पॉज़िटिव थिंकिंग से हो सकता है आपको नुकसान

पॉज़िटिव थिंकिंग

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बड़े बुजुर्ग हों या दोस्त-यार, अक्सर सब यही सलाह देते हैं कि ज़िंदगी में हमेशा पॉज़िटिव होना चाहिए. एक सर्वे के मुताबिक़, सकारात्मक सोच, हमारे ज़हन में इस क़दर बैठी है कि दुनिया की अस्सी फ़ीसद आबादी पॉज़िटिव थिंकिंग वाली है.

लेकिन, हम आपको ये कहें कि हमेशा सकारात्मक सोच रखना आपको नुक़सान भी पहुंचा सकता है, तो आप पक्का हैरान होंगे.

लेकिन, कुछ ताज़ा तजुर्बों से ये पता चला है कि कई बार पॉज़िटिव सोच हमें नुक़सान पहुंचाती है. हमारी राह में रोड़े अटकाती है.

डेनमार्क के रहने वाले माइकल स्टोशोल्म को ही लीजिए. वो अपना पंद्रह साल पुराना एक तजुर्बा बताते हैं. उन्होंने अपने दोस्त के साथ नया कारोबार शुरू किया. उस दोस्त ने माइकल को कामयाबी के कई हसीन ख़्वाब दिखाए. उसकी बातों ने माइकल को बेफ़िक्र कर दिया.

वो कारोबार की तरक़्क़ी और कामयाबी को लेकर इतने निश्चिंत हो गए कि जितनी मेहनत करनी चाहिए थी, वो की ही नहीं. आख़िर में दोस्त के साथ वो धंधा नहीं चला. नुक़सान हुआ, मगर माइकल को ज़िंदगी में बड़ा सबक़ मिल गया था. वो ये कि, सकारात्मक सोच हमेशा फ़ायदे के लिए नहीं होती.

कारोबारी दुनिया में पॉज़िटिव थिंकिंग की थ्योरी क़रीब एक सदी पुरानी है. पहले पहल नेपोलियन हिल नाम के लेखक ने 1936 में अपनी क़िताब, 'थिंक एंड ग्रो रिच' में पॉज़िटिव सोच की ख़ूबियां बताई थीं. क़रीब दो दशक बाद नॉर्मन विंसेंट पील ने ''द पॉवर ऑफ पॉज़िटिव थिंकिंग'' में इसे और तफ़्सील से समझाया.

माइकल स्टोशोल्म

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माइकल स्टोशोल्म को पॉज़िटिव थिंकिंग के चलते काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा.

पूरी दुनिया में इस क़िताब की दो करोड़ से ज़्यादा कॉपी बिकी थीं. हाल ही में रोंडा बायर्न ने भी अपनी क़िताब ''द सीक्रेट'' में दुनिया को पॉज़िटिव सोच की ख़ूबियां समझाई हैं. इन सभी का ये मानना रहा है कि नकारात्मक सोच से आपकी तरक़्क़ी की राह में रोड़े ख़ड़े हो जाते हैं.

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हालांकि अब जो नए तजुर्बे किए जा रहे हैं, वो पॉज़िटिव थिंकिग की ख़ूबियों को लेकर उतने भरोसे से दावे करने वाले नहीं हैं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान पढ़ाने वाली गैब्रिएल ओटिंगन ने इस बारे में क़िताब लिखी है. वो बताती हैं कि जब लोगों के ज़हन में सुनहरे मुस्तक़बिल के अच्छे ख़याल आने लगते हैं.

इस दौरान उनका ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. गैब्रिएल कहती हैं कि इसका ये मतलब है कि लोग अपने ख़्वाब पूरे करने के लिए ज़रूरी ताक़त नहीं पाते हैं.

गैब्रिएल के मुताबिक़ जब लोग अपने भविष्य और कामयाबी को लेकर ज़्यादा उम्मीदें पाल लेते हैं, तो वो उतनी कोशिश नहीं करते, जितनी उन्हें करनी चाहिए. गैब्रिएल ने यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी कर चुके लोगों पर एक तजुर्बा किया. उन्होंने देखा कि जो लोग सकारात्मक सोच रखते हैं, उन्हें अच्छी नौकरी या काम मुश्किल से मिला या नहीं मिला. वजह ये कि उन्हें भरोसा था कि भविष्य तो अच्छा होगा ही. इसीलिए उन्होंने नौकरी या काम पाने के लिए उतनी दौड़-भाग नहीं की, जितनी उन्हें करनी चाहिए थी.

