इन चार अमरीकी सैनिकों को क्यों नहीं भूल पाते उत्तर कोरियाई?

  • साइमन फाओलर
  • बीबीसी कल्चर
उत्तर कोरियाई शासक और अमरीकी सैनिक

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क्या आपको पता है कि उत्तर कोरिया में कुछ अमरीकी बेहद लोकप्रिय फ़िल्मी सितारे बन गए थे?

हम हॉलीवुड के स्टार्स की बात नहीं कर रहे हैं. ये वो अमरीकी थे, जो न तो कलाकार थे और न ही उनका फ़िल्मी दुनिया से कोई वास्ता था. और इन अमरीकियों ने सिर्फ़ उत्तर कोरिया फ़िल्मों में काम किया. वहीं की फ़िल्मों के स्टार बने.

आज जब उत्तर कोरिया और अमरीका में जंग के हालात बने हैं तो दोनों देश एक-दूसरे को ख़त्म कर देना चाहते हैं. ये बातें आप को क़ाबिले-यक़ीन नहीं लगेंगी. लेकिन हम आपको जो बता रहे हैं, वो है सौ फ़ीसद सच.

38वीं समानांतर रेखा दुनिया में सबसे ख़तरनाक

किम जॉन्ग इल

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किम जॉन्ग इल ने दक्षिण कोरियाई निर्देशक को अगवा करने का आदेश दिया था

उत्तर और दक्षिण कोरिया की आज की सीमा को 38वीं समानांतर रेखा कहा जाता है. ये सीमा पचास के दशक में कोरियाई युद्ध के दौरान तय हुई थी.

जब अमरीका समर्थित दक्षिण कोरिया और रूस-चीन समर्थित उत्तर कोरिया के बीच पूरे देश पर क़ब्ज़े की जंग छिड़ी थी. युद्ध का नतीजा नहीं निकला और कोरियाई प्रायद्वीप के सीने पर बंटवारे की लक़ीर खींच दी गई.

इस सरहद को पार करना जानलेवा हो सकता है. दुश्मन सेनाएं सामने से आने वाले किसी भी शख़्स को गोली मारें, उससे पहले ही सीमा पार करने वाले की बारूदी सुरंग से मौत कमोबेश तय है.

38वीं समानांतर रेखा को दुनिया की सबसे ख़तरनाक लक़ीर कहा जाए तो ग़लत न होगा. लेकिन ये दुनिया बहादुर लोगों या जोखिम लेने वालों से भरी पड़ी है.

ऐसे ही कुछ लोग थे वो अमरीकी, जो इस सीमा को पार करके उत्तर कोरिया भाग गए. ये अमरीकी सेना के सदस्य दक्षिण कोरिया की मदद के लिए साठ के दशक में दक्षिण और उत्तर कोरिया की सीमा पर तैनात थे.

किम इल सुंग और किम जॉन्ग इल

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किम इल सुंग और किम जॉन्ग इल

ऐसे ही एक अमरीकी सैनिक थे, चार्ल्स रॉबर्ट जेनकिंस. उनकी अभी 11 दिसम्बर 2017 को ही मौत हुई है.

जेनकिंस अमरीका के नॉर्थ कैरोलिना के रहने वाले थे. वो जनवरी 1965 में दक्षिण कोरिया में अपनी सैनिक टुकड़ी छोड़कर उत्तर कोरिया भाग गए. उन्होंने साथ में एक राइफ़ल रखी थी. एक दिन गश्त के दौरान वो उत्तर कोरिया की सीमा की तरफ़ चल पड़े.

असल में जेनकिंस को लग रहा था कि कहीं उन्हें वियतनाम में युद्ध के लिए न भेज दिया जाए. इसीलिए वो उत्तर कोरिया भाग गए. ये एक ऐसा सफ़र था, जिसने जेनकिंस की ज़िंदगी बदल दी.

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उत्तर कोरिया की सीमा में दाखिल होते ही वहां के सैनिकों ने जेनकिंस को बंधक बना लिया. जेनकिंस ने अपनी ज़िंदगी के अगले 39 साल उत्तर कोरिया में युद्ध बंदी के तौर पर गुज़ारे. 1962 से तीन और अमरीकी सैनिक ऐसे ही उत्तर कोरिया भाग गए थे. जेनकिंस को भी इन्हीं के साथ रखा गया.

