क्या दांत ख़ुद ब ख़ुद ठीक हो सकते हैं

  • टिफेनी वेन
  • बीबीसी फ़्यूचर
दांतों का इलाज

दर्द कोई भी हो तकलीफ़ होती है. कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो बर्दाश्त के बाहर होते हैं. जैसे नाक, कान, गले और दांत का दर्द. कुछ लोगों को ज़रा सी तकलीफ़ हो जाने पर डॉक्टर के पास जाने का ख़ब्त होता है. तो कुछ लोग दर्द बर्दाश्त करना बेहतर समझते हैं. वो डॉक्टर के पास जाने से डरते हैं.

अगर आप भी इन्हीं में से एक हैं तो आप ख़ुद को अकेला मत समझिए. नीदरलैंड्स में एक स्टडी में पाया गया है कि 24 फ़ीसदी लोग दांतों के डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं. कुछ इसी तरह के आंकड़े अमरीका में भी देखने को मिले. यहां क़रीब 92 फ़ीसद लोगों को दांतों की कोई न कोई बीमारी है.

लेकिन अब ऐसे मरीज़ों के लिए ख़ुशख़बरी है. अगर आपके दांतों में कोई सुराख़ है या दांत का कोई हिस्सा झड़ गया है तो आपके सेहतमंद टिशू की मदद से उसे ठीक किया जा सकता है. हाल में हुई रिसर्च में इस बात का ज़िक्र किया गया है.

दुनिया में ऐसी बहुत सी प्रजातियां हैं जिन्हें क़ुदरत ने तमाम ज़िंदगी के लिए बहुत से दांत दिए हैं. उन्हें दातों की कभी कोई परेशानी नहीं होती जैसे शार्क मछली. शार्क के पास बड़े दांत होने के साथ-साथ छोटे-छोटे और बहुत से दांत होते हैं जो बड़े दांतों के ख़राब हो जाने पर काम करते रहते हैं.

जानकार मानते हैं कि शार्क के दांत हर तीन हफ़्ते में टूटते हैं और उसकी जगह ये छोटे दांत काम करने लगते हैं. कुछ ही दिनों में ये दांत भी बड़े होकर टूट जाते हैं और नए दांत उनकी जगह लेते रहते हैं. लेकिन इंसान इस मामले में ज़रा कम क़िस्मत वाला है. उसके दांत में अगर कोई ख़राबी पैदा हो जाए तो उसकी जगह नया दांत नहीं आ सकता.

लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रोफ़ेसर एबिगेल टकर का कहना है दांतों की संख्या और उनकी पेचीदगियां हर जीव में अलग होती हैं. विकास की प्रक्रिया में हमें कुछ फ़ायदे हुए, तो ये नुक़सान भी हुआ. स्तनधारी जीव अपने खाने को ख़ूब चबा कर खाने के क़बिल होते हैं. इसीलिए उनके आगे के दातों के मुक़ाबले पीछे के दांत ज़्यादा नुकीले होते हैं और उनकी बनावट भी ज़्यादा जटिल होती है.

दरअसल किसी भी नस्ल के जानवर के दांतों की बनावट उसके खान-पान के हिसाब से तय होती है. जैसे जो जानवर खाना नोच कर खाते हैं, उनके आगे के दांत ज़्यादा ताक़तवर होते हैं. और जो जीव खाना चबा कर खाते हैं उनके पीछे के दांत ज़्यादा मज़बूत होते हैं.

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शार्क के दांत टूट कर फिर से आ जाते हैं

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ऐसे बहुत से जानवरों की दिलचस्प मिसालें आपको मिल सकती हैं जिनके दांत कुछ ख़ास तरह के होते हैं. जैसे पिरान्हा मछली. इनके दांत आपस में ऐसे जुड़े होते हैं कि वो देखने में एक धारदार चाक़ू जैसे लगते हैं. जब उनके दांत टूटते हैं तो एक साथ एक चौथाई दांत चले जाते हैं. और जब तक नए दांत नहीं आते तो बाक़ी के दांत ही उन दांतों की कमी को पूरा करते हैं.

जहां तक स्तनधारी जानवरों की बात है तो उनके पास सिर्फ़ दो ही तरह के दांत होते हैं. बचपन में निकलने वाले अस्थाई दांत और दूसरे इन अस्थाई दांतों के टूटने के बाद आने वाले स्थाई दांत.

लेकिन स्तनधारियों में भी कुछ ऐसी प्रजातियां हैं जिनके दांत बार-बार टूटते और निकलते रहते हैं. जैसे मनातीस या समुद्री गाय. इन स्तनधारी जीवों के दांत सारी उम्र निकलते और झड़ते रहते हैं.

जबकि कुछ जानवर ऐसे भी हैं जिनके एक बार ही दांत निकलते हैं, लेकिन, वो दांत लगातार बढ़ते रहते हैं. जैसे ख़रगोश और चूहे. सख़्त खाना चबाने के लिए इनके दांतों के बेस में ख़ास तरह की सेल पनपती हैं जिससे इनके दांत लगातार नए टिशू पैदा करते रहते हैं और बढ़ते रहते हैं.

लेकिन ऐसा इंसान के साथ संभव नहीं है. जानकार मानते हैं कि आज तो लोगों की अक़्ल दाढ़ आना भी कम हो गई है. हालांकि इंसान आज अपना खाना पकाकर खाने लगा है. लिहाज़ा इस दाढ़ की उस तरह कोई उपयोगिता भी नहीं रह गई है.

