कोविड-19 के बाद हमारी यात्राएं कैसी होंगी?

  • क्लोई बर्ज
  • बीबीसी ट्रैवल
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ट्रैवेल जर्नलिस्ट के रूप में मैं जब भी हवाई सफ़र करती हूं तो एक नैतिक दुविधा होती है. मुझे धरती के भविष्य की चिंता रहती है.

मैंने अपनी यात्राएं कम कर दी हैं. जब भी मुझे मौका मिलता है मैं पर्यावरण संरक्षण की कहानियां कवर करती हूं.

कहते हैं कि जब दुनिया घर में रहती है तो क़ुदरत मुस्कुराती है. कोरोना वायरस के बारे में कुछ भी अच्छा नहीं है लेकिन ग़ैर-ज़रूरी यात्राओं पर पाबंदी और कुछ देशों में संपूर्ण लॉकडाउन से कुछ अच्छी चीज़ें भी हो रही हैं.

जनवरी से फरवरी के बीच नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि चीन में नाइट्रोजन डायऑक्साइड (जो मुख्य से जीवाश्म ईंधन को जलाने से निकलता है) में कमी आई है.

सेंटर फ़ॉर रिसर्च एंड क्लीन एयर (CREA) के शोध बताते हैं कि कोरोना वायरस पर नियंत्रण के लिए किए गए उपायों से चीन का कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन 25 फीसदी कम हुआ.

इसी तरह के सैटेलाइट आंकड़ों से पता चलता है कि इटली के उत्तरी क्षेत्र में नाइट्रोजन डायऑक्साइड का उत्सर्जन घट गया.

वेनिस

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क़ुदरत मुस्कुराई

सैलानियों की नावों का ट्रैफिक घटने से वेनिस के जलमार्ग पहले से बहुत साफ दिखने लगे हैं (हालांकि नहर में डॉल्फिन घूमने की तस्वीरें वहां से 800 किलोमीटर दूर सार्डीनिया की हैं).

CREA के मुताबिक भारत में 22 मार्च के देशव्यापी जनता कर्फ्यू के दिन नाइट्रोजन डायऑक्साइड न्यूनतम स्तर पर आ गया.

उत्तरी अमरीका में भी आर्थिक गतिविधियां कम होने से ऐसे ही नतीजे दिखने के आसार हैं. यकीनन, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए वैश्विक स्वास्थ्य संकट कोई उपाय नहीं है.

फिर भी, हमारे पास यह सोचने का मौका है कि यात्रा और पर्यटन जैसी गतिविधियों का धरती पर क्या असर पड़ता है.

ग़ैर-ज़रूरी यात्राओं पर पाबंदी से हवाई जहाज कम उड़ रहे हैं. उड़ानों की तादाद घट गई है. कुछ कंपनियों के ऑपरेशन पूरी तरह बंद हो गए हैं.

उड़ान घटने से पर्यावरण पर कितना असर पड़ा, इसके आंकड़े अभी नहीं आए हैं. फिर भी हमें पता है कि इसका बड़ा प्रभाव पड़ा होगा.

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कितनी उड़ान सही है?

लुंड यूनिवर्सिटी सेंटर फ़ॉर सस्टेनेबिलिटी स्टडीज़ इन स्वीडन (LUCSUS) और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलंबिया के 2017 के अध्ययन के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के तीन निजी विकल्प हैं- हवाई सफ़र, सड़क यातायात और मांस की खपत कम करना.

"नेचर क्लाइमेट चेंज" में छपी 2018 की एक रिपोर्ट से पता चलता है परिवहन से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 8 फीसदी उत्सर्जन होता है. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा हवाई उड़ानों का होता है.

LUCSUS की वैज्ञानिक किंबरली निकोलस कहती हैं, "हम दो ही चीज़ें कर सकते हैं- उड़ानें बंद कर दें या कम कर दें."

न्यूयॉर्क से लदंन और वापसी की उड़ान में दो साल मांस खाने के बराबर कार्बन उत्सर्जन होता है.

इन चौंकाने वाले आंकड़ों और लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण में दिखे संकेतों से सवाल उठता है कि हम फिर हवाई सफ़र कब कर पाएंगे और क्या हमें करना चाहिए?

निकोलस कहती हैं, "विमानन उद्योग के मौजूदा कारोबार के साथ सुरक्षित जलवायु का कोई रास्ता नहीं है."

यदि हम 2030 तक ग्लोबल वॉर्मिंग को पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के पेरिस समझौते का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो हमें यात्रा के तरीके बदलने की ज़रूरत है.

कुछ एयरलाइन कंपनियां जैव ईंधन और बिजली से चलने वाले हवाई जहाज बनाने पर शोध कर रही हैं.