इन पर हमेशा निगरानी रखी जाती थी. चारों अमरीकी भगोड़ों को उत्तर कोरिया में एक ही कमरे में रखा गया था.

इन चारों अमरीकियों ने उत्तर कोरिया में ख़तरों से भरी ज़िंदगी गुज़ारी. मगर इनकी ज़िंदगी में दिलचस्प मोड़ भी आए. अक्सर ये सैनिक मौज-मस्ती के लिए क़ैद के बंधन तोड़कर भाग निकलते थे.

ये सरकारी सामान चोरी कर लेते थे या जंगल में भाग जाते थे. खाइयों में लटक जाते थे. क़ैद के लंबे दौर में इन अमरीकी भगोड़े सैनिकों के लिए मौज-मस्ती के यही ज़रिए थे.

रॉबर्ट जेनकिंस ने अपने इन तजुर्बों की बिनाह पर 2009 में आत्मकथा लिखी थी. इसका नाम था 'द रिलक्टेंट कम्युनिस्ट' यानी अनिच्छुक वामपंथी.

साठ के दशक में उत्तर कोरिया पर वामपंथी तानाशाह किम इल सुंग का राज था. उनके बेटे किम जोंग इल फ़िल्मों के शौक़ीन थे. इल ने तय किया कि वो फ़िल्में बनाकर उत्तर कोरिया की नीतियों का प्रचार करेंगे.

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जापान के वो स्कूल जहां होता है उत्तर कोरिया का गुणगान

नोटों में छपती थी अभिनेत्री की तस्वीर

पहली फ़िल्म में अमरीका के लहीम-शहीम भगोड़े सैनिक जेम्स जोसेफ ड्रेस्नॉक को विलेन बनाया गया. इस लंबे कद के अमरीकी सैनिक ने 1962 में उत्तर कोरिया में पनाह ली थी. इल ने फ़िल्म बनाने के लिए अपने देश के निर्देशकों को दूसरे देश भेजा था. ताकि वो फ़िल्में बनाने की कला सीखकर आएं.

1972 में उत्तर कोरिया की मशहूर फ़िल्म 'द फ्लावर गर्ल' रिलीज़ हुई थी. इसमें एक उत्तर कोरियाई लड़की के ज़मींदारों के ख़िलाफ़ लड़ाई की कहानी दिखाई गई थी. फ़िल्म की हीरोइन हॉन्ग योंग-हुई इतनी लोकप्रिय हुई थीं कि उसकी तस्वीरें 2009 तक उत्तर कोरियाई नोटों में छापी जाती थी. हॉन्ग को लोग उसके फ़िल्मी नाम से ही पहचानने लगे थे.

1978 उत्तर कोरिया ने 'अनसंग हीरोज़' के नाम से बीस किस्तों की सिरीज़ पर काम शुरू हुआ. इसमें रॉबर्ट जेनकिंस ने डॉक्टर केल्टन नाम के विलेन का किरदार निभाया था. डॉक्टर केल्टन की ज़िंदगी का एक ही मक़सद दिखाया गया था. वो चाहता था कि उत्तर कोरिया और अमरीका में जंग चलती रहे. इससे अमरीकी हथियार निर्माताओं को फ़ायदा होता रहेगा.

इसी सिरीज़ में अमरीकी सैनिक जेम्स ड्रेस्नॉक ने एक अमरीकी कमांडर ऑर्थर का रोल किया था. वो एक युद्धबंदी कैंप का मुखिया बना था, जो बहुत ज़ुल्म ढाता था. वहीं, रैली एब्शियर नाम का एक और अमरीकी सैनिक इन दोनों का मातहत कार्ल बना था. वहीं, पैरिश नाम का एक और सैनिक उत्तरी आयरलैंड का फौजी लुइस बना था.

