कुदरत की मदद से पहुंचेंगे मंगल तक!

  • रिचर्ड होलिंघम
  • बीबीसी फ्यूचर
विमान, ग्राफिक्स

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हम क़ुदरत से बहुत चीज़ें सीख सकते हैं. यहां तक कि मंगल ग्रह पर पहुंचने में भी हमें क़ुदरत मदद कर सकती है. अब जैसे परिंदों को ही लीजिए. वो इतनी ऊंचाई पर, लंबी दूरी तक आराम से उड़ान भरते हैं. इनकी इस ख़ूबी का फ़ायदा कुछ वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर उड़ान भरने में करने की कोशिश में जुटे हैं.

ऐसे ही हैं नासा के प्रमुख वैज्ञानिक अल बॉवर्स. उन्हें बचपन से ही परिंदों से लगाव रहा है. ख़ास तौर से समुद्री पक्षी, अल्बाट्रॉस. जिसकी लंबी उड़ान अल बॉवर्स को हमेशा लुभाती रही है. अब वो अल्बाट्रॉस की उड़ान से प्रेरणा लेकर एक ऐसा विमान तैयार करना चाह रहे हैं, जिसमें लंबे डैने तो होंगे, मगर, टेल यानी पूंछ नहीं.

वो कहते हैं कि अल्बाट्रॉस जैसे विमान बनाने पर विमानों का वज़न बीस फ़ीसद तक कम हो सकता है. ऐसे विमान में सिर्फ़ डैने होंगे तो वो काफ़ी हल्का हो जाएगा.

वैसे परिंदों जैसे विमान की कल्पना कोई नई नहीं. हिटलर के ज़माने में जर्मनी के इंजीनियरों ने ऐसा विमान तैयार किया था. ऐसे विमान दूसरे विश्व युद्ध के आख़िरी दिनों में तैयार किए गए थे. उस डिज़ाइन पर आगे काम इसलिए नहीं हुआ क्योंकि एक तो नाज़ी सरकार हार गई और दूसरा बिना पूंछ या टेल वाले विमान आसमान से टपक पड़ते थे.

हालांकि अब अल बॉवर्स और उनकी टीम ने कई सालों की मेहनत से ऐसा डिज़ाइन तैयार किया है, जो उड़ेगा, ज़मीन पर नहीं गिरेगा.

अब नासा का इरादा ऐसे बिना टेल वाले विमान को मंगल ग्रह पर भेजना है. ताकि वहां के बारे में नई मालूमात हासिल की जा सकें.

फ्लाइंग विंग

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अल बॉवर्स कहते हैं कि मंगल ग्रह, इंसान के लिए बड़ी चुनौती है. वहां की ज़मीन बेहद ऊबड़-खाबड़ है. वहां का वायुमंडल बेहद हल्का है. मंगल में विमान उड़ाना कुछ वैसा ही होगा जैसे धरती से तीस किलोमीटर की ऊंचाई पर विमान उड़ाना. जहां पर वायुमंडल का दबाव नहीं होता. ऐसे माहौल में किसी विमान का उड़ना क़रीब-क़रीब नामुमकिन होता है. लेकिन, इसे हल्का बनाकर, हल्के वायुमंडलम में उड़ने लायक़ बनाया जा सकता है.

फिलहाल तो मंगल ग्रह के बारे में जानकारी जुटाने के लिए रोवर्स ही भेजे गए हैं. जो मंगल की सतह पर चलकर वहां के माहौल की जानकारी धरती तक भेजते हैं. लेकिन इनके साथ दिक़्क़त ये है कि बहुत बड़े दायरे में नहीं घूम सकते.

मंगल पर गया सबसे हालिया रोवर, नासा का क्यूरियोसिटी, वहां 2012 में पहुंचा था. वो अब तक सिर्फ़ नौ किलोमीटर चला है. यानी हर साल सिर्फ़ दो किलोमीटर. जब आप पूरे ग्रह की पड़ताल कर रहे हों, तो इतनी दूरी कोई ख़ास मायने नहीं रखती.

हां, वो ज़मीन पर होने की वजह से मंगल की मिट्टी और सतह का मुआयना कर सकते हैं, ज़मीन के भीतर भी खुदाई करके वहां का जायज़ा ले सकते हैं. लेकिन, अगर मंगल को परखने में विमान का इस्तेमाल किया जाए. तो, कम वक़्त में ज़्यादा दूरी तय की जा सकती है.