चीन

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तकनीक में कितने विकल्प?

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में ऊर्जा, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था नीति संस्थान के उप निदेशक कॉलिन मर्फी का कहना है कि हवाई जहाजों को फिर से डिजाइन करके ज़्यादा सक्षम बनाने की संभावनाएं हैं.

पारंपरिक पेट्रोल की तुलना में अपशिष्ट तेल, जैव ईंधन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 60 फीसदी कम करते हैं.

जैव ईंधन तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर जमीन की ज़रूरत होगी. बिजली से हवाई जहाज उड़ाने की संभावना ज़्यादा है, लेकिन बैटरी की सीमित तकनीक का मतलब है कि लंबी दूरी की उड़ानों के लिए यह व्यावहारिक समाधान नहीं है.

यदि हम इन तकनीकी आविष्कारों में सफल हो जाते हैं तो भी निजी तौर पर यात्रा को लेकर हमें अपना नज़रिया बदलने की ज़रूरत है.

धरती इन दिनों सांस लेती हुई दिख रही है, उसी तरह हमें भी अपने अंदर झांककर देखने का मौका मिला है.

कोरोना वायरस ने हमें यह देखने के लिए मज़बूर किया है कि दुनिया के लोग, व्यवस्थाएं और संगठन एक-दूसरे से कितने जुड़े हैं.

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

निजी नज़रिया बदलने की ज़रूरत

दुनिया भर में तेज़ी से फैले वायरस ने हमें यह भी सिखाया है कि हम सामूहिक संसार के लिए व्यक्तियों के रूप में एकजुट होकर काम करने में सक्षम हैं.

हमने बुजुर्गों और कमज़ोर प्रतिरोधी क्षमता वाले लोगों को बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है, अपनी बालकनियों में खड़े होकर स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ताली बजाई है और सोशल मीडिया पर #StayHome का संदेश साझा किया है.

जब कोविड-19 हमारे पीछे पड़ा है तब हमें फिर से ख़ुद को देखना है और धरती की बेहतरी के लिए निजी फ़ैसले करने हैं.

कोरोना वायरस ने हमारी ज़िंदगी की रफ़्तार को धीमा कर दिया है. उसी तरह यात्रा को लेकर हमें एक धीमे मगर विचारशील नज़रिये के बारे में सोचना चाहिए.

जब हम किसी जगह के लोगों, वहां की संस्कृति और क़ुदरती ख़ूबसूरती को सार्थक तरीके से समझने के लिए समय निकालते हैं तो उस जगह के साथ हमारा रिश्ता बन जाता है.

दिखावे के लिए शहर-शहर घूमने से इसे हासिल नहीं किया जा सकता. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले विशाल क्रूज के बिना भी हम सफ़र कर सकते हैं.

कृषि कार्य

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कुछ देशों में दो हफ्ते के लिए रुककर उसे समझा जा सकता है. साल में पांच-छह छोटी-छोटी यात्राएं करने की जगह एक बार ही लंबी यात्रा करें. इससे हमारा कार्बन फुटप्रिंट काफी कम हो जाता है.

एडवेंचर ट्रैवेल ट्रेड एसोसिएशन के सीईओ शैनॉन स्टोवेल कहते हैं, "अत्यधिक यात्रा दरअसल अत्यधिक उपभोग का ही दूसरा रूप है."

दूर से पहले पास में घूमें

"मैं पर्यटन की तादाद घटने और इसकी गुणवत्ता बढ़ने के पक्ष में हूं, जिसमें लोग अपने गंतव्य को अच्छे से समझें, सकारात्मक असर छोड़ें, न कि भीड़-प्रदूषण बढ़ाएं और वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाएं."

आसपास की जगहों में रोमांच तलाश करके भी हम यात्रा से जुड़े पर्यावरणीय तनाव को कम कर सकते हैं.

निकोलस कहते हैं, "मैं पहले बहुत अधिक उड़ान भरता था लेकिन अब मैंने उसी तरह की नवीनता और रोमांच पाने के लिए दूसरे रास्ते खोज लिए हैं. मूल रूप से यह धीमी यात्रा है."

यह ठीक वैसा ही लग सकता है जैसे मेक्सिको के सागर तटों तक जाने की बजाय अपने समुद्र तटों पर आनंद लें.

जब हम हवाई सफ़र करते हैं तो हम कार्बन ऑफसेट खरीद सकते हैं. मर्फी इसे मददगार बताते हैं.

"उत्सर्जन कम करने में ये सफ़र कम करने जितने मददगार नहीं हैं यानी आप नुकसान की पूरी भरपाई नहीं कर रहे, फिर भी ये मददगार हैं."

