट्रेलिया की मुक्केबाज़ टेला रॉबर्टसन के साथ ऐसा ही हुआ है.

महिलाओं की 51 किलो वर्ग की प्रतियोगिया में सिर्फ़ सात मुक्केबाज़ हिस्सा ले रही हैं. 19 साल की टेला को अगले राउंड में बाई मिला है.

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इसका मतलब ये हुआ कि वो बिना लड़े ही सेमी फ़ाइनल में पहुंच गईं. बाक्सिंग के नियमों के अनुसार सेमी फ़ाइनल में पहुंचने वाले बाक्सर को कांस्य पदक मिलना तय हो जाता है.

बाक्सिंग के मुकाबले शुरू हो चुके हैं और टेला को बिना एक मुक्का चलाए पदक मिलना भी तय हो चुका है. रॉबर्टसन ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ से लड़ने वाली सबसे युवा मुक्केबाज़ हैं.

उनके कोच ने उनका नाम रखा है 'बीस्ट' यानी जानवर. ये पहला मौका नहीं है कि किसी को बिना लड़े ही खेलों में पदक मिलना तय हो गया हो.

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बीबीसी संग ऑस्ट्रेलियाई शहर गोल्ड कोस्ट की सैर

वर्ष 1986 में भी जब कई अफ़्रीकी देशों ने राष्ट्रमंडल खेलों का बहिष्कार किया था बाक्सिंग के 'सुपर हैवी वेट' वर्ग में सिर्फ़ तीन मुक्केबाज़ी ने भाग लिया था.

वेल्स के एनुरिन इवांस को सीधे फ़ाइनल में बाई मिली थी जहाँ उन्हें कनाडा के लेनॉक्स लुइस ने हराया था. इसे कहते हैं नसीब!

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