किम जॉन्ग इल

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किम जॉन्ग इल

लोग लेते थे ऑटोग्राफ़

पैरिश के किरदार को उत्तर कोरिया के लोग बहुत पसंद करते थे. क्योंकि वो अमरीकी और ब्रिटिश फौजियों को नापसंद करता था. उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग की सड़कों पर उसका हीरो जैसा स्वागत किया जाता था. उसे एक कम्युनिस्ट हीरो माना जाता था.

इन चारों ही भगोड़े सैनिकों ने न तो ढंग से पढ़ाई की थी, और न ही ज़िंदगी में कभी एक्टिंग की थी. लेकिन उन्होंने कई उत्तर कोरियाई फ़िल्मों में काम किया. इस वजह से इन चारों को उत्तर कोरियाई जनता अच्छे से पहचान गई थी. जब ये बाज़ार में निकलते, तो लोग इनके ऑटोग्राफ़ लिया करते थे. ये बातें जेनकिंस ने अपनी आत्मकथा में लिखी हैं.

39 साल उत्तर कोरिया की क़ैद में रहने वाले जेनकिंस साल 2000 में अपनी आख़िरी उत्तर कोरियाई फ़िल्म में काम किया था. इस फ़िल्म का नाम प्युब्लो था. ये फ़िल्म 1968 की घटना पर आधारित थी. तब एक अमरीकी जहाज़ प्यूब्लो पर उत्तर कोरिया ने हमला करके उसे अपने क़ब्ज़े में ले लिया था. इस जहाज़ को बाद में म्यूज़ियम बना दिया गया था.

जेनकिंस के अलावा ड्रेस्नेक ने भी कई फ़िल्मों में काम किया. वो जेनकिंस के मुक़ाबले ज़्यादा जाना-पहचाना नाम था. उसने एक फ़िल्म 'फ्रॉम 5 पीएम टू 5 एएम' में काम किया था. इसमें उत्तर कोरिया की एक सैनिक टुकड़ी को सिर्फ़ बारह घंटे में एक अमरीकी हमले को नाकाम करना था. इस फ़िल्म में ड्रेस्नेक ने अमरीकी कमांडर का किरदार निभाया था.

अमरीकी सेनाओं के ख़िलाफ़ उत्तर कोरिया में 1958 में निकला मार्च

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अमरीकी सेनाओं के ख़िलाफ़ उत्तर कोरिया में 1958 में निकला मार्च

डायलॉग समझने के लिए भगोड़ों का सहारा

इन अमरीकी सैनिकों को किम जोंग इल के फ़िल्मी शौक़ को पूरा करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था. इल को अमरीकी फ़िल्में बहुत पसंद थीं. जिन फ़िल्मों में उसे अंग्रेज़ी भाषा या डायलॉग समझ में नहीं आते थे. उनके तर्जुमे के लिए इन अमरीकी भगोड़ों की मदद ली जाती थी. इन्हें पूरी फ़िल्म नहीं दिखाई जाती थी. सिर्फ़ वो हिस्सा दिखाया जाता था, जिसका इन्हें मतलब बताना होता था.

अमरीकी सैनिक ऐब्शियर की 40 साल की उम्र में दिल के दौरे से प्योंगयांग में मौत हो गई थी. वहीं पैरिश की मौत 1990 में गुर्दा फ़ेल हो जाने से हो गई.

जेनकिंस ने वहां अगवा करके लाई गई जापानी महिला से शादी की थी. बाद में दोनों को 2004 में जापान जाने की इजाज़त मिल गई. जिसके बाद जेनकिंस ने उत्तर कोरिया में रहने के तजुर्बे पर 2009 में क़िताब लिखी.

वहीं, जेम्स जोसेफ ड्रेस्नेक ने उत्तर कोरिया में ही एक महिला से शादी करके घर बसा लिया था. वो जेनकिंस को नापसंद करता था, क्योंकि जेनकिंस वापस अमरीका जाने की बातें करता था. वहीं ड्रेस्नेक कहता था कि उत्तर कोरिया में उसे घर जैसा महसूस होता है.

इन चारों अमरीकियों को आज भी उत्तर कोरिया के लोग याद करते हैं.

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