अगर आपका दिल नौकरी से ऊबने लगा है तो...

  • जार्जिना केन्यान
  • बीबीसी कैपिटल
पायलट

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सपने संजोना इंसान की फ़ितरत है. जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए ख़्वाब देखना है भी ज़रूरी. लेकिन बहुत बार हम सिर्फ़ ख़्वाबों की दुनिया में रहने लगते हैं. ये सही नहीं है. और बहुत बार कुछ ख़्वाब सच्चाई बनकर जब सामने आते हैं, तो वो बिल्कुल ही अलग होते हैं.

सिडनी में मनोविज्ञान की प्रोफ़ेसर लिसा विलियम्स इसे 'अफ़ेक्टिव फोरकास्टिंग' का नाम देती हैं. जिसका मतलब है हम ऐसे सपनों की दुनिया में कई बार जीते हैं, जहां सबकुछ हरा-हरा नज़र आता है लेकिन सच्चाई इसके बरअक्स होती है.

मिसाल के लिए जब कोई लॉटरी में पैसा लगाता है तो उसे लगता है जीतने पर वो अपने सारे सपने पूरे कर लेगा. लेकिन देखा गया है कि जब कोई लॉटरी जीत जाता है तो उसकी खुशी पल भर की होती है.

हम जो भी पेशा चुनते हैं अपनी मर्ज़ी से चुनते हैं. अपनी मर्ज़ी की नौकरी करते हैं. कुछ दिन तो उसमें ख़ूब मज़ा आता है लेकिन जब लगने लगता है कि इस काम में आगे बढ़ने की उम्मीद कम है, तो हमारा दिल ऊबने लगता है. हम फिर कोई और सपना देखने लगता है.

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हमें लगता है हम अगर फ़लां काम करें तो शायद ज़्यादा मज़ा आएगा. हम अपनी प्रतिभा का सही इस्तेमाल भी कर पाएंगे. दरअसल अपने ख्वाबों की नौकरी पाकर हम खुश तो हो जाते हैं, लेकिन उस काम से जुड़ी चुनौतियां हमें बर्दाश्त नहीं होतीं.

लंदन में रहने वाली सू आर्नोल्ड को तारीख़ के पन्ने पलटकर उनमें छुपी सच्चाईयां जानने का शौक़ था. इसीलिए उन्होंने पुरातत्तववेत्ता बनने की सोची. वो बन भी गईं. लेकिन जब उन्होंने काम करना शुरू किया तो उसका भरपूर आनंद नहीं ले सकीं.

जैसा उन्होंने सोचा था वैसा कुछ भी उन्हें करने को नहीं मिल रहा था. हालांकि उन्हें अपने फ़ैसले पर अफ़सोस नहीं था लेकिन ख़ुद के बारे में उन्हें एक सच्चाई का अंदाज़ा हो गया कि वो इस काम के लिए नहीं बनी हैं. हालांकि ऐतिहासिक जगहों पर जाना और क़िताबें पढ़ना उन्हें आज भी अच्छा लगता है.

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ऑस्ट्रेलिया की तस्मानिया यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की सीनियर लेक्चरर प्रोफेसर रशेल ग्रीव का कहना है कि बहुत बार नौकरी के मामले में हमारे फ़ैसले तार्किक नहीं होते. हम वही कर बैठते हैं जो उस वक़्त हमें ख़ुशी देता है. लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए. हम जो भी नौकरी करते हैं उससे हमारी पहचान जुड़ जाती है और सारी ज़िंदगी का दारोमदार उसी पर टिक जाता है.

इसलिए नौकरी के मामले में फ़ैसला बहुत सोच समझ कर करना चाहिए. जल्दबाज़ी में जो भी फ़ैसला करेंगे आगे चल कर आपको ख़ुद ही अपना फ़ैसला बदलना पड़ जाएगा. हर पेशे के साथ उससे जुड़ी चुनौतियां भी रहती हैं.

लिहाज़ा कोई भी पेशा चुनने से पहले उसकी चुनौतियों के लिए भी ख़ुद को तैयार रखें. किसी भी नौकरी की शुरूआत में कुछ दिन काम करने के बाद लगने लगता है शायद फ़ैसला ग़लत था. लेकिन जब उसी काम में 20 साल लगा कर आप जहां पहुंच जाएंगे, तब ये याद भी नहीं रहेगा कि आप किन मुश्किलों से पार पाकर आप यहां तक पहुंचे हैं.

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इस लेख को लिखने वाली जॉर्जिना केनन खुद पेशे से एक पत्रकार थीं. लेकिन बचपन से ही उन्हें जानवरों से प्यार था. लिहाज़ा तीन साल पत्रकारिता करने के बाद जब उन्हें मौक़ा मिला कि वो जानवरों के लिए कुछ करें तो वो फ़ौरन ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया के अभ्यारण्य चली गईं.

यहां उन्हों ने अपने करियर का एक दूसरा विकल्प नज़र आया था. लेकिन जिस तरह के काम उन्हें यहां आकर करने पड़े उससे उन्हें लगा कि ऐसा कुछ करने का सपना तो उन्हों ने नहीं देखा था.

उन्हे सार्वजनिक शौचालय तक साफ़ करने पड़े. जानवरों को खिलाने से लेकर नहलाने, बीमार होने पर सेवा करने और मरने पर दफ़नाने तक के काम करने पड़े. कुछ वक़्त की मुश्किलें झेलने के बाद वो अपने काम में दिलचस्पी लेने लगीं. क्योंकि उन्हें क़ुदरत के नज़दीक रहना अच्छा लगता था.

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लिहाज़ा उन्हें लगा कि अपने जैसे ज़हन के लोगों के साथ रह कर ही वो अपने काम को ज़्यादा बेहतर ढ़ंग से कर पाएंगी. फ़िलहाल वो ऑस्ट्रेलिया के ब्लू माउंटेंस में रहती हैं जहां से जानवरों को जंगलों में घूमता देख ज़िंदगी का मज़ा ले रही हैं.

ये ज़रूरी नहीं कि आपने जो सोचा है आपको वही मिल जाए. लेकिन ये एक बड़ी सच्चाई है कि हरेक पेशे के साथ कुछ कुछ ना कुछ चुनौतियां हैं. लिहाज़ा जब भी अपने पेशे का इंतिख़ाब करें तो सोच समझ कर करें. जल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला ना लें.

(अंग्रेज़ी में मूल लेख यहाँ पढ़ें, जो बीबीसी कैपिटल पर उपलब्ध है.)

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