जर्मनी के रक्षा मंत्री एनीग्रेट क्रैंप कैरनबावर ने कहा है कि सितंबर में जब अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से वापस निकलेंगे तो नेटो की सेना भी उनके साथ हो सकती है.
जर्मनी के रक्षा मंत्री ने कहा, "हमने हमेशा ये कहा है कि हम साथ जाएंगे और साथ निकलेंगे."
इससे पहले बाइडन प्रशासन के अधिकारियों ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की नई डेडलाइन 11 सितंबर तय की गई है.
हालांकि ट्रंप प्रशासन के दौरान तालिबान के साथ हुई बातचीत में इसके लिए एक मई तक की समय सीमा तय की गई थी.
बिस्मार्क ने कैसे बिखरे हुए जर्मनी को यूरोप का एक ताक़तवर मुल्क बना दिया
हमें यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि दुनिया में आज बहुत कुछ ऐसा है जो कि बहुत पुराना नहीं है. उदाहरण के लिए आधुनिक देश का विचार ज़्यादा पुराना नहीं है. इसके विचार ने हाल ही में और धीरे-धीरे आकार लिया है.
एक बात और कि इनके विकास की प्रक्रिया हो सकती है कि हमारी सोच से हटकर हो.
अब नई दुनिया (अमेरिकी महाद्वीप) और पुरानी दुनिया (एशिया, अफ्रीका और यूरोप) के देशों को ही लें. नई दुनिया के ज़्यादातर देश जब आज़ाद थे, तब पुरानी दुनिया के कई देशों की अपनी कोई पहचान ही नहीं थी.
इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. एकीकृत जर्मनी के गठन के अभी केवल 150 साल पूरे हुए हैं. इसके गठन की औपचारिक घोषणा 18 जनवरी, 1871 को फ्रांस के वर्साय के महल (पैलेस ऑफ वर्साय) में हुई थी.
वर्साय में क्यों,बर्लिन में क्यों नहीं?
फ्रांस में मौज़ूद वर्साय के महल का निर्माण लुई चौदहवें (लुई XIV) ने करवाया था. लेकिन इस पर 1870-71 की फ्रांस और प्रशा (जर्मनी का पुराना नाम) की लड़ाई में जर्मन राज्यों की सेना ने कब्ज़ा कर लिया था.
एक होकर जर्मनी बनाने वाले ये राज्य, लुई चौदहवें से घृणा करते थे क्योंकि उसके शासन में फ्रांस ने एल्सेस पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के साथ लॉरेन को भी अपने कब्ज़े में ले लिया था.
फ्रांस से जर्मनी के लड़ने की वजहों में से एक यह थी कि फ्रांस के कब्ज़े से जर्मनी के दावे वाले इलाकों को छीन लिया जाए.
वर्साय पर कब्ज़े के बाद जर्मनी ने ऐसा करके उस समय की दुनिया की सबसे ताकतवर सेना फ्रांस को अपमानित किया. फ्रांस की इस दुर्दशा का कारण जर्मन राज्यों की गठबंधन सेना के हाथों हुई उसकी एक नहीं कई विनाशकारी हार था.
पूरी दुनिया में मूर्तियों से लेकर स्मारक और सड़क तक 10 हज़ार चीज़ों के नाम बिस्मार्क के सम्मान पर रखे गए. बिस्मार्क के योगदान का ही कमाल रहा कि आज भी उन्हें दुनिया का अद्भुत राजनेता माना जाता है.
पूरी दुनिया में मूर्तियों से लेकर स्मारक और सड़क तक 10 हज़ार चीज़ों के नाम बिस्मार्क के सम्मान पर रखे गए. बिस्मार्क के योगदान का ही कमाल रहा कि आज भी उन्हें दुनिया का अद्भुत राजनेता माना जाता है.
परमाणु करार पर जारी बातचीत के बीच ईरान ने लगाए आधुनिक सेंट्रीफ्यूज
Iranian Presidency Office/WANA/Handout via REUTERSCopyright: Iranian Presidency Office/WANA/Handout via REUTERS
साल 2015 के परमाणु समझौते को लेकर यूरोपीय देशों से चल रही बातचीत के बीच ईरान ने
एक बार फिर इस समझौते का उल्लंघन करते हुए 'तेज़ी से यूरेनियम संवर्धन करने के लिए' आधुनिक
सेंट्रीफ्यूज आधिकारिक रूप से अपने परमाणु कार्यक्रम में शामिल कर लिया है.
देश के नतांज़ परमाणु केंद्र में एक ख़ास कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसका
सीधा प्रसारण सरकारी टेलीविज़न पर किया गया. कार्यक्रम में राष्ट्रपति हसन रूहानी
मौजूद थे. उन्होंने कहा कि देश के परमाणु कार्यक्रम का उद्देश्य इस ऊर्जा का शांतिपूर्ण नागरिक इस्तेमाल है.
उन्होंने कहा, “मैं एक बार फिर कहना
चाहता हूँ कि हमारी सभी परमाणु गतिविधियाँ शांतिपूर्ण असैन्य काम के लिए हैं. जैसा
कि देश के सुप्रीम लीडर पहले भी कह चुके हैं कि हमारा परमाणु कार्यक्रम इस्लामी
मूल्यों पर आधारित है और ईरान ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे बड़ी संख्या में लोगों
के लिए ख़तरा पैदा हो. जापान के हिरोशिमा-नागासाकी में अमेरिका के ख़तरनाक और ग़लत
क़दम से क्या हुआ हम जानते हैं.”
ईरान द्वारा यह नया क़दम परमाणु करार को लेकर इस सप्ताह वियना में शुरू हुई बातचीत
के बीच उठाया गया है. अगले दौर की बातचीत आने वाले सप्ताह में होनी है. पहले दौर की बातचीत के बाद यूरोपीय संघ और रूस के प्रतिनिधियों ने कहा था कि
बातचीत सकारात्मक रही है.
हालांकि परमाणु समझौते की शर्तों का पालन करने और ईरान
पर लगाई गई किन आर्थिक पाबंदियों को पहले हटाया जाना चाहिए, इसे लेकर अमेरिका और ईरान में
सहमति नहीं बन पाई है. ईरान का कहना है कि वो परमाणु अप्रसार संधि को लेकर प्रतिबद्ध है और चाहता है
कि दूसरे देश भी इसका पालन करें.
अमेरिका के
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2015 में ईरान और पश्चिमी देशों के बीच हुए परमाणु समझौते से
बाहर निकलने का फ़ैसला किया था जिसके बाद अब इस समझौते को फिर से बहाल करने की
कोशिशें की जा रही हैं. अमेरिका और ईरान
के अलावा फ्रांस,
ब्रिटेन, चीन, जर्मनी और रूस भी इस समझौते का हिस्सा हैं.