इनके मुक़ाबले जो छात्र अपने भविष्य को लेकर परेशान थे, उन्होंने ज़्यादा भाग-दौड़ की. कई जगह अपने सीवी भेजे. उन्हें काम करने के बेहतर मौक़े मिले. यानी पॉज़िटिव सोच रखने वाले छात्र आलस में पड़कर पीछे रह गए थे.

पॉज़िटिव थिंकिंग

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लंदन की जानकार निमिता शाह कहती हैं कि अक्सर लोग सोचते हैं कि नकारात्मक सोच रखने से उनकी तरक़्क़ी नहीं हो रही. मगर जो लोग पॉज़िटिव थिंकिंग रखते हैं उन्हें छोटी-मोटी कामयाबी भले मिल जाए, वो ज़्यादा दूरी की दौड़ में कामयाब हों, ये ज़रूरी नहीं.

लंदन की ताली शैरट कहती हैं कि पॉज़िटिव थिंकिंग रखना इतनी बुरी बात भी नहीं. लेकिन लोगों को हक़ीक़त से नज़दीकी बनाकर रखनी चाहिए. ताली कहती हैं कि दुनिया में ज़्यादातर लोग पॉज़िटिव सोच रखते हैं.

ये बुरी बात नहीं. लेकिन ऐसे लोगों को कड़वी सच्चाई का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. ये बात उन्हें मुश्किलों से निपटने में मदद करेगी.

अगर आप हमेशा अच्छी सोच लेकर चलेंगे तो आने वाली मुश्किलों के लिए तैयार नहीं होंगे. आपको लगेगा कि कामयाबी तो मिलेगी ही, तो आप भी उस कामयाबी के लिए उतनी मेहनत नहीं करेंगे, जितनी करने की ज़रूरत है. ज़िंदगी में थोड़ा डर नाकामी का होना चाहिए. ये आपको और मेहनत करने का हौसला देगा. नाकामी का डर आपको हक़ीक़त से रूबरू कराता रहेगा.

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी की गैब्रिएल ओटिंगन कहती हैं कि अगर आपके ज़हन में पॉज़िटिव सोच गहरे बैठी है तो हक़ीक़त से दो-चार होने के लिए आपको मशक़्क़त करनी होगी. उन्होंने तो इसके लिए एक ऐप भी तैयार कर लिया है. जिसकी मदद से आप अपने भविष्य की योजनाओं को लेकर अपनी तैयारी परख सकते हैं.

पॉज़िटिव थिंकिंग

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गैब्रिएल ने इसका नाम वूप (WOOP) रखा है. यानी Wish, outcome, obstacle and plan. इसके ज़रिए आप अपनी किसी भी भविष्य की योजना और उससे जुड़ी अपनी तैयारी का अंदाज़ा लगा सकते हैं.

उधर, 17 साल पुरानी अपनी नाकामी से सबक़ लेने वाले डेनमार्क के माइकल स्टोश्लोम अब पेंसिलें बनाने का कारोबार करते हैं. पिछले तजुर्बे के बाद माइकल ने इस कंपनी की कामयाबी के लिए बहुत मेहनत की. माइकल ने कामयाबी को लेकर बड़े ख़्वाब नहीं देखे. वो हमेशा हक़ीक़त का सामना करने को तैयार दिखे. नाकामी की सूरत में उन्होंने अपने लिए प्लान बी भी तैयार कर रखा था.

नतीजा ये कि माइकल का पेंसिलें बनाने का धंधा ख़ूब अच्छा चल रहा है. वो कहते हैं कि पॉज़िटिव सोच अच्छी चीज़ है. मगर ये ओवररेटेड है.

ज़हन में थोड़ा नाकामी का भी डर होना चाहिए. क्योंकि, डर के आगे जीत है!

(अंग्रेजी में मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी कैपिटल पर उपलब्ध है.)