अल बॉवर्स और उनकी टीम मंगल पर डेढ़ किलो वज़न का विमान भेजने की कोशिश कर रही है. इस विमान को एक 30 सेंटीमीटर लंबे अंतरिक्ष यान के भीतर रखकर भेजा जाएगा.

प्रोटोटाइप

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जैसे ही ये अंतरिक्ष यान मंगल पहुंचेगा, वो विमान को वहां के वायुमंडल में छोड़ देगा. चुनौती ये है कि अंतरिक्ष यान पांच हज़ार मीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार से चल रहा होगा. इससे विमान के जल जाने का डर है. क्योंकि इतनी रफ़्तार में दो हज़ार डिग्री सेल्सियस तापमान निकलता है.

इस मुश्किल का तोड़ भी नासा की एक टीम ने निकाल लिया है. सिलीकॉन वैली की नासा एमेस टीम ने एक ऐसा पैराशूट तैयार किया है, जो मंगल पर भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यान क्यूबसैट की रफ़्तार धीमी कर देगा. जैसे ही यान मंगल से तीन हज़ार मीटर की ऊंचाई पर पहुंचेगा, यान, अपने अंदर क़ैद अल बॉवर्स के विमान को मंगल के वायुमंडल में छोड़ देगा.

अब ये विमान उड़ने के लिए आज़ाद होगा. इसका ये मतलब नहीं कि ये काफ़ी देर उड़ेगा. इसकी उड़ान का कुल वक़्त होगा सिर्फ़ चार मिनट. क्योंकि एक छोटे से ग्लाइडर की मदद से इसे छह सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ाना होगा. इस रफ़्तार से मंगल पर लंबी उड़ान फिलहाल मुमकिन नहीं.

कुल चार मिनटों की उड़ान में नासा का ये खिलौना विमान, मंगल के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियां जुटाने की कोशिश करेगा. इसमें सेंसर और कैमरे लगे होंगे, जो मंगल के वायुमंडल के बारे में जानकारी जुटाएंगे और इसे धरती पर भेजेंगे.

फिलहाल, अल बॉवर्स की टीम, इस विमान को धरती के वायुमंडल में ही परखने की तैयारी में है. ये तजुर्बा इसी साल किया जाएगा. ताकि छोटे से विमान को मंगल पर उड़ाने की चुनौतियों को जांचा-परखा जा सके.

फिलहाल तो दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियां, मंगल को परखने के लिए दूसरे तरीक़ों को ही आज़माने पर विचार कर रही हैं.

रोवर

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यूरोपीय स्पेस एजेंसी ESA 2020 में एक लैंड रोवर, मंगल पर भेजने की तैयारी कर रही है. साथ ही यूरोपीय स्पेस एजेंसी कुछ छोटे-छोटे रोबोट मंगल पर भेजना चाहती है. जो वहां पहुंचकर अलग अलग जगह मंगल की सतह के भीतर जाकर वहां की पड़ताल करेंगे. इनकी मदद से काफ़ी लंबे-चौड़े इलाक़े की पड़ताल हो सकेगी. इरादा ये भी है कि लैंड रोवर के साथ ही एक ड्रोन भी मंगल भेजा जाए. जो एक-दूसरे की मदद करें और मिलकर मंगल ग्रह के बारे में जानकारी जुटाएं. वहां के हल्के वायुमंडल में काम करने के लिए इनका हल्का होना पहली शर्त होगी.

तो क्या आगे चलकर इंसान भी मंगल ग्रह के आसमान में उड़ान भर सकेंगे?

अल बॉवर्स कहते हैं कि ये मुमकिन है. हालांकि ये उड़ान बहुत छोटी होगी. इससे आप बहुत लंबा सफ़र नहीं कर सकेंगे. लेकिन इनकी मदद से कुछ तजुर्बे, कुछ प्रयोग ज़रूर किए जा सकेंगे.

अल बॉवर्स कहते हैं कि ऐसी किसी भी उड़ान के कामयाब होने के लिए उसका क़ुदरती नियमों से प्रेरणा लेना ज़रूरी है. अल बॉवर्स मानते हैं कि उड़ान के मोर्चे पर इंसान अभी भी परिंदों से बहुत कुछ सीख सकता है.

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