अब हमारा जबड़ा भी हमारे पुरखों यानी आदि मानव के मुक़ाबले छोटा हो गया है. इसीलिए इस दाढ़ की जगह भी नहीं रह गई. एबिगेल टकर कहती हैं कि आज क़रीब 20 फ़ीसद लोगों के अक़्ल दाढ़ नहीं होती.

ज़िंदगी में इंसान को दो बार दांत नसीब होते हैं. बहुत मुमकिन है कि उसे तीसरी बार कभी दांत नसीब ही ना हों. लेकिन वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी है. वो आज भी इस कोशिश में जुटे हैं कि इंसान को इस चुनौती से निजात दिला सकें.

किंग्स कॉलेज के एक लैब में चूहे पर एक तजुर्बा किया गया. इंसान के मसूड़ों की पेशियां निकालकर उन्हें चूहे के दांतों के टिशू से मिलाकर बायो-टीथ प्रत्यारोपित किया गया. रिसर्चर टकर कहती हैं कि ये एक कामयाब तजुर्बा था.

वैज्ञानिकों की टीम इस बायो-टीथ के साथ मसूड़े की धमनियां मिलकर नया दांत विकसित करने में कामयाब रहीं. लेकिन इंसान पर ये तजुर्बा करने में कई तरह की मुश्किलें हैं.

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स्तनधारियों में पांडा के दांत सबसे पेचीदे होते हैं

फ़िलहाल ऐसी रिसर्च पर ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है कि हमारे दांत बिना इलाज ख़ुद ही ठीक होते रहें. अमरीका की डेंटल एसोसिएशन की प्रवक्ता रूचि सहोता कहती हैं कि हमारे दांतों की रक्षा के लिए क़ुदरत ने उस पर एक परत चढ़ाई है. जो कि एक सेब के छिलके की तरह पतली है. लेकिन वो परत उस फल की हिफ़ाज़त करती है.

जिस तरह सेब के अंदर का बीज अगर सड़ने लगता है तो वो पूरे फल को ख़राब कर देता है. उसी तरह अगर दांतो में कैविटी लग जाती है तो वो दांत को सड़ाने लगती है. और जब ये नसों तक पहुंच जाती है तो दर्द को बेतहाशा बढ़ा देती है और फिर दांत निकलवाने की नौबत आ जाती है.

रेमिनोवा नाम की एक कंपनी बाज़ार में नई तरह की तकनीक लाने की कोशिश कर रही है. इसमें इलेक्ट्रिक करंट के ज़रिए ऐसी तकनीक ईजाद की जा रही हैं जिससे बिना दर्द के तकलीफ़ को दूर किया जा सके. इसके अलावा दांतों में कैविटी से होने वाले दर्द से निपटने के लिए कैल्सिफाइट टिशू की मदद से इलाज के तरीक़े भी खोजे जा रहे हैं.

ब्रिटेन की नॉटिंघम और अमरीका कीर हावर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर बायो-मैट्रिक थेरेपी विकसित करने पर भी ध्यान दे रहे हैं. इस थेरेपी के ज़रिए ख़ास तरह के केमिकल को मसूड़ों के सेल्स के साथ मिलाया जाएगा. जिससे नए दांत के लिए सेल्स विकसित हो पाएंगे.

ये केमिकल या तो इंजेक्शन के ज़रिए या अल्ट्रा वायोलेट लाइट के ज़रिए भी डाले जा सकते हैं. रिसर्च करने वालों को उम्मीद है कि इस तरह की तकनीक से दाढ़ को निकाले बिना ही उसकी तकलीफ़ को दूर करने में आसानी होगी. और उसी जगह दांत के लिए नए सेहतमंद टिशू भी विकसित हो सकेंगे.

आपके दांत की तकलीफ़ को दूर करने के लिए बहुत से तरीक़े खोजे जा रहे हैं. लेकिन आपके दांत आपकी अमानत हैं. इनका ख़याल रखना आपकी ज़िम्मेदारी है. डॉक्टर के पास जाएंगे तो वो आपको यही कहेंगे सही टूथपेस्ट का इस्तेमाल कीजिए, दिन में दो बार ब्रश कीजिए. एक बार फ्लॉसिंग कीजिए और हर छह महीने में एक बार डेंटिस्ट से मिल लीजिए.

लेकिन इस से भी ज़्यादा ज़रूरी है कि आप अपने खाने पर भी ध्यान दें. डॉक्टर रुचि सहोता कहती हैं कि आपके दांतो की सलामती में पानी भी एक अहम रोल निभाता है. इसलिए पानी ऐसा लीजिए जिसमें सारे खनिज हों.

उनके मुताबिक़, अपने खाने में दूध और दूध से बनी चीज़ों को अच्छे से शामिल करें. क्योंकि प्रोटीन और कैल्शियम दांतों की मज़बूती और इनेमल बनाने में मददगार होते हैं. इसके अलावा मीठा खाने के बाद दांत साफ़ ज़रूर करें.

जब दांत मीठा चबाते हैं तो वो टूट कर दांतों पर चिपक जाता है और दांतों में सड़न पैदा कर देता है. इसलिए किसी तरह की कैंडी खाने से परहेज़ करें. लेकिन चॉकलेट खाने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है क्योंकि चॉकलेट का मीठा आपके दांत पर चिपकता नहीं है और साफ़ पानी से धोने पर आसानी से निकल जाता है.

(अंग्रेज़ी में मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी फ़्यूचर पर उपलब्ध है.)

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