बच्चा पढ़ाई में तेज़ होगा या नहीं, कैसे पता चलेगा?

  • कैली रिमफ़ील्ड और मार्गरिटा मैलेनचिनी
  • बीबीसी फ़्यूचर
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पढ़ाई के मामले में हर बच्चा अलग होता है. कोई तेज़ होता है, तो किसी को समझने में वक़्त लगता है.

मज़े की बात ये है कि स्कूल में कौन सा बच्चा तेज़ होगा और कौन औसत से कम होगा, ये बात बच्चों के जीन पर निर्भर करती है. जीन के आधार पर ये भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में कैसा परफॉर्म करेगा, किस विषय में उसकी दिलचस्पी ज़्यादा होगी.

लेकिन, ये बात बहुत कम ही लोगों को पता है कि हमारे जीन्स की बनावट और माहौल का असर बच्चे की आगे के बर्ताव और पढ़ाई में वो कैसा रहेगा इस बात पर पड़ता है.

जुड़वा बच्चों पर रिसर्च

इसके लिए ब्रिटेन के छह हज़ार जोड़ी जुड़वां बच्चों की पढ़ाई पर रिसर्च की गई. पढ़ाई में उनके स्तर पर गहरी निगाह रखी गई. देखा गया कि जो बच्चे प्राइमरी स्कूल में अच्छा करते हैं, वो आगे की पढ़ाई में भी बेहतर होते हैं.

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ये रिसर्च जुड़वां बच्चों पर इसलिए की गई क्योंकि बच्चों की पढ़ाई पर जेनेटिक्स के असर को गहराई से मापा जा सके. एक जैसे दिखने वाले जुड़वां बच्चों के 100 फ़ीसद जीन्स एक जैसे होते हैं.

वहीं, जो जुड़वां बच्चे एक जैसे नहीं दिखते, उनके औसत 50 फ़ीसद जीन्स एक जैसे होते हैं. अब एक जैसे दिखने वाले जुड़वां बच्चे अगर पढ़ाई में एक जैसे स्तर को हासिल करते हैं, तो साफ़ है कि उनके जीन्स का पढ़ाई पर असर होता है. और अगर उनकी पढ़ाई के स्तर में फ़र्क़ होता है, तो उसकी वजह भी बच्चों के डीएनए में फ़र्क़ हो सकती है.

अगर बच्चों का स्कूल का ग्रेड प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी स्कूल तक एक जैसा ही रहता है, तो इसके पीछे बड़ी वजह बच्चों का जीन सीक्वेंस होता है.

बच्चों के पढ़ाई के स्तर में 70 फ़ीसद योगदान उनके डीएनए सीक्वेंस पर निर्भर करता है, तो 25 फ़ीसद उनके माहौल पर. बाक़ी का पांच फ़ीसद फ़र्क़ अलग-अलग दोस्तों और टीचर के होने से होता है.

अगर जुड़वां बच्चों के ग्रेड में बहुत उतार-चढ़ाव आया, तो इसकी बड़ी वजह ये रही कि उन जुड़वां बच्चों को पढ़ाई और रहन-सहन का अलग-अलग माहौल मिला.

जीन्स से जुड़ा है प्रदर्शन

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आम तौर पर बच्चों की अच्छी या बुरी ग्रेड के लिए उनकी अक़्लमंदी के स्तर को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन, सच ये है कि बच्चे स्कूल में जो ग्रेड लाते हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह उनके जीन्स यानी डीएनए सीक्वेंस होते हैं.

हाल के दिनों में पढ़ाई के जीन्स से ताल्लुक़ को लेकर जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS) की गई हैं. इन रिसर्च से ये पता चलता है कि छात्रों के कुछ ख़ास गुणों का ताल्लुक़ किस जीन से होता है. दिक़्क़त ये आई कि इस स्टडी से पढ़ाई से जिन जीन्स का ताल्लुक़ पाया गया, उनका असर महज़ 0.1 फ़ीसद था.

तो, एक और रिसर्च के ज़रिए बच्चों के जीनोम के पढ़ाई के स्तर से संबंध को मापा गया. इसे पॉलीजेनिक स्कोर कहते हैं. इसके आधार पर आज ये बताया जा सकता है कि कोई बच्चा स्कूल में कैसा परफॉर्म करेगा.

ख़ास तौर से ऐसे बच्चों के ग्रेड की तुलना हो सकती है, जिनका एक-दूसरे से कोई ताल्लुक़ नहीं है.

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इस पॉलीजेनिक स्कोर की मदद से उन छह हज़ार जुड़वां बच्चों की पढ़ाई के पूर्वानुमान लगाए गए. ये पूर्वानुमान जुड़वां लोगों के बारे में तुलनात्मक अध्ययन नहीं थे. बल्कि, इनके ज़रिए ये पता लगा कि दो अलग-अलग बच्चों के स्कूल में ग्रेड में कितना फ़र्क़ हो सकता है.

फिर उनकी सेकेंडरी एजुकेशन का ग्रेड कैसा रहने वाला है. इस पॉलीजेनिक स्कोर से एक बात तो साफ़ हो गई कि एक जैसे जीन वाले बच्चों की पढ़ाई में उपलब्धि कमोबेश एक जैसी ही आती है.

इस रिसर्च का एक बड़ा फ़ायदा ये हो सकता है, कि उन बच्चों की शुरुआत में ही मदद हो जाए, जो पढ़ाई में कमज़ोर रहने वाले हैं. आगे चलकर पॉलीजेनिक स्कोर और बच्चों के इर्द-गिर्द के माहौल की पड़ताल कर के ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस बच्चे को पढ़ाई में मदद की दरकार होगी. फिर उन्हें पढ़ाई में बेहतर करने के लिए ख़ास मदद मुहैया कराई जा सकती है.

हम डीएनए टेस्ट की मदद से बच्चों की पैदाइश के वक़्त ही पता लगा सकते हैं कि कोई बच्चा स्कूल की पढ़ाई में कैसा रहेगा. फिर शुरुआत से ही उस पर ज़्यादा ध्यान दिया जा सकेगा. पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों की शुरू से ही मदद कर के उन्हें ज़िंदगी में आगे चल कर कामयाब बनाया जा सकता है.

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