ऑफसेट खरीदते समय ध्यान रखें कि ऐसी परियोजना को दान दें जो पहले से मौजूद नहीं है. मिसाल के लिए, जब आप वनों को संरक्षित करने के लिए दान दे रहे हैं तो यह देख लें कि कहीं वह जमीन वैसे भी संरक्षित तो नहीं होने जा रही थी.

हम कैसे उड़ान भरते हैं, यह भी मायने रखता है. बिजनेस क्लास में अतिरिक्त लेगरूम होने का मतलब है कि प्लेन में कम यात्रियों के लिए जगह.

शहर

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बिजनेस या इकॉनमी क्लास

मर्फी कहते हैं, "हवाई जहाज की सीटें जितनी भरी होंगी प्रति यात्री उत्सर्जन उतना ही कम होगा."

यूसी डेविस के नीति संस्थान के कार्यकारी निदेशक ऑस्टिन ब्राउन कहते हैं, "हमारी पसंद का पर्यावरण पर प्रभाव कितना है, इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए और उन प्रभावों के मुताबिक ही कीमतें तय होनी चाहिए. मिसाल के लिए, फर्स्ट क्लास की टिकटों को महंगा करना."

फर्स्ट क्लास टिकटों के दाम से इकॉनमी क्लास की टिकटों पर सब्सिडी देकर सस्ता किया जाता है. इससे सफ़र की कुल लागत घटती है और ज़्यादा लोग उडान भरते हैं.

घूमने के लिए आप जहां गए हों वहां की संस्कृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान रखकर अपने कार्बन फुटप्रिंट को घटा सकते हैं.

स्टोवेल कहते हैं, "जब आप किसी नई जगह जाते हैं तो आप उनके घर में मेहमान होते हैं."

सम्मान जताने के लिए आप पर्यावरण के अनुकूल आवास, गतिविधियां और परिवहन के साधन चुन सकते हैं.

आसपास की ख़ूबसूरत जगहों को देखने के लिए स्थानीय टूर ऑपरेटर का सहयोग लें. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को आप कुछ देते भी हैं.

सैलानियों को ऐसे टूर ऑपरेटर चुनने चाहिए जिसके पास पर्यावरण को लेकर पारदर्शी टिकाऊ योजना हो.

टिकाऊ पर्यटन एनजीओ ट्रीडराइट की शैनॉन गुइहान कहती हैं, "यदि आप कंपनी वेबसाइट पर जाते हैं, वहां टिकाऊ पर्यटन योजना पाते हैं और फिर 12 से 48 महीने बाद इसके असर की रिपोर्ट देखते हैं तो समझिए आपका पैसा सही जगह जा रहा है."

ट्रीडराइट ने मुसाफिरों पर्यावरण के अनुकूल आदतें बनाने और जागरुक विकल्प चुनने में मदद के लिए एक चेकलिस्ट तैयार किया है.

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पर्यटन तो ज़रूरी है

गुइहान कहती हैं, "हमें फिर भी यात्रा करने की ज़रूरत है." पर्यटन से दुनिया में सबसे ज़्यादा रोजगार पैदा होता है. कई गंतव्य टिके रहने के लिए सिर्फ़ यात्रा और पर्यटन पर निर्भर हैं."

यात्रा करने के और भी फायदे हैं. जब हम सार्थक तरीके से यात्रा करते हैं तो हमें विभिन्न संस्कृतियों की समझ होती है और करीबी दायरे से बाहर के लोगों के प्रति भी संवेदना जगती है. यात्रा से हमें धरती के बारे में वैश्विक नज़रिया मिलता है.

एक पत्रकार के तौर पर मैंने जॉर्डन के रेगिस्तान में बदू लोगों के साथ पुदीने की चाय पी है. रवांडा के जंगलों में पहाड़ी गोरिल्ला की आंखों में झांककर देखा है और भारत में चिलचिलाती धूप में बाघों को ट्रैक किया है.

इन अनुभवों में मुझे इस विशाल, विविध और असीम ख़ूबसूरत दुनिया का कायल बना दिया है, जिसे हमें बचाकर रखना है.

घूमने-फिरने की हमारे आज़ादी तात्कालिक रूप से छिन गई है. स्टोवेल कहते हैं, "यह संकट हमें सफ़र के बारे में नया नज़रिया बनाने का मौका दे सकता है. यात्रा एक विशेषाधिकार है, अधिकार नहीं है."

मैं यात्रा के बगैर दुनिया की कल्पना नहीं कर सकती. लेकिन मैं जानती हूं कि अगर हमने अपने तरीके को नहीं बदला तो वह दुनिया ही नहीं रहेगी जिसे हम देख सकें.

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